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पानी के साथ कहीं प्लास्टिक तो नहीं पी रहे आप? इस राज्य में नल के पानी में मिले सूक्ष्म कण

Plastic in Drinking Water: डॉ महुआ साहा ने कहा कि उत्तर और दक्षिण गोवा दोनों जिलों में मडगांव, पणजी, मापुसा, कानाकोना और मार्सेल में नल से लिये गये पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाये गये.

पणजी: अगर आपके घर सप्लाई का पानी (Supply Water) आ रहा है और यह सोचकर आप निश्चिंत हैं कि आप स्वच्छ जल (Clean Drinking Water) पी रहे हैं, तो आपको सावधान हो जाने की जरूरत है. हो सकता है कि आप नल के पानी के साथ-साथ प्लास्टिक (Plastic in Drinking Water) के कण भी पी रहे हों. इससे आपकी सेहत को नुकसान हो सकता है. जल वैज्ञानिकों को नल के पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण (Micro Plastic in Water) मिले हैं.

सीएसआईआर-राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography) ने हाल ही में एक शोध किया है, जिसमें गोवा में घरों में आपूर्ति किये जाने वाले नल के पानी में सूक्ष्म प्लास्टिक की मौजूदगी का पता चला है. एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी. सीएसआईआर-एनआईओ (CSIR-NIO) की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ महुआ साहा (Dr Mahua Saha) ने इस संबंध में यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया.

डॉ महुआ साहा ने कहा कि उत्तर (North Goa)और दक्षिण गोवा (South Goa) दोनों जिलों में मडगांव, पणजी, मापुसा, कानाकोना और मार्सेल में नल से लिये गये पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाये गये. सीएसआईआर-एनआईओ और दिल्ली स्थित एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक (Toxics Link) ने उपचार पूर्व कच्चे पानी (Raw Water) और उपचारित नल के पानी (Tap Water) पर शोध किया. यह जल राज्य के तटीय स्थानों सेलौलिम, ओपा, असोनोरा और कैनाकोना के जलाशयों से प्राप्त किया गया था.

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एनजीओ के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा ने बताया कि पहले यह शोध पिछले साल भारत के विभिन्न शहरों में किया जाना था, लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण (Coronavirus Pandemic) की वजह से घोषित लॉकडाउन (Lockdown) के कारण केवल गोवा (Goa) तक ही सीमित रहा. शोध का नेतृत्व करने वाली डॉ साहा ने कहा कि मडगांव, पणजी, मापुसा, कैनाकोना और मार्सेल सहित गोवा में विभिन्न स्थानों से खींचे गये नल के पानी में माइक्रो-प्लास्टिक पायी गयी.

इस वजह से पानी में हो सकते हैं प्लास्टिक के कण

डॉ महुआ साहा ने कहा कि नल के पानी में प्लास्टिक कणों के घर्षण को माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती मौजूदगी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. वैज्ञानिक ने कहा, ‘भारत में नल-जल वितरण प्रणाली में घरेलू पाइप मुख्य रूप से प्लास्टिक या कच्चा लोहा से बने होते हैं.

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इसलिए, जल उपचार संयंत्रों और जलाशयों के बीच प्लास्टिक पाइपों का क्षरण हो सकता है, जिससे उपचारित पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण बैठ जाते हैं.’ उन्होंने कहा कि माइक्रोप्लास्टिक के खतरे के स्तर को अभी तक स्थापित नहीं किया गया है.

Posted By: Mithilesh Jha

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