नयी दिल्ली : कोरोनावायरस से संक्रमित होने के बाद इंसान के फेफड़ों को काफी क्षति पहुंचाता है. सोशल मीडिया पर यह मैसेज काफी वायरल हुआ था. अब एक शोध में इसका खुलासा हो गया है. लोयोला यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो मेडिसिन के अध्ययन में पता चला है कि कोविड-19 संक्रमण से ठीक हुए लोगों में किसी को भी बीमारी के कारण सीधे तौर पर फेफड़ों की कोई स्थायी क्षति नहीं हुई थी.
एनल्स ऑफ थोरैसिक सर्जरी में 31 जुलाई को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि यह शोध कोविड-19 महामारी की समझ में एक महत्वपूर्ण अंतर को पाटती है. डॉक्टरों और रोगियों के पास अब अवलोकन संबंधी सबूत हैं कि एक बार जब रोगी कोरोनावायरस संक्रमण से ठीक हो जाता है तो कम से कम चार महीने तक स्थायी फेफड़े के पैरेन्काइमल सीक्वेल होने की संभावना नहीं होती है, जो इस अध्ययन की अधिकतम अवधि थी.
भारत में वर्तमान में अमेरिका के बाद कोविड-19 मामलों का दूसरा सबसे बड़ा केसलोड है. यह रोग फेफड़ों पर हमला करता है और कुछ रोगियों में तेजी से बढ़ता है जिससे उनके लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है. मुंबई के चिकित्सक हेमंत गुप्ता ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि जो रोगी पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, उनके फेफड़े भी ठीक हो जाते हैं क्योंकि बीमारी ठीक हो जाती है.
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उन्होंने कहा कि आमतौर पर जिन रोगियों को क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज या तपेदिक के इतिहास जैसी कुछ पूर्व से बीमारियां होती हैं, उनके फेफड़ों पर स्थायी प्रभाव पड़ता है जब वे कोविड-19 संक्रमित होते हैं. अन्य रोगी जो गंभीर हो जाते हैं और गहन देखभाल इकाई में कई दिन बिताते हैं, उनमें भी फेफड़ों की गंभीर क्षति के लक्षण दिखाई देते हैं, उनमें से कई को छुट्टी के बाद भी ऑक्सीजन समर्थन की जरूरत होती है.
रेडियोलॉजिस्ट जिग्नेश ठक्कर ने कहा कि कोविड का लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव आमतौर पर उन रोगियों में देखा जाता है जो गंभीर हो जाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अंतर्निहित बीमारियों के अलावा, वायु प्रदूषण के अतिरिक्त प्रभाव के कारण भारतीय रोगियों के फेफड़े खराब हो सकते हैं.
Posted By: Amlesh Nandan.