कोरोना की दूसरी लहर देश में भयावह हो गयी है और कर्नाटक जैसे राज्य में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. स्थिति यह है कि आईसीयू बेड और आॅक्सीजन की कमी आम समस्या के रूप में सामने आयी है. ऐसे में डाॅक्टर्स दुविधा में हैं, उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि वे किसे बचायें बूढ़ों को या फिर जवानों को.
टाइम्स आॅफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार डाॅक्टर्स अभी वरिष्ठ लोगों को बेड की सुविधा दे रहे हैं और उनके इलाज को प्राथमिकता दे रहे हैं, लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस है कि वे जवानों का ठीक से इलाज नहीं कर रहे हैं और उनके परिजनों को दुखी कर रहे हैं.
एक डाॅक्टर ने कहा कि मैंने अपने 35 साल के करियर में ऐसी नैतिक दुविधा का सामना नहीं किया था जैसा कि आज कर रहा हूं. इलाज में किसे प्राथमिकता दिया जाये? एक डाॅक्टर के नाते हम सीनियर सिटीजन को प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि उनके सर्वाइल के चांस कम होते हैं और जवान लोग अधिकतर स्वस्थ हो जाते हैं. लेकिन हमारे सामने भी यह सवाल है कि आखिर उनके परिजनों को कौन जवाब देगा.
हमारे यहां ECMO मशीन एक था. 44 साल का एक मरीज उसपर पिछले एक सप्ताह से रिकवर हो रहा था, उसकी हालत स्थिर थी. एक मरीज आयी जो 22 साल की उसे भी ECMO मशीन की जरूरत थी, लेकिन मशीन एक होने के कारण उसने हमारी आंखों के सामने दम तोड़ दिया.
हालांकि कई डाॅक्टर्स ने कहा कि वो मरीज की स्थिति पर तय करते हैं कि उन्हें किसका इलाज पहले करना है. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि जब अस्पतालों में सुविधाओं की कमी है तो मरीजों को कष्ट हो रहा है और सबको इलाज नहीं मिल पा रहा है.
गौरतलब है कि इटली में जब कोरोना अपने चरम पर था और अस्पतालों की स्थिति खराब थी, तो डाॅक्टरों ने बूढ़ों का इलाज करना बंद कर दिया था और वे सिर्फ जवान लोगों की जान बचा रहे थे, क्योंकि वहां मौत बहुत ज्यादा हो रही थी.
Posted By : Rajneesh Anand