Loading election data...

आधुनिक शिक्षा के हिमायती डॉ भीमराव आंबेडकर

Dr. Bhimrao Ambedkar birthday : बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर 20वीं सदी के सबसे बड़े विचारकों में एक हैं. वर्तमान सदी भी भारत में डॉ आंबेडकर के प्रभाव की सदी है. डॉ आंबेडकर की लोकप्रियता और स्‍वीकार्यता के पीछे उनका विशद अध्‍ययन, तार्किक लेखन और वंचित समूहों के लिए परिवर्तनकामी भूमिका है. शिक्षा का क्षेत्र भी उनके योगदान से अछूता नहीं है, लेकिन डॉ आंबेडकर का मूल्‍यांकन करते वक्‍त इसकी कम बात होती है.

By Rajneesh Anand | April 14, 2020 12:05 PM

-गंगा सहाय मीणा-

बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर 20वीं सदी के सबसे बड़े विचारकों में एक हैं. वर्तमान सदी भी भारत में डॉ आंबेडकर के प्रभाव की सदी है. डॉ आंबेडकर की लोकप्रियता और स्‍वीकार्यता के पीछे उनका विशद अध्‍ययन, तार्किक लेखन और वंचित समूहों के लिए परिवर्तनकामी भूमिका है. शिक्षा का क्षेत्र भी उनके योगदान से अछूता नहीं है, लेकिन डॉ आंबेडकर का मूल्‍यांकन करते वक्‍त इसकी कम बात होती है. उनके मशहूर नारे ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो’ में शिक्षा पहले स्‍थान पर है. शिक्षा के बारे में उन्होंने कहा, ‘शिक्षा वह है, जो व्‍यक्ति को निडर बनाये, एकता का पाठ पढ़ाये, लोगों को अधिकारों के प्रति सचेत करे, संघर्ष की सीख दे और आजादी के लिए लड़ना सिखाये.’

डॉ आंबेडकर ने सबसे पहले बॉम्बे लेजिस्‍लेटिव काउंसिल में एक कानूनविद की हैसियत से 12 मार्च, 1927 को भारतीय समाज में शिक्षा के बारे में कुछ जरूरी सवाल उठाये. यह उनके लिए बेहद चिंता का विषय था कि हमारे देश ने शिक्षा के मामले में प्रगति नहीं की. उस समय भारत सरकार द्वारा शिक्षा के बारे में प्रस्‍तुत रिपोर्ट के मुताबिक देश के स्‍कूल जाने की उम्र के लड़कों को 40 साल और लड़कियों को 100 से अधिक साल लगते. इसकी वजह उन्‍होंने शिक्षा के क्षेत्र में बजट की कमी बतायी. वे कहते हैं, ‘हम शिक्षा पर कम से कम उतनी राशि तो खर्च करें ही, जितनी हम लोगों से उत्‍पाद शुल्‍क के रूप में लेते हैं.’ इसी क्रम में डॉ आंबेडकर ने विद्यार्थियों की ड्रॉप-आउट दर पर भी चिंता जतायी. इसके लिए उन्‍होंने उपाय सुझाया कि प्राथमिक शिक्षा पर अधिक से अधिक खर्च किया जाये.

आज हम शिक्षा के व्‍यावसायीकरण की समस्‍या से जूझ रहे हैं. डॉ आंबेडकर ने शिक्षा के व्‍यावसायीकरण की समस्‍याओं को सौ साल पहले पहचान लिया था. वे कहते हैं, ‘शिक्षा तो एक ऐसी चीज है, जो सबको मिलनी चाहिए. शिक्षा विभाग ऐसा नहीं है, जो इस आधार पर चलाया जाये कि जितना वह खर्च करता है, उतना विद्यार्थियों से वसूल किया जाये. शिक्षा को सभी संभव उपायों से व्‍यापक रूप से सस्‍ता बनाया जाना चाहिए.’

