डॉ प्रणब मुखर्जी : देश के एक ऐसे राष्ट्रपति, जिन्हें ‘महामहिम’ या ‘हिज एक्सीलेंस’ कहलाने से था ऐतराज
पूर्व राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी का सोमवार को 84 साल की अवस्था में निधन हो गया. वे देश के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर कई उल्लेखनीय कार्यों के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे. उन्हें केंद्र सरकार के साथ बेहद आत्मीय संबंधों को निभाने वाले राष्ट्रपति के तौर पर तो जाना ही जाएगा, लेकिन इसके साथ उन्हें इस रूप में भी याद किया जाएगा, जिन्होंने अंग्रेजों के जमाने से राष्ट्रपति को 'महामहिम' या फिर 'हिज एक्सीलेंस' कहलाने की प्रथा को समाप्त कर दिया. प्रणब दा को कभी एक राष्ट्रपति के तौर पर महामहिम या हिज एक्सीलेंस कहलाना पसंद नहीं था. वे देश के ऐसे राष्ट्रपति बने, जिन्होंने इन दोनों संबोधनों को प्रोटोकॉल से ही हटवा दिया.
नयी दिल्ली : पूर्व राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी का सोमवार को 84 साल की अवस्था में निधन हो गया. वे देश के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर कई उल्लेखनीय कार्यों के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे. उन्हें केंद्र सरकार के साथ बेहद आत्मीय संबंधों को निभाने वाले राष्ट्रपति के तौर पर तो जाना ही जाएगा, लेकिन इसके साथ उन्हें इस रूप में भी याद किया जाएगा, जिन्होंने अंग्रेजों के जमाने से राष्ट्रपति को ‘महामहिम’ या फिर ‘हिज एक्सीलेंस’ कहलाने की प्रथा को समाप्त कर दिया. प्रणब दा को कभी एक राष्ट्रपति के तौर पर महामहिम या हिज एक्सीलेंस कहलाना पसंद नहीं था. वे देश के ऐसे राष्ट्रपति बने, जिन्होंने इन दोनों संबोधनों को प्रोटोकॉल से ही हटवा दिया.
दरअसल, अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारत में इंग्लैंड की महारानी के प्रतिनिधि के रूप में जो वायसरॉय या गवर्नर जनरल काम किया करते थे, उन्हें ‘महामहिम’ या फिर ‘हिज एक्सीलेंस’ जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता था. आजादी के बाद भारत में राष्ट्रपति और राज्यपालों के संबोधनों के साथ ये दोनों शब्द लिपटे रहे. डॉ प्रणब मुखर्जी देश के ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने अंग्रेजों के जमाने से भारत के लोगों की मानसिकता में रच-बस चुके इन दोनों शब्दों को राष्ट्रपति के संबोधन से हटाने का काम किया.
हमेशा संयत रहने के लिए थे मशहूर
गौरतलब है कि 11 दिसंबर, 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में जन्मे और एक स्कूली शिक्षक के रूप में अपने कॅरिय की शुरुआत करने वाले डॉ प्रणब मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति थे. वे हमेशा अपने बेहद शालीन स्वभाव के लिए जाने जाते रहे. राजनीति शास्त्र तथा इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधियां हासिल करने वाले डॉ मुखर्जी ने कानून की डिग्री भी प्राप्त की थी. केंद्र सरकार में कई मंत्रालयों को संभाल चुके प्रणब दा हमेशा संयत रहने के लिए मशहूर रहे हैं और इस गुण की प्रशंसा उनके विरोधी भी करते रहे.
राष्ट्रपति बनने से पहले रक्षा और वित्त मंत्री रहे
देश के 13वें राष्ट्रपति का पद सुशोभित करने के पहले डॉ प्रणब मुखजी रक्षामंत्री और वित्तमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों को संभाल चुके थे. इसके साथ ही केंद्र सरकार से उनके संबंधों की मिसाल हमेशा जाती रहेगी. इसके अलावा, वह तुरंत फैसले लेने के लिए भी मशहूर रहे हैं.
अजमल कसाब, अफजल गुरु और याकूब मेनन का फांसी पर लगायी मुहर
उनसे पहले देश के राष्ट्रपति पद पर सुशोभित रहे गणमान्य व्यक्तित्वों के कार्यकाल के दौरान दया याचिकाओं के लंबित रहने का लंबा इतिहास रहा है, लेकिन डॉ प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में फांसी की सजा पाए अपराधियों की दया याचिकाओं पर जल्द निर्णय लेने का उदाहरण प्रस्तुत किया. मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के कसूरवार अजमल कसाब और संसद भवन पर हुए आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी की सज़ा पर डॉ मुखर्जी ने अविलंब मुहर लगायी. इन दोनों के अलावा, उन्होंने याकूब मेमन के मृत्युदंड को पलटने से भी इंकार किया और अपने पूरे कार्यकाल में कुल मिलाकर 28 अपराधियों की फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए चार लोगों को क्षमा भी किया.
इंदिरा गांधी के अनुरोध पर राजनीति में प्रवेश
डॉ प्रणब मुखर्जी ने वर्ष 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आग्रह पर राजनीति में प्रवेश किया था और पहली बार राज्यसभा के लिए चयनित हुए थे. वर्ष 1973 में डॉ मुखर्जी को केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया गया और उसके बाद वह चार बार (वर्ष 1975, 1981, 1993, 1999) और राज्यसभा के लिए चुने गए. केंद्र सरकार के हिस्से के रूप में सभी कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के काल में उन्हें हमेशा ‘संकटमोचक’ के रूप में देखा जाता रहा था, क्योंकि वे वार्ता के जरिये किसी भी तरह की समस्या का हल निकालने में सिद्धहस्त माने जाते थे. नयी सदी में वर्ष 2004 और 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में उन्होंने पार्टी का प्रतिनिधित्व सीधा चुनाव जीतकर संसद के निचले सदन में किया.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पीएम पद के थे प्रबल दावेदार
आपातकाल के तुरंत बाद हुई करारी हार के समय वह इंदिरा गांधी के सर्वाधिक करीबी नेता के रूप में उभरे और वर्ष 1980 में कांग्रेस के दोबारा सत्तासीन होने पर राज्यसभा में पार्टी के नेता बनाए गए. वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए की गयी हत्या के बाद डॉ मुखर्जी इस पद के सबसे प्रमुख दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने उस वक्त इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी को प्रधानमंत्री चुन लिया.
Posted By : Vishwat Sen