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रेमडेसिविर की कमी के बाद जागी सरकार, एंटी वायरल और दवा सामग्री के निर्यात पर लगाई रोक, जानिए क्या है देश की हालत

रेमडेसिविर एक एंटी वायरल इंजेक्शन है, जो वायरस के संक्रमण रोकने में सक्षम है. इसे 2014 के दौरान दुनिया में फैले इबोला संक्रमण के दौरान बनाया गया था और तभी से इसका इस्तेमाल सार्स और मेर्स के इलाज के लिए किया जाता है. 2020 में जब कोरोना महामारी का प्रसार पूरी भारत समेत दुनिया में हुआ, तब इस दौरान कोरोना मरीजों के इलाज में इस दवा का दोबारा इस्तेमाल किया जाने लगा.

नई दिल्ली : महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश समेत समूचे देश में कोरोना की दूसरी लहर में तेजी से बढ़ते नए मामलों के बीच कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली एंटी वायरल दवा रेमडेसिविर की भारी कमी के बाद आखिरकार सरकार की नींद खुल गई है. रविवार को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार निदेशालय की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि दवाओं के उत्पादन बढ़ाए जाने तक रेमडेसिविर और सक्रिया दवा सामग्री (एपीआई) के निर्यात पर रोक लगा दी गई है.

इबोला संक्रमण से एंटी वायरल के रूप में हो रहा इस्तेमाल

दरअसल, रेमडेसिविर एक एंटी वायरल इंजेक्शन है, जो वायरस के संक्रमण रोकने में सक्षम है. इसे 2014 के दौरान दुनिया में फैले इबोला संक्रमण के दौरान बनाया गया था और तभी से इसका इस्तेमाल सार्स और मेर्स के इलाज के लिए किया जाता है. 2020 में जब कोरोना महामारी का प्रसार पूरी भारत समेत दुनिया में हुआ, तब इस दौरान कोरोना मरीजों के इलाज में इस दवा का दोबारा इस्तेमाल किया जाने लगा. इलाज के दौरान यह पाया गया कि रेमडेसिविर हल्के संक्रमित लोगों और अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों के शुरुआती इलाज में यह बेहतरीन तरीके से काम करता है. संक्रमण गंभीर होने के बाद इसका इस्तेमाल करने पर मरीजों पर इसका प्रभाव कम पड़ता है.

कुल उत्पादन का 70 फीसदी महाराष्ट्र में खपत

भारत में अकेले महाराष्ट्र में कोरोना के 11 सक्रिय मामले हैं, जिसे अब रोजाना करीब 40 से 50 हजार रेमडेसिविर की जरूरत है. हालांकि, पिछले साल कोरोना संक्रमण के अपने चरम पर पहुंचने के दौरान यहां पर रोजाना करीब 30 हजार रेमडेसिविर की जरूरत थी. इस दवा की मांग बढ़ने के पीछे कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले हैं, जिसका असर इस दवा के उत्पादन और आपूर्ति पर भी देखने को मिल रहा है.

मध्य प्रदेश के ड्रग इंस्पेक्टर ने कहा कि उसे रेमडेसिविर की जरूरत के हिसाब से आधी आपूर्ति की जा रही है. देश में रेमडेसिविर का होने वाले कुल उत्पादन में से करीब 70 फीसदी दवा महाराष्ट्र को दे दिया जाता है. बाकी के 30 फीसदी की आपूर्ति देश के दूसरे राज्यों में की जाती है. उन्होंने कहा कि यदि किसी हमें 7,000 शीशियों की जरूरत है, तो केवल 1,500 से 2,000 शीशियां ही उपलब्ध कराई जाती है.

तीन महीने तक उत्पादन रहा ठप

द इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, इस साल दो या तीन महीने तक देश में रेमडेसिविर का उत्पादन न के बराबर था. पिछले साल दवा निर्माता और आर्पूतिकर्ताओं ने इस दवा के उत्पादन में बढ़ोतरी करते हुए भारी भंडारण कर लिया था, लेकिन नवंबर-दिसंब में कोरोना के नए मामलों में गिरावट आने के बाद इसकी मांग में कमी आ गई.

