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देश में महामारी बन रही है डायबिटीज, त्वरित कदम उठाने की जरूरत

देश में मधुमेह एक महामारी बनती जा रही है और एक बड़ी जनसंख्या खतरे में है. रिपोर्ट में प्रस्तुत जो भी आंकड़े हैं, वे 2021 से संबंधित हैं. अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में आईसीएमआर ने देशभर में मेटाबॉलिक नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज के प्रसार को लेकर किये गये सर्वेक्षण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है.

आरती श्रीवास्तव

आइसीएमआर द्वारा किये गये शोध में यह बात सामने आयी है कि देश में डायबिटीज समेत अन्य मेटाबॉलिक एनसीडी रोगियों की संख्या में तेज वृद्धि दर्ज हो रही है. प्रीडायबिटीज के मामले में भी देश में तेजी आयी है, जो गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि इस समय देशभर में जहां डायबिटीज रोगियों की संख्या 10 करोड़ है, वहीं प्रीडायबिटीज के मामले 13 करोड़ हैं. अध्ययन ने इस बात को भी सामने रखा है कि देश में डायबिटीज से जुड़ी जटिलताएं भी बढ़ रही हैं. यह संकट की स्थिति है और इससे तत्काल निपटने की जरूरत है. जानते हैं लांसेट में प्रकाशित डायबिटीज से संबंधित अध्ययन व इससे जुड़े विभिन्न तथ्यों के बारे में

देश में डायबिटीज, यानी मधुमेह समेत गैर-संचारी रोग (एनसीडी) तेजी से पैर पसार रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है. आइसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद)और मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) द्वारा किया गया एक अध्ययन हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी में प्रकाशित हुआ है. अध्ययन में बताया गया है कि देश में मधुमेह एक महामारी बनती जा रही है और एक बड़ी जनसंख्या खतरे में है. रिपोर्ट में प्रस्तुत जो भी आंकड़े हैं, वे 2021 से संबंधित हैं. अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में आईसीएमआर ने देशभर में मेटाबॉलिक नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज (गैर-संचारी रोग) के प्रसार को लेकर किये गये सर्वेक्षण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है.

यह अध्ययन 20 वर्ष और उससे अधिक उम्र के कुल 1,13,043 व्यक्तियों के बीच किया गया, जिनमें 79,506 ग्रामीण और 33,537 शहरी क्षेत्रों के रहने वाले शामिल हुए थे. इकत्तीस राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच 18 अक्तूबर, 2008 और 17 दिसंबर, 2020 के बीच, 12 वर्षों तक किये गये अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है. इसके अध्ययन दल में भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नयी दिल्ली के शोधार्थी भी शामिल थे.

देश में 10 करोड़ से अधिक डायबिटीज रोगी

लांसेट में छपी रिपोर्ट की मानें, तो देशभर में 10.1 करोड़ लोगों को डायबिटीज है, जबकि 2019 में यह आंकड़ा सात करोड़ था. रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि देश के उत्तरी और दक्षिण क्षेत्र में डायबिटीज का फैलाव सबसे अधिक है. यहां गांवों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में इसके रोगी अधिक हैं. जबकि मध्य और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में डायबिटीज का प्रसार कम है.

बढ़ रही है मधुमेह से जुड़ी जटिलताएं

देश में मधुमेह और अन्य एनसीडी का तेज फैलाव बड़ी आबादी में न केवल हृदय रोग का जोखिम, बल्कि किडनी, पैर और आंखों की बीमारी जैसी डायबिटीज से जुड़ी जटिलताओं को भी बढ़ा रहा है. चूंकि देश में इन बीमारियों का उपचार महंगा है, ऐसे में लोगों की परेशानी बढ़ रही है और देश समाज पर रोगों का बोझ भी बढ़ रहा है. इतना ही नहीं, देशभर में मोटापे और प्रीडायबिटीज की उच्च प्रसार दर (यहां तक कि उन क्षेत्रों में भी जहां मधुमेह का प्रसार वर्तमान में कम है) से पता चलता है कि महामारी में तेजी जारी रहेगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत के लोग मोटापे का स्तर निम्न होने पर भी मधुमेह का शिकार हो रहे हैं, और श्वेत कॉकेशियन नस्ल की तुलना में प्रीडायबिटीज से डायबिटीज रोगी में तेजी से बदल रहे हैं.

प्रीडायबिटीज की संख्या
डायबिटीज रोगियों से अधिक

अध्ययन में प्रीडायबिटीज के बढ़ते प्रसार को लेकर भी चिंता जतायी गयी है. देशभर में प्रीडायबिटीज, (डायबिटीज से पहले का स्तर) की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या 13.6 करोड़ है, जो डायबिटीज रोगियों से अधिक है. देश के मध्य और उत्तरी भाग में प्रीडायबिटीज का प्रसार सबसे अधिक जबकि पंजाब, झारखंड और देश के कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में इसका प्रसार सबसे कम है.

  • 15.3 प्रतिशत लोग प्रीडायबिटीज की गिरफ्त में है, देशभर में.

  • 31.3 प्रतिशत प्रीडायबिटीज लोगों के साथ पूर्वोत्तर का राज्य सिक्किम देशभर में पहले स्थान पर है.

