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सोशल मीडिया में 67.2 प्रतिशत फेक न्यूज स्वास्थ्य से संबंधित, रिसर्च का खुलासा 

स्वास्थ्य से संबंधित गलत सूचनाओं के प्रसारण से महामारी को नियंत्रित करने के उपायों पर खतरा मंडराता है और इससे आम लोगों को भी परेशानी होती है.

कोविड महामारी ने स्वास्थ्य सेवा की प्रधानता को काफी बढ़ा दिया है. कोविड के दौरान स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता, परामर्श और स्वास्थ्य विचार-विमर्श भी डिजिटल हो गये हैं. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि कोविड-19 महामारी के दौरान सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर स्वास्थ्य से संबंधित भ्रामक समाचार धड़ल्ले से प्रसारित हुए.

स्वास्थ्य से संबंधित गलत सूचनाओं के प्रसारण से महामारी को नियंत्रित करने के उपायों पर खतरा मंडराता है और इससे आम लोगों को भी परेशानी होती है. ढाका विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा प्रतिष्ठित पत्रिका एमडीपीआई में ‘फेक न्यूज’ पर प्रकाशित एक अध्ययन में बहुत ही रोचक तथ्य सामने आये हैं.

इस अध्ययन में फेक न्यूज से संबंधित सात विषय शामिल थे जिनमें स्वास्थ्य, धार्मिक, राजनीतिक, अपराध, मनोरंजन और विविध शामिल है. स्वास्थ्य संबंधी फर्जी खबरें (67 प्रतिशत) सूची में सबसे ऊपर है. इस खबरों में दवा, चिकित्सा, स्वास्थ्य सुविधाएं, वायरल संक्रमण और डॉक्टर मरीज के मुद्दे शामिल हैं.

फेक न्यूज के रूप में लिखित सामाग्री, फोटो, ऑडियो, वीडियो के रूप में शामिल आती है. अध्ययन के अनुसार सबसे अधिक (42.7 प्रतिशत) फेक न्यूज लिखित सूचनाओं के रूप में सामने आते हैं उसके बाद वीडियो का नंबर आता है.

दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर फर्जी खबरें सोशल मीडिया पर प्रकाशित होती हैं. फेक न्यूज की वजह से कोविड 19 बीमारियों के बारे में भ्रामक जानकारी लोगों तक पहुंचीं जिसकी वजह से वे परेशान भी हुए.

‘हेल्थ4 ऑल ऑनलाइन’ शो में 2021 की विशेष उपलब्धियों पर चर्चा हुई, जिसमें फेक न्यूज से संबंधित जानकारी सामने आयी है. स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने केलिए हील फाउंडेशन ने ‘हेल्थ 4 ऑल ऑनलाइन’ साप्ताहिक हेल्थ शो शुरू किया है, जिसमें स्वास्थ्य से संबंधित गंभीर विषयों पर चर्चा होती है.

ऑस्ट्रेलिया में स्वास्थ्य और प्रबंधन संस्थान में जन स्वास्थ्य के प्रोफेसर और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संयोजक डॉ प्रो जो थॉमस ने कहा, ओमिक्रॉन में बच्चों को संक्रमित करने की प्रवृत्ति है. भारत सरकार को शुरू में स्वास्थ्य बजट में 5 प्रतिशत की वृद्धि करनी चाहिए और फिर धीरे-धीरे इसे 15 प्रतिशत तक बढ़ा देना चाहिए. लॉकडाउन लगाना एक समझदारी भरा निर्णय नहीं होगा,क्योंकि इससे आर्थिक बोझ पड़ता है.

टीकाकरण और अन्य निवारक उपायों का सख्ती से पालन करना उचित रहेगा. जैसा कि भारत में स्कूल खुलने शुरू हो गए हैं, भारतीय बच्चों के संक्रमित होने की आशंका कम है, लेकिन वे वायरस के वाहक हो सकते हैं. डॉनिमेश गुप्ता, प्रमुख, वैक्सीन इम्यूनोलॉजी लेबोरेटरी, नेशनलइंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी विभाग,विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने कहा, बूस्टर टीके प्रतिरक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं. जिनका प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत है वो व्यक्ति इन टीकों के साथ ओमिक्रॉनसे लड़ सकते हैं, लेकिन कमजोर प्रतिरक्षा वाले बुजुर्ग संक्रमण का मुकाबलाकरने में सक्षम नहीं होंगे.

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