Amarnath Yatra: बालटाल की त्रासदी के बावजूद अमरनाथ यात्रा के लिए जम्मू में उमड़ रहे श्रद्धालु
देश के विभिन्न हिस्सों से 6,000 से अधिक श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा के लिए उमड़ रहे हैं. शुक्रवार को हुई त्रासदी के बाद भी श्रद्धालु बेखौफ दिख रहें हैं.
बालटाल में अचानक आई भीषण बाढ़ से बेखौफ श्रद्धालु दक्षिण कश्मीर हिमालय में 3,880 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुफा मंदिर की यात्रा के लिए पूरे उत्साह और भक्ति के साथ जम्मू में अमरनाथ यात्रा आधार शिविर में पहुंच रहे हैं. अमरनाथ गुफा के निकट बादल फटने के बाद बालटाल में आई बाढ़ में कम से कम 16 लोगों की मौत हो चुकी है. शुक्रवार को हुई त्रासदी पर दुख व्यक्त करते हुए श्रद्धालुओं ने कहा कि उन्हें कोई डर नहीं है क्योंकि उन्हें भगवान शिव में पूर्ण विश्वास है.
गुफा मंदिर जाने का ये है रास्ता
यह 43 दिवसीय वार्षिक तीर्थयात्रा 30 जून को दो मार्गों से शुरू हुई. दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग के पहलगाम में नुनवान से 48 किलोमीटर का पारंपरिक मार्ग है और दूसरा मध्य कश्मीर के गांदेरबल जिले में बालटाल मार्ग 14 किलोमीटर छोटा है. अब तक एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने गुफा मंदिर में पूजा की है. यह यात्रा 11 अगस्त को रक्षा बंधन के अवसर पर समाप्त होने वाली है.
6,000 से अधिक श्रद्धालु कश्मीर यात्रा के लिए रवाना
देश के विभिन्न हिस्सों से 6,000 से अधिक श्रद्धालु कश्मीर यात्रा के लिए गुफा मंदिर में दर्शन करने के लिए जम्मू पहुंचे हैं. जम्मू में आधार शिविर के अलावा पंजीकरण काउंटर, टोकन सेंटर और लॉजिंग सेंटर पर भारी भीड़ देखी गई. अधिकारियों ने कहा कि भारी बारिश के कारण आई अचानक बाढ़ भी जम्मू में धार्मिक उत्साह और भक्ति के मूड को बदलने में विफल रही है. एक अधिकारी ने कहा, बड़े उत्साह के साथ सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं. श्रद्धालुओं की संख्या में कोई कमी नहीं आई है.
Also Read: Amarnath Yatra 2022: अमरनाथ यात्रा के लिए की जा रही है अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था
जानें श्रद्धालुओं ने क्या कहा
गुजरात के राजकोट से 60 उत्साही श्रद्धालुओं का एक समूह यहां भगवती नगर आधार शिविर में पहुंचा जो आगे पहलगाम और बालटाल के आधार शिविरों के लिए रवाना होंगे. कानपुर से आए सुरिंदर सिंह ने कहा, हमारे मन में कोई डर नहीं है. बादल फटना हो या अचानक बाढ़, हम भोलेनाथ के आशीर्वाद से अमरनाथ जाएंगे. हम बर्फ से बने शिवलिंग के दर्शन के लिए उत्साहित हैं क्योंकि हम पिछले दो वर्षों में कोविड-19 के कारण मंदिर नहीं जा सके.