  • 6.8 प्रतिशत के साथ पूर्वोत्तर का ही एक अन्य राज्य मिजोरम सबसे निचले स्थान पर है, प्रीडायबिटीज रोगियों के मामले में देश में.

  • गोवा, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में डायबिटीज मामलों की तुलना में अभी प्रीडायबिटीज के मामले कम हैं.

  • वहीं पुडुचेरी और दिल्ली में दोनों मामले लगभग बराबर हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में प्रीडायबिटीज का फैलना चिंताजनक

ग्रामीण क्षेत्रों में प्रीडायबिटीज का समान रूप से उच्च प्रसार गंभीर चिंता का विषय है. क्योंकि इन क्षेत्रों में मधुमेह और इसकी जटिलताओं से पीड़ित लोगों की देखभाल के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है. चूंकि भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, इलाज के लिए सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भर है, सो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करना आवश्यक है, ताकि इन क्षेत्रों में मधुमेह और एनसीडी से जुड़ी देखभाल सुविधाओं में सुधार हो सके और लोगों को समय पर सही इलाज मिल सके.

क्या कहती है विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट

डा यबिटीज पर कुछ दिनों पूर्व आयी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें, तो उच्च आय वाले देशों की तुलना में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में डायबिटीज का प्रचलन कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहा है. यह बीमारी अंधेपन, किडनी खराब होना, दिल के दौरे, स्ट्रोक और पैरों में समस्या का एक प्रमुख कारण है. कई बार तो रोगियों के पैर तक काटने की नौबत आ जाती है.

  • 10.8 करोड़ थी 1980 में दुनियाभर में मधुमेह रोगियों की संख्या, जो 2014 में बढ़कर 42.2 करोड़ पर पहुंच गयी.

  • 8.5 प्रतिशत वयस्कों (18 वर्ष और उससे अधिक आयु के) को मधुमेह था 2014 में.

  • 15 लाख लोगों की मौत का प्रत्यक्ष कारण डायबिटीज था, 2019 में और डायबिटीज से होने वाली इन मौतों का 48 प्रतिशत हिस्सा 70 वर्ष से कम आयु के वयस्क थे. अन्य 4,60,000 लोगों की मौत मधुमेह के कारण होने वाले किडनी रोगों के चलते हुई थी. रक्त शर्करा बढ़ने के कारण हृदय संबंधी रोगों से 20 प्रतिशत लोगों की जान गयी थी.

  • 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी 2000 से 2019 के बीच, उम्र के हिसाब से डायबिटीज मृत्यु दर में. जबकि निम्न-मध्यम आय वाले देशों में डायबिटीज के कारण मृत्यु दर में 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी.

  • 22 प्रतिशत मरने की संभावना कम हो गयी 2000 से 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर 30 से 70 वर्ष की आयु के बीच चार मुख्य गैर-संचारी रोगों (हृदय रोग, कैंसर, सांस संबंधी पुराने रोग या मधुमेह) में से किसी एक से.

देश पर गैर-संचारी रोगों का बढ़ता बोझ (डायबिटीज और प्रीडायबिटीज को छोड़कर)

रोग – राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार – भारत में अनुमानित लोगों की संख्या – उच्च प्रसार वाले राज्य – निम्न प्रसार वाले राज्य

  • हाइपरटेंशन – 35.5 प्रतिशत – 315 मिलियन – पंजाब (51.8 प्रतिशत) -मेघालय (24.3 प्रतिशत)

  • जनरलाइज्ड ओबेसिटी – 28.6 प्रतिशत – 254 मिलियन – पुडुचेरी (53.3 प्रतिशत) – झारखंड (11.6 प्रतिशत)

  • एब्डॉमिनल ओबेसिटी – 39.5 प्रतिशत – 351 मिलियन – पुडुचेरी (61.2 प्रतिशत) – झारखंड (18.4 प्रतिशत)

  • हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया – 24.0 प्रतिशत – 213 मिलियन – केरल (50.3 प्रतिशत) – झारखंड (4.6 प्रतिशत)

स्रोत: आईसीएमआर स्टडी – एमआरडीएफ, 2023

क्या कहना है शोधार्थियों का

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ आरएम अंजना का कहना है कि हम जीवनशैली में सुधार लाकर इस ट्रेंड पर रोक लगा सकते हैं. वहीं अध्ययन के एक वरिष्ठ लेखक डॉ वी मोहन के अनुसार, भारत में राज्य सरकारें एनसीडी पर विस्तृत राज्य स्तरीय डेटा के जरिये एनसीडी के प्रसार को सफलतापूर्वक रोकने और उनकी जटिलताओं का प्रबंधन करने के लिए साक्ष्य आधारित उपचार विकसित कर सकेंगे. कुछ शोधार्थियों की मानें, तो देशा में मधुमेह और अन्य एनसीडी का प्रसार पूर्व के अनुमान से काफी अधिक है. डायबिटीज की महामारी देश के अधिक विकसित राज्यों में स्थिर हो रही है, वहीं अधिकांश राज्यों में यह अभी भी पैर पसार रही है. देश में महामारी बनते डायबिटीज व अन्य मेटाबॉलिक एनसीडी के तेजी से प्रसार पर रोक लगाने के लिए तत्काल आधार पर राज्य केंद्रित नीतियाें की आवश्यकता है.

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