डॉ आंबेडकर के लिए चिंता का मूल विषय था- देश में व्‍याप्‍त सामाजिक असमानता. इसको समाप्‍त कर देश में समानता लाने में वे शिक्षा की अहम भूमिका मानते थे. उनका माननता था कि शिक्षा सहित जीवन के विविध क्षेत्रों में आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों के लिए सहानुभूतिपूर्ण रवैये का सिद्घांत अपनाया जाना चाहिए. वे ऐसे लोकतांत्रिक पाठ्यक्रम के पक्षधर थे, जिसे संबंधित विषयों के अध्‍यापक विद्यार्थियों और विषय की जरूरत के हिसाब से बनायें. उन्होंने हमेशा पूर्ण एवं अनिवार्य शिक्षा का पक्ष लिया और तकनीकी शिक्षा पर बल दिया. वे कमजोर वर्गों को विभिन्‍न प्रकार का छात्रवृत्तियां देने के पक्षधर थे और उच्‍च शिक्षा की जरूरत भी वे बराबर रेखांकित करते रहते थे. वे शिक्षा और नौकरियों के क्षेत्र में वंचितों की रुचि जगाने और उनका प्रतिनिधित्‍व सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए सीटें आरक्षित करने के विचार के जन्‍मदाता थे.

दलितों और पिछड़ों के साथ डॉ आंबेडकर की प्राथमिकता में स्त्रियों की शिक्षा भी थी. वे स्त्रियों की दुर्दशा के लिए ब्राह्मणवाद को जिम्‍मेदार मानते थे. उनका स्‍पष्‍ट कहना था, ‘इस समाज में ऐसी कोई बुराई नहीं है, जो ब्राह्मणों के सहयोग के बिना पनपी हो. जाति व्‍यवस्‍था जहां पुरुष-पुरूष के बीच भेद करती है, वहीं इसी का विस्‍तार करते हुए स्‍त्री को दोयम दर्जा देती है.’ डॉ आंबेडकर स्त्रियों के लिए शिक्षा और आर्थिक आत्‍मनिर्भरता को आवश्‍यक मानते थे.

डॉ आंबेडकर ने व्‍यक्तिगत स्‍तर पर भी शिक्षा, खासतौर पर वंचितों के लिए शिक्षा के लिए कई महत्‍वपूर्ण कार्य किये. उन्‍होंने 1924 की शुरूआत में बहिष्‍कृत हितकारिणी सभा के गठन से ही इस क्षेत्र में कार्य शुरू कर दिया था. सभा ने शिक्षा को प्राथमिकता बनाया और खासकर पिछड़े वर्गों के बीच उच्‍च शिक्षा और संस्‍कृति के विस्‍तार हेतु कॉलेज, हॉस्‍टल, पुस्‍कालय, सामाजिक केन्‍द्र और अध्‍ययन केंद्र खोले. सभा की देखरेख में विद्यार्थियों की पहल पर ‘सरस्‍वती बेलास’ नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ. इसने 1925 में सोलापुर और बेलगांव में छात्रावास और बंबई में मुफ्त अध्‍ययन केंद्र, हॉकी क्‍लब और दो छात्रावास खोले.

डॉ आंबेडकर ने 1928 में डिप्रेस्‍ड क्‍लास एजुकेशनल सोसाइटी का गठन किया. उन्‍होंने 1945 में समाज के पिछडे़ तबकों के बीच उच्‍च शिक्षा फैलाने के लिए लोक शैक्षिक समाज की भी स्‍थापना की. इस संस्‍था ने पर्याप्‍त संख्‍या में कॉलेज और माध्‍यमिक विद्यालय खोले. कुछ छात्रावासों को डॉ आंबेडकर ने वित्‍तीय सहायता भी दी. निष्‍कर्षत: डॉ आंबेडकर तर्कशील समाज पर आधारित एक आधुनिक भारत का निर्माण करना चाहते थे. जब तक इसकी जरूरत बनी रहेगी, उनके शेष विचारों के साथ शिक्षा संबंधी विचार भी प्रासंगिक बने रहेंगे.

( लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली में प्राध्यापक हैं )

Next Article

Exit mobile version