दुर्गा पूजा की तैयारी जोरों पर, पर्यावरण को ध्यान में रख कर बनाया इको फ्रेंडली मूर्ति, देखें तस्वीरें
मूर्तिकारों ने बताया कि मिट्टी की मूर्तियां पानी में अच्छे से मिल जाती है और कोई प्रदूषण भी नहीं होता. इको फ्रेंडली मूर्तियों को बनाने के लिए मिट्टी के अलावा, पुआल और बांस का इस्तेमाल किया जाता है.
कोरोना महामारी के 2 साल बाद दुर्गा पूजा को लेकर तैयारियां जोरो पर हैं. कई राज्यों में इको फ्रेंडली मूर्तियां बनाई जा रही है. मूर्तिकार 3 फुट से लेकर 15 फुट तक मूर्तियों को आकार देने में जुटे हैं. बताते चले कि बाजारों में बीते पांच सालों के मुकाबले इस साल इको फ्रेंडली मूर्तियों की मांग बढ़ी है, जिसे ध्यान में रखकर मूर्तिकार मिट्टी की मूर्तियां बना रहे हैं.
दुर्गा पूजा से पहले हैदराबाद में मूर्तिकार इको फ्रेंडली मूर्तियां बना रहे हैं. एक मूर्तिकार ने बताया, हम 18 साल से यहां इको फ्रेंडली मिट्टी की मूर्तियां बना रहे हैं. इसकी मांग बाजारों में काफी बढ़ गई है. मूर्तियों की कीमत 500 रुपये से शुरू होकर दो लाख तक देखी जा रही हैं.
मूर्तिकारों ने बताया कि मिट्टी की मूर्तियां पानी में अच्छे से मिल जाती है और कोई प्रदूषण भी नहीं होता. इको फ्रेंडली मूर्तियों को बनाने के लिए मिट्टी के अलावा, पुआल और बांस का इस्तेमाल किया जाता है. यह मूर्ती विसर्जन के 6 घंटे के भीतर पानी में अच्छी तरह से घुल जाता है.
तेलंगाना के अलावा पश्चिम बंगाल में भी लोगों को मिट्टी की खुशबू अपनी ओर खींच रही है. मूर्तिकारों की माने, तो मिट्टी हरियाणा के झज्जर से मंगाई जा रही है. वहीं, यमुना नदी की मिट्टी से उसे आकर्षित बनाया जा रहा है.
पश्चिम बंगाल को कोलकाता में मूर्तिकारों ने चाक और पेंसिल से भी मां दुर्गा की मूर्ति बनाने की अनूठी पहल की है. एक मूर्तिकार ने बताया,हम 7 रंग के चाक पेंसिल से मूर्ति तैयार कर रहे हैं.