बीबीसी हिंदी के प्रसिद्ध प्रसारक राजनारायण बिसारिया का 93 साल की उम्र में निधन, अस्पताल में थे भर्ती

मध्य प्रदेश के भिण्ड शहर में जन्मे बिसारिया जी की प्रारंभिक शिक्षा गूना और मुरैना में हुई थी. ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से हिंदी में स्नातकोत्तर (एमए) की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्रयाग जाकर डॉ रामकुमार वर्मा के निर्देशन में शोध कार्य किया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 18, 2022 4:59 PM

नई दिल्ली : बीबीसी हिंदी के लोकप्रिय प्रसारक और हिंदी के वरिष्ठ कवि, गीतकार, मीडिया और नाट्यकर्मी राजनारायण बिसारिया नहीं रहे. वे 93 वर्ष के थे और दिल का दौरा पड़ने के कारण पिछले कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती थे. बीबीसी से सेवानिवृत्त होने के बाद बिसारिया जी दिल्ली लौट गए थे और ‘परम्परा’ नाम की साहित्यिक संस्था चलाते थे. वे छह वर्षों तक प्रसार भारती बोर्ड के मानद सदस्य भी रहे.

बीबीसी में राजनारायण बिसारिया के सहकर्मी शिवकांत शर्मा बताते हैं, ‘बीबीसी में काम करते हुए मैंने बिसारिया जी से बहुत कुछ सीखा. पत्रकारिता के अफ़रा-तफ़री के माहौल में उनकी शांत और सहज भाव से काम करने की शैली से बड़ा सुकून मिलता था. सामयिक चर्चाओं के दैनिक कार्यक्रमों के अलावा बिसारिया जी ने बरसों तक सांस्कृतिक चर्चा और बालजगत जैसे लोकप्रिय साप्ताहिक कार्यक्रम भी किए जिन पर उनकी रचनात्मकता और साहित्यिक शैली की छाप स्पष्ट दिखाई देती थी’

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‘जानवरों का बाड़ा’ यादगार नाटक

शिवकांत शर्मा ने आगे बताया कि बिसारिया जी ने बीबीसी के पूर्व प्रसारक और उपन्यासकार जॉर्ज ऑरवेल के कालजयी व्यंग्यात्मक उपन्यास एनिमल फार्म (Animal Farm) का रेडियो नाट्य रूपांतर ‘जानवरों का बाड़ा’ लिखा और निर्देशित किया था, जिसमें काम करना एक यादगार अनुभव था. अनुभव में दशकों वरिष्ठ होने के बावजूद उनका व्यवहार बेहद दोस्ताना और गर्मजोशी भरा रहता था, जिसकी वजह से हम नौसिखिए लोग भी बेतकल्लुफ़ी से काम कर लेते थे.

मध्य प्रदेश के भिंड में जन्मे थे बिसारिया

मध्य प्रदेश के भिण्ड शहर में जन्मे बिसारिया जी की प्रारंभिक शिक्षा गूना और मुरैना में हुई थी. ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से हिंदी में स्नातकोत्तर (एमए) की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्रयाग जाकर डॉ रामकुमार वर्मा के निर्देशन में शोध कार्य किया. परंतु, इस बीच उनका मन दूसरी ओर मुड़ गया और शोधपत्र लिखे बिना ही वे श्रेष्ठ साहित्यकारों के बीच लेखन कार्य में जुट गये. उनके कई लेख ‘आलोचना’ पत्रिका में प्रकाशित हुए.

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आकाशवाणी के काम के साथ कविताएं भी लिखीं

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आकाशवाणी में नियुक्ति के बाद उन्होंने जालंधर, जयपुर, इलाहाबाद, पोर्टब्लेयर और फिर से आकाशवाणी जयपुर में प्रोड्यूसर और कार्यक्रम अधिकारी के पदों पर काम किया. प्रशासनिक कार्य के साथ-साथ उन्होंने अपना प्रसारण और लेखन का कार्य जारी रखा. साथ ही, वे कविताएं लिखते और काव्य सम्मेलनों में भाग भी लेते रहे.

