मणिपुर में जारी हिंसा की लपट संसद तक पहुंच चुकी है. कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर संसद में बयान देने की मांग कर रहे हैं. अबतक संसद सत्र हंगामे की भेंट चढ़ चुका है. मणिपुर का मामला अब अविश्वास प्रस्ताव तक पहुंच चुका है. विपक्ष केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. अबतक संसद में 27 बार सरर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है. आइये इसके इतिहास के बारे में जानें.
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव ?
अविश्वास प्रस्ताव, जिसे नो कॉन्फिडेंस मोशन भी कहा जाता है, कई कारणों से सदन में लाया जाता है. जब लोकसभा में किसी भी दल को लगता है कि सरकार अल्पमत में आ गयी है या फिर सरकार सदन में अपना विश्वास खो चुकी है, तो वैसी स्थिति में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है.
अविश्वास प्रस्ताव की क्या है पूरी प्रक्रिया ?
अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही लाया जाता है. इसे कोई भी सांसद ला सकता है. लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावाली के नियम 198(1) से 198(5) तक इसका उल्लेख है.
नियम 198(1)(क): इस नियम के अनुसार अविश्वास लाने वाले सदस्य को पहले स्पीकर के बुलाने पर सदन से अनुमति मांगना पड़ता है.
नियम 198(1)(ख): सदस्य को प्रस्ताव की लिखित सूचना सुबह 10 बजे तक लोकसभा सेक्रेटरी को देनी होती है.
नियम 198(2): अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन होना चाहिए.
नियम 198(3): स्पीकर की अनुमति मिलने के बाद इस पर चर्चा के लिए दिन तय होती है.
नियम 198(4): अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के अंतिम दिन स्पीकर वोटिंग कराते हैं और उस आधार पर फैसला करते हैं.
अविश्वास प्रस्ताव वोटिंग में राज्यसभा सांसद नहीं लेते हिस्सा
अविश्वास प्रस्ताव को लेकर जब वोटिंग होती है, तो उसमें राज्यसभा सांसद हिस्सा नहीं लेते. उन्हें वोटिंग का अधिकार प्राप्त नहीं है. इसमें केवल लोकसभा के सदस्य की हिस्सा लेते हैं. अविश्वास प्रस्ताव होने पर सरकार अपने सांसद के लिए व्हिप भी जारी कर सकती है. अविश्वास प्रस्ताव में अगर आधे से अधिक सदस्य इसके समर्थन में वोटिंग करते हैं, तो सरकार गिर जाएगी.
मोदी सरकार के खिलाफ क्यों लाया जा रहा अविश्वास प्रस्ताव
दरअसल कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अन्य घटक दल मानसून सत्र के पहले दिन से ही मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से संसद में बयान देने और चर्चा कराए जाने की मांग कर रहे हैं. इस मुद्दे पर हंगामे के कारण संसद के मानसून सत्र के पहले चार दिन दोनों सदनों की कार्यवाही बार-बार बाधित हुई. मणिपुर में दो महिलाओं की निर्वस्त्र परेड का वीडियो गत बुधवार, 19 जुलाई को सामने आया था जिसके बाद देश भर में आक्रोश फैल गया और विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन भी हुए. मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की बहुसंख्यक मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इसी मुद्दे को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है और अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में है.
केंद्र सरकार को अबतक कितनी बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा
लोकसभा में केंद्र सरकार को अबतक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है. सबसे पहले देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सरकार को इसका सामना करना पड़ा था. 1962 में चीन से हारने के बाद 1963 में कांग्रेस नेता आचार्य कृपलानी से सबसे पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया था. हालांकि प्रस्ताव पूरी तरह से फेल हुआ. इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में सबसे अधिक 15 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. हालांकि हार बार वह सरकार बचाने में कामयाब रही थीं. इसके अलावा लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव सरकार के खिलाफ तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. राजीव गांधी, वीपी सिंह, चौधरी चरण सिंह, मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ एक-एक बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए. मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार को भी एक बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है. इससे पहले 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था.
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अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी बहस का रिकॉर्ड 24.32 घंटा है
अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी बहस का रिकॉर्ड 24.32 घंटे का रहा है. लाल बहादुर शास्त्री के समय में यह हुआ था. उन्हें तीन बार बहुमत साबित करना पड़ा था. दो अवसरों पर सरकार गिर गयी थी. एक 1979 में और दूसरा 1999 में. 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार अविश्वास प्रस्ताव हार गयी थी और सरकार गिर गयी थी. जबकि 1999 में अन्नाद्रमुक के गठबंधन से अलग होने से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गयी थी. 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ जो अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, उसमें सरकार के समर्थन में 325 और विपक्ष में केवल 126 वोट पड़े थे.
पीएम मोदी ने पहले ही कर दी थी अविश्वास प्रस्ताव की भविष्यवाणी
केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की विपक्षी दलों की योजना के बीच 2018 में इस तरह के प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जवाब सोशल मीडिया पर खूब ट्रेंड हो रहा है जिसमें उन्होंने विपक्षी पार्टियों का उपहास करते हुए कहा था कि उन्हें 2023 में भी ऐसा ही प्रस्ताव लाने की तैयारी करनी चाहिए. उन्होंने लोकसभा में 2018 में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए कहा था, मैं आपको अपनी शुभकामनाएं देना चाहता हूं कि आप इतनी तैयारी करें कि 2023 में फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाने का आपको मौका मिले. विपक्षी पार्टी के एक सदस्य को जवाब देते हुए मोदी ने कहा था कि यह अहंकार का नतीजा है कि कांग्रेस की सीटों की संख्या कभी 400 से अधिक होती थी जो 2014 के लोकसभा चुनावों में घटकर करीब 40 रह गई.
लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा की मंजूरी
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. यह प्रस्ताव कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई द्वारा सदन में लाया गया था. मणिपुर हिंसा के मुद्दे को लेकर संसद में जारी गतिरोध के बीच, विपक्षी कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया. गोगोई लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता हैं. इससे पहले कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने बताया कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के लिए लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय में नोटिस दिया गया है. विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के घटक दलों की बैठक में अविश्वास प्रस्ताव लाने के बारे में फैसला हुआ था. कांग्रेस ने अपने सदस्यों को व्हिप जारी करके कहा है कि वे बुधवार को सुबह साढ़े दस बजे संसद भवन स्थित पार्टी के संसदीय दल के कार्यालय में मौजूद रहें.
लोकसभा में क्या है सरकार की स्थिति
लोकसभा में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की स्थिति में क्या हो सकता है. केंद्र की मोदी सरकार फिलहाल लोकसभा में काफी मजबूत है. लोकसभा में सरकार के साथ 329 सांसद हैं. जिसमें बीजेपी के 301, AIADMK के 1, शिवसेना शिंदे गुट के 13, RLJP पारस के 5, अपना दल एस के 2, एलजेपी आर के 1, एनपीपी के 1, एनडीपीपी के 1, एसकेएम के 1, एजेएसयू 1 और एमएनएफ के एक सदस्य. जबकि विपक्ष की बात करें तो लोकसभा में सरकार के खिलाफ कुल 142 सदस्य हैं. जिसमें कांग्रेस के 49, डीएमके के 24, टीमएमसी के 23, जेडीयू के 16, एनसीपी के 5 और शिवसेना यूबीटी के 6 सांसद शामिल हैं.