यूरोपीय संग्रहालयों से औपनिवेशिक काल की वस्तुओं को संबंधित देशों को वापस करने को लेकर अक्सर बहस होती रहती है. हाल के दिनों में अमेरिका में चर्चित रहे ‘ब्लैक लाइफ मैटर’ आंदोलन के बाद एक बार फिर यह चर्चा जोर पकड़ रही है. यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया समेत अनेक देशों में ऐसी तमाम कलाकृतियों को दुनिया के कई देशों से चोरी या तस्करी करके लाया गया है.
भारत के संदर्भ में बात करें, तो आजादी से पहले और उसके बाद भी तमाम मूर्तियों, कलाकृतियों, सिक्कों और अन्य तरह की वस्तुओं की तस्करी होती रही है और उन्हें अवैध तरीके से बाहर भेजा जाता रहा है. वर्तमान में भारत सरकार दुनियाभर के संग्रहालयों से ऐसी अनेक वस्तुओं की वापसी के लिए प्रयासरत है
भगवान बुद्ध : कांस्य धातु से निर्मित सात फीट लंबी भगवान बुद्ध की यह प्रतिमा पांच क्विंटल यानी 500 किलोग्राम वजन की है. इसे इंग्लैंड के बर्मिंघम म्यूजिम एंड आर्ट गैलरी में रखा गया है. सुल्तानगंज स्टेशन के निर्माण के लिए करायी जा रही खुदाई के दौरान इस प्रतिमा को 1858 में प्राप्त किया गया था.
माता अन्नपूर्णा : वाराणसी से एक मंदिर से 107 साल पहले चोरी हुई देवी अन्नपूर्णा की प्रतिमा कनाडा से वापस लायी जा रही है. मूर्ति को कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ रेजिना स्थित मैकेंजी ऑर्ट गैलरी के कलेक्शन में रखा गया था. अन्नपूर्णा देवी की प्रतिमा 18वीं सदी की बतायी जा रही है. मूर्ति के हाथों में खीर का कटोरा और चम्मच है. इस महीने के अंत तक यह मूर्ति वाराणसी पहुंचने की उम्मीद है.
अमरावती स्तूप : अमरावती स्तूप के कुछ हिस्से को आजादी से पूर्व ही अंग्रेज अधिकारियों द्वारा ले जाया गया था. साल 1845 में सर वाल्टर इलियट ने इसे मद्रास म्यूजिम में रखवा दिया था. बाद में इसे संरक्षित करने का हवाला देकर लंदन शिफ्ट कर दिया गया. इस स्तूप को आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिल में स्थापित किया गया था.
भगवान राम, लक्ष्मण, सीता : लंदन की मेट्रोपोलिटन पुलिस ने बीते सितंबर महीने में भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता की प्रतिमा भारतीय उच्चायोग को सौंपी थी. कांस्य की ये प्रतिमाएं 13वीं सदी की बतायी जा रही हैं, जिसे 20 साल पहले चोरी किया गया था. बाद में ये मूर्तियां तस्करी करके लंदन भेज दी गयीं. भगवान शिव यानी नटराज की प्रतिमा 16वीं सदी में निर्मित एक शानदार कलाकृति है. यह प्रतिमा 1970 के दशक में तमिलनाडु के एक मंदिर से चोरी की गयी थी. हालांकि, भगवान नटराज की इस प्रतिमा को ऑस्ट्रेलिया ने भारत को वापस कर दिया है.
कोहिनूर हीरा : कोहिनूर हीरे की ऐतिहासिक कहानी बहुत ही दिलचस्प है. आंग्ल-सिख युद्ध के बाद इसे अंग्रेजों ने हासिल कर लिया था. उसके बाद पिछले डेढ़ शताब्दी से कोहिनूर ब्रिटिश ताज की शोभा बढ़ा रहा है. भारत के अलावा कोहिनूर पर पाकिस्तान और बांग्लादेश भी दावा करते हैं.
