केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भी किसानों का आंदोलन खत्म नहीं हुआ है. किसान अपनी बाकी के मांगों के साथ दोबारा आंदोलन कर रहे हैं. किसान अब न्यूनतम समर्थन मूल्य( MSP) की गारंटी सहित कई मांगों के लिए आंदोलन कर रहे हैं. ऐसे में सरकार के विशेषज्ञों ने एमएसपी को वैध बनाने के नुकसान गिनाए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि 23 फसलों की खरीद से बाजार का संतुलन बिगड़ेगा. जिससे निजी व्यापार खत्म होगा मुद्रास्फीति और कृषि निर्यात में भी गिरावट आएगी. जिससे वास्तव में किसान प्रभावित होंगे.
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने पेपर में उल्लेख किया है कि बागवानी, दूध और मत्स्य पालन (जहां सरकार का बाजार में हस्तक्षेप या तो कम है या बिल्कुल भी नहीं है) जैसे क्षेत्रों में 4-10 फीसदी की वार्षिक बढ़ोतरी देखी गई, जबकि अनाज में वृद्धि दर, जहां एमएसपी और दूसरे हस्तक्षेपों के कारण प्रभावित हुई है. अनाज में वृद्धि दर 2011-12 के बाद 1.1 फीसदी पर बने रहे हैं.
रमेश चंद ने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि महाराष्ट्र में 2018 में एमएसपी को सुनिश्चित करने के लिए कानूनी हस्तक्षेप का प्रयोग किया गया था जो पूरी तरह से विफल रहा था. वहीं, कृषि अर्थशास्त्री रमेश चंद ने कहा “आर्थिक सिद्धांत के साथ-साथ अनुभव बताता है कि मूल्य स्तर, जो मांग और आपूर्ति द्वारा समर्थित नहीं है, कानूनी तरीकों से कायम नहीं रह सकता है.”
रमेश चंद ने कहा कि राज्य सरकारों की तरफ केंद्रीय हस्तक्षेप के बिना ये किया जा सकता है, उन्होंने कहा केरल का उदाहरण दिया, जहां राज्य सरकार ने पिछले साल 16 फलों और सब्जियों के लिए न्यूनतम कीमतों की घोषणा की थी.
क्या है एमएसपी
न्यूनतम समर्थन मूल्य एक गारंडीट कीमत होती है. जो किसानों को उनकी फसलों पर मिलती है. जो किसानों को उनकी फसल पर मिलती है. अगर बाजार में फसल की कीमत कम भी होगी तब भी निश्चित समर्थन मूल्य के अनुसार फसलों के दाम किसानों को मिलते हैं. इससे बाजार में कीमतों में होने वाले उत्तर चढ़ाव का असर किसानों पर नहीं होता है.