नयी दिल्ली : मंगलेश डबराल यानी समकालीन हिंदी साहित्य का सबसे प्रसिद्ध नाम जो अब हमारे बीच नहीं है. कोरोना वायरस के संक्रमण से आज उनका निधन हो गया. वे पिछले कुछ दिनों से एम्स दिल्ली में भरती थे. आज शाम उनके निधन की सूचना आयी.
मंगलेश डबराल उत्तराखंड के रहने वाले थे उनकी आयु 72 साल की थी. समकालीन हिंदी कवियों में उन्होंने सबसे ज्यादा ख्याति पायी. उन्होंने देहरादून से शिक्षा पायी थी. उन्होंने कई साहित्यिक पत्रिका में अपना योगदान दिया.
मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं. पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु. वर्ष 2000 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इनकी कविताओं का अंग्रेजी, रुसी, जर्मन सहित विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ था. उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर है. सभी अपनी-अपनी संवेदना और यादें साझा कर रहे हैं.
रांची के प्रसिद्ध साहित्यकार अशोक प्रियदर्शी ने उनके निधन पर कहा-नयी कविता का स्तंभ गिर गया. डबराल जी बहुत ही सहज व्यक्ति थे. उनके निधन की खबर बहुत ही दुखद है. जाने वाले की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता. निकट भविष में हिंदी कविता में उनके जैसा सूक्ष्म दृष्टि वाला कवि होना मुश्किल है. वे बहुत ही सहज और सरल थे. रांची में आयोजित कवि सम्मेलन में वे आये थे, उनकी छवि आंखों में तैर गयी है. बहुत ही दुखद उनका जाना
साहित्यकार रणेंद्र ने कहा कि मैंने अपना अग्रज खो दिया. यह हिंदी साहित्य की क्षति तो है ही मेरी व्यक्तिगत क्षति भी है. मैंने और मेरी पीढ़ी के लोगों ने जिन साहित्यकारों और कवियों से बहुत कुछ सीखा था वे धीरे-धीरे इस संसार से जा रहे हैं. वे हमारे दीप स्तंभ थे. मैंने अपने उपन्यास गूँगी रुलाई का कोरस की पांडुलिपि उन्हें भेजी थी, व्यस्त होने के बावजूद उन्होंने मुझे उसमें सुधार करवाया था. वे बहुत ही सहज और सूक्ष्म दृष्टि के कवि साहित्यकार थे.
Posted By : Rajneesh Anand