टीपू का बाघ : इस ऐतिहासिक कलाकृति को अंग्रेजों ने श्रीरंगपटनम से हासिल किया था. वर्तमान में यह लंदन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम में रखा गया है. टीपू के बाघ को अन्य भारतीय सामानों के साथ प्रदर्शनी में देखा गया था. टीपू सुल्तान के बाघ की कलाकृति को 1799 में इस्ट इंडिया कंपनी ने घेराबंदी करके कब्जा कर लिया था.
हाल के दिनों में वापस लायी गयीं कुछ महत्वपूर्ण कलाकृतियां : ब्रिटेन से- बीते सितंबर महीने में ब्रिटेन ने 15वीं सदी की भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की प्रतिमाओं को वापस किया था. इन्हें तमिलनाडु के विजयनगर कालीन एक मंदिर से चोरी किया गया था. साल 1998 में बारोली राजस्थान के घाटेश्वर मंदिर से चोरी नटेशा शिव मूर्ति को भी ब्रिटेन ने 2019 में वापस किया था. ब्रिटेन से नवनीत कृष्ण की 17वीं सदी की कांस्य प्रतिमा और दूसरी शताब्दी के चूना-पत्थर के नक्काशीदार स्तंभ आकृति को भी प्राप्त किया गया था. इससे पहले 2018 में भारतीय उच्चायोग को 12वीं सदी की गौतम बुद्ध की प्रतिमा सौंपा गयी थी.
अमेरिका से- इस वर्ष अगस्त में अमेरिकी अधिकारियों ने भारत को कुछ पुरातन कलाकृतियां सौंपी थी. इसमें शिव-पार्वती की लाइमस्टोन की प्रतिमा और संगमरमर की एक अप्सरा की प्रतिमा शामिल थी. इससे पहले 2018 में भारत के वाणिज्य दूतावास को न्यूयॉर्क में ग्रेनाइट की लिंग्दोगभावामूर्ति और ज्ञान देवी मंजूश्री की प्रतिमा सौंपी गयी थी.
जून, 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे पर अमेरिका ने भारत को 200 से अधिक शिल्पकृतियां सौंपी थी, जिसकी कीमत लगभग 100 मिलियन डॉलर अनुमानित थी. ये धार्मिक मूर्तियां कांसे और अन्य धातुओं की बनी हुई हैं, इनमें चोल काल के संत मानिक्काविचावकार की मूर्ति भी थी, जिसे चेन्नई के सिवन मंदिर से चुराया गया था.
ऑस्ट्रेलिया से- जनवरी, 2020 में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने भारत को सांस्कृतिक तौर पर कई महत्वपूर्ण कलाकृतियां सौंपी थी. इसमें तमिलनाडु से 15वीं सदी की निर्मित दो द्वारपालों की प्रतिमा, राजस्थान या मध्य प्रदेश से नागराज की कलाकृति थी, जो संभवत: छठी से आठवीं सदी की मानी जा रही है. साल 2016 में नेशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने तीन प्राचीन कलाकृतियां भारत को सौंपी थी, 2014 में नटराज की प्रतिमा, 2007 में अर्धनारीश्वर की प्रतिमा ऑस्ट्रेलिया से प्राप्त की गयी थीं.
नीदरलैंड ने कलाकृतियों को वापस करने का किया वादा: नीदरलैंड के संग्रहालयों ने श्रीलंका, इंडोनेशिया समेत अनेक एशियाई देशों से लूटे गये सामानों को वापस करने की घोषणा की है. हाल के दिनों में हैदराबाद में मांग उठती रही है कि डच 17वीं सदी के गोलकुंडा साम्राज्य के लघु चित्रकारियों को वापस करें. इसके अलावा, 300 साल पहले तमिलनाडु के चोल राजाओं के रॉयल चार्टर के वापसी की भी मांग हो रही है, वर्तमान में यह नीदरलैंड के लीडेन यूनिवर्सिटी में है.
Posted by : Pritish Sahay