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कई बड़े शहर पीते हैं गंगा का पानी, किसान उगाते हैं सब्जियां, बहती लाशों का कितना पड़ेगा असर, आईआईटी कानपुर करेगा शोध

गंगा में भारी संख्या में लाश तैरती नजर आ रही है खासकर रायबरेली, उन्नाव, कानपुर, फतेहपुर और कनौज जैसे इलाके में इन लाशों को लेकर चिंता इसलिए बढ़ रही है कि संभव है कि यह कोरोना संक्रमितों के शव हों, ऐसे में इन बहते शवों का असर पानी और आसपास के इलाकों पर कितना होगा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 16, 2021 8:02 AM

गंगा में लगातार बह रही लाशों की खबर परेशान कर रही है. गंगा नदी में बह रही लाशों का गंगा के पानी पर यहां की मिट्टी पर कितना असर पड़ा है इस पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर शोध करेगी.

गंगा में भारी संख्या में लाश तैरती नजर आ रही है खासकर रायबरेली, उन्नाव, कानपुर, फतेहपुर और कनौज जैसे इलाके में इन लाशों को लेकर चिंता इसलिए बढ़ रही है कि संभव है कि यह कोरोना संक्रमितों के शव हों, ऐसे में इन बहते शवों का असर पानी और आसपास के इलाकों पर कितना होगा.

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आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर डॉ विनोद ने बताया कि हम इसके प्रभाव पर शोध करेंगे. हमने इस संबंध में नेशनल मिशन ऑफ क्लीन गंगा ( NMCG ) स्तर पर बात की है. जिन शवों को गंगा में बहाया गया है संभव है कि गंगा में कोरोना वायरस साफ हो गया हो लेकिन यह पूरी तरह खत्म नहीं होगा. इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए गर्मी चाहिए और दूसरे तरह के तरीकों की जरूरत है ताकि वायरस पूरी तरह खत्म किया जा सके.

गंगा के किनारे शवों को दफनाने पर पूरी तरह रोक लगानी होगी. संभव है कि धार्मिक आधार पर लोग इसे गलत समझेंगे लेकिन सरकार को यह कड़ा फैसला लेना होगा ताकि गंगा को सुरक्षित रखा जा सके.

कई जिले खासकर यूपी के कई बडे जिलों को गंगा का पानी पीने के लिए सप्लाई किया जाता है. गंगा के इस पानी से भी किसान खेती करते हैं, सब्जियों में पानी पटाया जाता है. अगर इसमें कोरोना संक्रमण का वायरल घुला रहा और पूरी तरह खत्म नहीं हुआ तो हालात क्या होंगे.

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कानपुर के प्रोफेसर विनोद ने लोगों से अपील की है कि गंगा किनारे शवों को ना दफनायें और ना ही शव को गंगा में बहायें, गंगा किनारे कई जगहों पर ऐसी कब्रगाह मिली है जहां शवों को दफनाया गया है. कई जगहों पर तो महज दो फीट के गड्ढे में शव को दफना कर लोग चले गये. इस तरह से किसानों के लिए भी खतरा बढ़ा दिया गया है.

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