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मानसून पर अनिश्चितता के बादल की वजह बना ग्लोबल वार्मिंग, किसान परेशान

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग( IMD) ने पहले ही इस साल मानसून के सामान्य रहने की सबसे अधिक संभावना की पुष्टि भी की थी. हालांकि वैज्ञानिक पहले ही यह कह चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर भारतीय मानसून पड़ेगा

-सीमा जावेद-

देश में चार महीने बारिश का होता है और इसके लिए मंच तैयार होना शुरू हो गया है. 19 मई को दक्षिण-पश्चिम मानसून ने बंगाल की दक्षिण पूर्व खाड़ी में दस्तक दी है. वहां से इसने निकोबार द्वीप समूह और दक्षिण अंडमान सागर की ओर रुख किया है.

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग( IMD) ने पहले ही इस साल मानसून के सामान्य रहने की सबसे अधिक संभावना की पुष्टि भी की थी. हालांकि वैज्ञानिक पहले ही यह कह चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर भारतीय मानसून पड़ेगा. गौरतलब है कि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम) पुणे के डॉ रॉक्सी मैथ्यू मौसम विभाग के इस पूर्वानुमान से एकदम सहमत नहीं हैं. उनके अनुसार यह घोषणा एकदम तर्क विहीन है. पिछले 66 सालों के दौरान बारिश कम हुई है. अचानक से तेज बारिश होना और बाढ़ आना जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. मगर कुल बारिश के दिन कम हो रहे हैं.

दरअसल सामान्य मानसून का मतलब है बारिश के चार महीनों में नियमित बारिश होना ना कि एक महीना जमकर बारिश हुई और बाकी के तीन महीने बस बूंदाबांदी. ऐसे में भले ही वर्षा का स्तर सामान्य हो मगर यह पैटर्न सामान्य नहीं है और ना ही इसका फायदा किसानों को मिलता है. उल्टे पहले हुई तेज बारिश से फसल चौपट होती है और बाद में बारिश ना होने से सूख जाती है.

ज्ञात हो कि दुनिया भर में अल नीनो का प्रभाव बढ़ा है जिसकी वजह से 2023 के चार सबसे गर्म वर्षों में से एक होने की संभावना है. वर्ष 2022 पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहा है, भारत के तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति वैश्विक औसत से थोड़ी कम है. मौसम विभाग के हिसाब से ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछले 30 सालों में देश के गर्मी वाले क्षेत्रों में हीटवेव की आवृत्ति और अवधि लगभग 2.5 दिन बढ़ गयी है. जबकि इसी दौरान शीत लहर की अवधि और आवृत्ति कम हुई है. सामान्य शब्दों में कहें तो साल दर साल गर्मी बढ़ रही है. जलवायु परिवर्तन का बढ़ता असर दुनिया भर के मौसम में अनिश्चितता बढ़ा रहा है और भारत भी इससे अछूता नहीं है. मौसम का पैटर्न लगातार बदल रहा है.

फिलहाल केरल में मानसून की शुरुआत थोड़ा विलंबित है. केरल के तट पर मानसून के आगमन से बरसात के मौसम की शुरुआत का पता चलता है. मौसम विभाग (IMD) का मानना है कि 4 जून को मानसून केरल में पहुंच जाएगा. केरल में मानसून पिछले साल 29 मई को पहुंचा था. केरल में मानसून के देर से पहुंचने की वजह से देश से अन्य हिस्सों में भी बारिश का मौसम देर से शुरू होगा.

इन परिस्थितियों में लाखों छोटे किसान आसमान की तरफ अपनी नजरें उठाये हुए हैं, इनकी रोजी रोटी (फसल) हर साल मानसून पर निर्भर करती है. रबी में सरसों उगाने वाले किसान ही अब कपास की बुवाई कर रहे हैं क्योंकि बारिश के कारण रबी गेहूं की कटाई में देरी हो रही थी. बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने खड़ी गेहूं की फसल को तबाह कर दिया था, जिससे कटाई में देरी हुई थी. कई किसानों का दावा है कि पिछले कुछ वर्षों में मौसम काफी हद तक अप्रत्याशित रहा है और कपास की खेती में भी जोखिम हो गया है.

(लेखिका पर्यावरणविद्‌ हैं)

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