केंद्र सरकार ने 19,744 करोड़ रुपये के व्यय के साथ राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दे दी है. सरकार के इस फैसले से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वालों में खुशी की लहर है. पर्यावरणविद् केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं. हाइड्रोजन नीति को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद प्रभात खबर ने कुछ पर्यावरणविदों से बातचीत की.
देश की प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सीमा जावेद ने कहा कि भारत की हाइड्रोजन नीति आखिरकार सामने आ गयी है. इसमें हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने के लिए ढाई बिलियन डॉलर की व्यवस्था की गयी है. इस बहुप्रतीक्षित नीति का उद्देश्य ऊर्जा, उद्योग एवं परिवहन क्षेत्रों में कार्बन के उत्सर्जन को कम करना है. इस नीति में कई बातों का स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है. अन्य बातों के साथ-साथ इस नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि तेल शोधन इकाइयों को वर्ष 2035 तक अपने यहां इस्तेमाल किये जाने वाले ईंधन के एक तिहाई हिस्से को ग्रीन हाइड्रोजन से बदलना होगा.
सीमा जावेद ने कहा कि इस साल तक उर्वरक उत्पादन का कार्य 70 प्रतिशत ग्रीन हाइड्रोजन से करना होगा और नगरीय गैस वितरण ग्रिड को 15 प्रतिशत गैस को ग्रीन हाइड्रोजन से बदलना होगा. भारत वर्ष 2026 तक दुनिया में उत्पादित होने वाली कुल 26 गीगावाट इलेक्ट्रोलाइजर क्षमता में से इस वर्ष 8 गीगावट की इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण क्षमता का वादा करने की दिशा में भी आगे बढ़ा है. भारत का यह कदम वैश्विक स्तर पर जलवायु भू-राजनीतिक स्थिति को और मजबूत करने के लिए बढ़े कदम के रूप में दर्ज किया जायेगा.
वहीं लखनऊ के रहने वाले पर्यावरणविद् निशांत सक्सेना का कहना है कि कैबिनेट द्वारा हाइड्रोजन नीति को मंजूरी देना बहुत ही सकारात्मक पहल है. सरकार अगर इसी तरह दृढ़ निश्चय के साथ काम करेगी तो एनर्जी के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आयेगा. केंद्र में अभी एक स्टेबल गर्वमेंट है, जो अपने निर्णय मजबूती के साथ ले रही है. मोदी सरकर ने सोलर एनर्जी को लेकर भी अच्छी योजना बनायी है और उसपर पूरे देश में काम हो रहा है. निश्चित तौर पर हाइड्रोजन नीति को पूरी तरह लागू करने में चुनौतियां हैं, मसलन इसकी कीमत बहुत अधिक है जो आम लोगों के सामने बड़ी चुनौती बनकर उभर सकती है.
भारत एक ऐसा देश है जहां कीमत मायने रखती है, बावजूद इसके कहना ना होगा कि भारत एक बड़ी आबादी का देश है और यहां ऐसी समस्याओं का निराकरण हो जाता है. इसके अलावा स्टोरेज की समस्या भी सामने आ सकती है, लेकिन अभी यह देखना होगा कि सरकार जो नीति लेकर आयेगी उसमें किन-किन बातों का ख्याल रखा गया है. फिलहाल यह कहा जा सकता है कि हाइड्रोजन नीति को कैबिनेट की मंजूरी, पर्यावरण के लिहाज से बड़ा कदम है और सरकार के लिए यह कहा जा सकता है कि देर आये दुरुस्त आये. मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि 2070 तक हमने नेट जीरो उत्सर्जन का जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे हम पहले भी पूरा कर सकते हैं क्योंकि कार्बन उत्सर्जन से होने वाले नुकसान को सरकार समझ चुकी है. भारत कार्बन उत्सर्जन के मामले में विश्व के अग्रणी देशों में भारत शुमार है, ऐसे में हरित हाइड्रोजन नीति एक प्रशंसनीय कदम है.
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को कैबिनेट की मंजूरी के बाद केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा है कि देश को हाइड्रोजन उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाने के लिए उनका मंत्रालय जल्दी ही विस्तृत दिशानिर्देश जारी करेगा. इस मिशन के जरिये अगले पांच साल में सालाना 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लक्ष्य के साथ हाइड्रोजन से जुड़े क्षेत्रों में आठ लाख करोड़ रुपये का निवेश आने की उम्मीद है. उन्होंने बताया कि मिशन के तहत उपलब्ध कराये गये प्रोत्साहनों का मकसद हरित हाइड्रोजन की लागत में कमी लाना है, ताकि यह आम लोगों को सहज उपलब्ध हो.
आरके सिंह ने कहा- हमने निर्णय किया है कि इलेक्ट्रोलाइजर का विनिर्माण भारत में हो सकता है, इसीलिए हमने इसके घरेलू स्तर पर विनिर्माण को लेकर उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना पर काम किया है. इसके अंतर्गत 15,000 मेगावाट क्षमता का विनिर्माण आएगा. लेकिन हमें, उम्मीद है कि क्षेत्र में 2030 तक करीब 60,000 मेगावाट की क्षमता स्थापित होगी और यह पूरी दुनिया में सर्वाधिक होगी.
इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग हाइड्रोजन उत्पादन में किया जाता है. इसका उत्पादन इलेक्ट्रोलाइसिस प्रक्रिया के जरिये पानी को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में विभाजित कर किया जाता है. यह हाइड्रोजन बिना किसी प्रदूषण के उत्पादित होता है क्योंकि इसमें परंपरागत स्त्रोत से बनी बिजली नहीं, रिन्यूबल एनर्जी का प्रयोग होता है.
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