नयी दिल्ली : जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता कविंदर गुप्ता भी सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा किये हुए थे. उन्होंने जिन्होंने जिला विकास परिषद चुनावों के लिए विवादास्पद रोशनी अधिनियम (अब रद्द) के तहत निजी व्यक्तियों को राज्य की भूमि के हस्तांतरण को “भूमि जिहाद” बताया था. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक पिछले नवंबर में वह खुद 2010 से 2017 की शुरुआत तक राज्य की भूमि के अवैध कब्जाधारी थे.
एडवोकेट शेख शकील द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन के तहत भलवाल तहसीलदार से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कविंदर गुप्ता ने दो अन्य लोगों सुभाष शर्मा और शिव रतन गुप्ता के साथ संयुक्त रूप से 23 कनाल, 9 मरला (8 कनाल = 1 एकड़ या 4,047 वर्ग मीटर, 1 मरला = 270 वर्ग फुट) यह कब्जा खसरा नंबर 1789 पर 2010 और 2016 के बीच जम्मू जिले में भलवल तहसील के घिंक गांव में किया गया.
शर्मा एक स्वतंत्र पार्षद हैं और जम्मू नगर निगम में इंद्रा कॉलोनी, जानीपुर का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं शिव रतन गुप्ता इंद्रा कॉलोनी के रहने वाले हैं. कविंदर गुप्ता और शर्मा दोनों ने घिंक गांव में सरकारी जमीन पर कब्जा की बात से इनकार किया है. गुप्ता ने कहा कि मैं अपने माता-पिता की कसम खाता हूं कि मुझे नहीं पता कि राजस्व अधिकारियों ने 23 कनाल और 9 मरला राज्य भूमि मेरे नाम पर कब और कैसे कर दिया.
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नवंबर 2020 में डीडीसी चुनावों से पहले, जम्मू-कश्मीर सरकार ने उन लोगों की सूची प्रकाशित की थी, जिनमें विपक्षी दलों के राजनेता और सेवानिवृत्त नौकरशाह शामिल थे. इन लोगों ने राज्य की भूमि पर कब्जा कर लिया था, या स्वामित्व उन्हें हस्तांतरित कर दिया था. ऐसा जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि (अधिभोगियों को स्वामित्व का अधिकार) अधिनियम, 2001 के तहत किया गया था. जिसे रोशनी एक्ट भी कहा जाता है.
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने 2014 में योजना के कार्यान्वयन में विभिन्न अनियमितताओं का उल्लेख किया और सतर्कता संगठन ने 20 से अधिक सरकारी अधिकारियों के खिलाफ राज्य की भूमि को निजी व्यक्तियों को हस्तांतरित करने में अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया. चार साल बाद, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में सत्य पाल मलिक ने रोशनी एक्ट को निरस्त कर दिया.
रोशनी एक्ट के निरस्त होने के बाद राज्य की भूमि के स्वामित्व को अपने कब्जेदारों को हस्तांतरित करने की मांग करने वाले सभी लंबित आवेदनों को रद्द कर दिया गया. अक्टूबर 2020 में जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने स्थापना के बाद से इसके प्रावधान के तहत की गयी सभी कार्रवाइयों को रद्द करते हुए अधिनियम को खत्म कर दिया और सीबीआई जांच का आदेश दिया.