दूरदर्शन में जिम्मेदारियों का निर्वहन

शिवकांत शर्मा बताते हैं कि राजनारायण बिसारिया अपनी रचनाशीलता के कारण दूरदर्शन में चयनित होकर उन्होंने ऊंचे पदों की ज़िम्मेदारियों का निर्वाह किया. साथ ही ‘श्री अरविंद की सावित्री’ के एक सर्ग का हिंदी में रूपान्तरण व निर्देशन’ एवं ‘सुब्रह्मण्यम भारती’ के गीतों का हिन्दी रूपांतरण भी किया. उनके मंचनों में ‘अमृतसर सिफ़्ती दा घर’ शीर्षक से किया ‘ध्वनि प्रकाश’ दिग्दर्शन भी शामिल है, जिसे आंचलिक ही नहीं वरन राष्ट्रीय समाचार पत्रों में भी लोकप्रिय नाट्य प्रदर्शन का आदर्श माना गया. श्रीनगर और दिल्ली के दूरदर्शन केंद्रों के निदेशक रहने के बाद वे बीबीसी हिंदी के प्रसारक बनकर लंदन आए.

लंदन से दिल्ली आने पर ‘परम्परा’ की शुरुआत

लंदन से दिल्ली लौट कर उन्होंने अपना पूरा ध्यान कविता लेखन और ‘परम्परा’ के संचालन पर लगाया. उनके दो कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. ‘कुछ देह – कुछ विदेह’ और ‘समय की रोशनी में’ जो दो खंडों में है. उनकी कविताओं को पढ़कर स्पष्ट हो जाता है कि उनकी रचनाशीलता का आयाम बड़ा होने के साथ-साथ वैविध्य पूर्ण भी है. उन्होंने कम लिखा है, पर जो भी लिखा, सारपूर्ण लिखा है. उनकी एक लंबी कविता ‘ग्रामवधू की विदा’ पचास के दशक में लोकप्रिय हुई थी और साहित्य चर्चा का का विषय बनी थी. उसकी कुछ पंक्तियां आज उनकी विदाई पर बरबस याद आ रही हैं…

”विदा की घड़ी है,

कि ढप ढप, ढपाढप

बहे जा रहे ढोल के स्वर पवन में

बधू सी जतन से सजाई हुई सी

लजाई हुई सी, पराई हुई सी

खड़ी है सदन में…”

मूलत: गीतकार थे राजनारायण बिसारिया

शिवकांत शर्मा ने बताया कि बिसारिया जी मूलतः एक गीतकार थे. पर, उनकी चुस्त बयानी कई बार ग़ज़ल का तेवर भी अपनाती नज़र आती है. भावानुरूप उनकी कविताएं कभी गीत कभी ग़ज़ल का आकार लेती हैं. जैसे…

”कुछ कहू मैं और तुम उत्तर न दो,

मैं नहीं इसके लिये तैयार था.

सिर्फ़ सम्मोहन रहा या प्यार था

कुछ नहीं मालूम पहली बार था.

एलबम तुम याद का मेरे लिए,

मैं जिसे तुम पढ़ चुकी अख़बार था.”

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शिवकांत शर्मा आगे बताते हैं कि शब्दों में मार्मिक अभिव्यक्ति उनका अतिरिक्त गुण हैं, जिसे संग्रह की तमाम कविताओं में आदि से अंत तक सुना और पहचाना जा सकता है. उनकी छोटी-छोटी कविताओं का चुटीला अंदाज बहुत मोहक है। परम्परा’ की विकास यात्रा की स्मृतियों और उपलब्धियों को केन्द्र में रखते हुए बिसारिया जी ने ‘परम्परा एक पड़ाव’ पुस्तक का सम्पादन भी किया, जो उनके सम्पादन कौशल और प्रतिभा का उत्कृष्ट उदाहरण है. अंतिम सांस तक उनके मन ने उन्हें रुकने या थकने की इजाजत नहीं दी. मन की इसी ज़िद को वे इन पंक्तियों में व्यक्त कर गए हैं…

”थका-थका है पूरा तन

अभी और चलने का मन.

भले मना कर दें ये घुटने

साँस भले ही लगे टूटने

उठे भले ही एक चरण

अभी और चलने का मन.”

भावभीनी श्रद्धांजलि

”बिसारिया जी अपनी इस यात्रा को पूरा करके अनंत की एक और यात्रा पर निकल गए हैं. ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दे और चिरशांति प्रदान करे. भावभीनी श्रद्धांजलि.”

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