कोरोना केस घटने पर सरकार ने कम कर दी थी मांग

एफडीए (महाराष्ट्र) के पूर्व ड्रग्स संयुक्त आयुक्त जेबी मंत्री ने कहा कि कुछ आपूर्तिकर्ताओं को एक्सपायर दवाओं को नष्ट करना पड़ा. जनवरी से निर्माताओं ने इसका उत्पादन कम कर दिया. भारत में रेमेडेसिविर के सबसे बड़ी निर्माता कंपनी हेटेरो हेल्थ केयर ने उत्पादन को करीब 5 से 10 फीसदी तक कम कर दिया. कमला लाइफसाइंसेज के एमडी डॉ डीजे जफर ने कहा कि सिप्ला को रेमडेसिविर की आपूर्ति करने वाली कमला लाइफसाइंसेज ने 31 जनवरी से 1 मार्च तक इसका उत्पादन की बंद कर दिया. कोरोना के केस कम होने के बाद सरकार ने हमें उत्पादन कम करने के लिए कहा था, क्योंकि इसकी मांग कम गई थी.

मार्च से दोबारा शुरू किया गया उत्पादन

फिलहाल, इसकी आपूर्ति प्रभावित हो रही है. फरवरी से कोरोना के नए मामले बढ़ने के बाद मार्च से फिर इस दवा का निर्माण दोबारा शुरू कर दिया गया है. हेटेरो हेल्थकेयर के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट प्रफुल्ल खसगीवाल ने कहा कि हमें कम से कम 25 विभिन्न तरीके कच्चे माल की जरूरत है. रेमडेसिविर के उत्पादन में हमें कई प्रकार के कच्चे माल की खरीद करनी थी और हमारे सप्लायर उसकी जल्दी आपूर्ति नहीं कर रहे. उन्होंने कहा कि रेमडेसिविर के उत्पादन से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक करीब 20 से 25 दिन लग जाते हैं. उत्पादन पिछले महीने से बढ़ा दिया गया है, लेकिन बाजार तक नए स्टॉक पहुंचने में अभी एक सप्ताह और लगेगा.

क्या है एक वायल की कीमत?

फार्मास्युटिकल विभाग ने देश के सभी सात निर्माताओं को हर महीने 38.80 लाख शीशी तक उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए कहा है. इसमें हेटेरो 10.50 लाख, सिप्ला 6.20 लाख, जायडस कैडिला 5 लाख और माइलान 4 लाख शीशियों का उत्पादन कर सकती हैं. फिलहाल, हेटेरो एक या दो दिन में 35,000 शीशियों का उत्पादन कर रहा है. जायडस कैडिला एक दिन में 12 लाख शीशियों तक उत्पादन करने की योजना बना रही है. इसने 100 मिलीग्राम की वायल की कीमत 2,800 रुपये से घटाकर 899 रुपये कर दी है, जो किसी भी निर्माता से सबसे सस्ती है. वहीं, सिप्ला ने 4,000 रुपये, हेटेरो ने 5,400 रुपये, डॉ रेड्डीज लैब ने 5,400 रुपये, माइलान ने 4,800 रुपये और जुबिलेंट ने 4,700 रुपये इसका एमआरपी रखा है.

अब हुई आपूर्ति की प्रक्रिया तेज

इस दौरान डॉ रेड्डीज के सीईओ (एपीआई और सर्विसेज) दीपक सपरा ने कहा कि इसकी अतिरिक्त मांग को पूरा करने की तैयारी कर ली गई है. सिप्ला ने कहा कि सभी ऑर्डर की आर्पूति कर दी गई है और आगे आपूर्ति प्रक्रिया जारी है. माइलान के एक प्रवक्ता ने कहा कि हम भारत में रोगी की जरूरतों को पूरा करने और उन तक दवा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सरकार के साथ निकटता से साझेदारी कर रहे हैं.

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Posted by : Vishwat Sen

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