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दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक 2023 आज लोकसभा में किया जाएगा पेश, सदन में हंगामे के आसार

दिल्ली अध्यादेश को लेकर विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के घटक दलों ने अपने सांसदों को व्हिप जारी कर दिया है. कांग्रेस समेत इस गठबंधन के सभी दलों का यह प्रयास है कि इस विधेयक पर चर्चा और मतदान के दौरान सदन में उनके सदस्यों की 100 फीसदी मौजूदगी रहे.

दिल्ली सेवा विधेयक मंगलवार को यानी आज लोकसभा में पेश किया जाएगा. गृह मंत्री अमित शाह इस विधेयक को लोकसभा में पेश करेंगे. इसको लेकर इसे सूचीबद्ध कर लिया गया है. इधर विधेयक पर संसद में सरकार को कड़ी चुनौती देने के लिए विपक्ष ने भी अपनी तैयारी पूरी कर ली है.

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों ने जारी किया व्हिप

दिल्ली अध्यादेश को लेकर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों ने अपने सांसदों को व्हिप जारी कर दिया है. यही नहीं अस्वस्थ नेताओं के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था भी करने की तैयारी कर ली गयी है. कांग्रेस समेत इस गठबंधन के सभी दलों का यह प्रयास है कि इस विधेयक पर चर्चा और मतदान के दौरान सदन में उनके सदस्यों की 100 फीसदी मौजूदगी रहे.

राज्यसभा में इस विधेयक के पेश किए जाने के दौरान सदन में पहुंच सकते हैं मनमोहन सिंह

विपक्ष से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा में इस विधेयक के पेश किए जाने के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (90) के व्हीलचेयर पर सदन में आने की संभावना है, जबकि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन (79) भी संसद की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं. मनमोहन सिंह और सोरेन लंबे समय से अस्वस्थ हैं. सूत्रों ने कहा कि जद (यू) सांसद 75 वर्षीय बशिष्ठ नारायण सिंह के भी एम्बुलेंस में संसद पहुंचने की संभावना है.

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क्या है मामला

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में तबादलों और नियुक्तियों संबंधी मामलों में निर्णय की शक्तियां दिल्ली सरकार को प्रदत्त की थीं और शीर्ष अदालत के इसी आदेश को निरस्त कराने के लिए दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर केंद्र द्वारा जारी अध्यादेश की जगह लेने के लिए यह विधेयक लाया जा रहा है.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को निष्प्रभावी बनाने के लिए समय-समय पर अध्यादेश जारी किए

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को निष्प्रभावी बनाने के लिए समय-समय पर अध्यादेश जारी किए हैं और दिल्ली सरकार से सेवाओं पर नियंत्रण वापस लेने से संबंधित अध्यादेश इस कड़ी में नवीनतम है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद दिल्ली एनसीटी सरकार (संशोधन) अध्यादेश जारी किया था. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उस विधेयक को मंगलवार को मंजूरी दे दी जो दिल्ली में समूह-ए अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण के गठन के लिए घोषित अध्यादेश की जगह लेगा. जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो महत्वपूर्ण मुद्दों पर न्यायिक घोषणाओं को निष्प्रभावी बनाने के लिए सरकार को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है. आजादी के बाद से विभिन्न सरकारों ने अध्यादेश जारी करने के अधिकार का प्रयोग किया है. केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में ‘समूह-ए’ अधिकारियों के तबादले और पदस्थापन के लिए एक प्राधिकरण बनाने के वास्ते ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023’ जारी किया था. उससे एक सप्ताह पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पुलिस, लोक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर विभिन्न सेवाओं का नियंत्रण निर्वाचित सरकार को सौंपने का आदेश दिया था.

केंद्र सरकार ने इससे पहले दो अध्यादेश जारी किया था

उससे पहले, केंद्र ने दो अध्यादेश जारी किए थे जो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशकों के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने के प्रावधान से संबंधित थे. ये अध्यादेश 2021 में सर्वोच्च अदालत के उस फैसले के बाद जारी किए गए कि सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त कर चुके अधिकारियों के कार्यकाल का विस्तार केवल विशेष मामलों में ही किया जाना चाहिए. इसी प्रकार एक अन्य मामले में, केंद्र सरकार ने न्यायाधिकरण सुधार अध्यादेश, 2021 जारी किया जिसमें न्यायाधिकरण के सदस्यों के कार्यकाल, सेवानिवृत्ति की आयु और सेवा शर्तों को निर्धारित किया गया। अध्यादेश में न्यायाधिकरणों के अध्यक्षों और सदस्यों का कार्यकाल सर्वोच्च अदालत द्वारा निर्धारित पांच साल को कम कर चार साल कर दिया गया.

2018 में भी अध्यादेश जारी किया था

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कानून के तहत की गई गिरफ्तारी के खिलाफ कुछ सुरक्षा उपायों पर सर्वोच्च अदालत के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए वर्ष 2018 में एक अध्यादेश जारी किया गया था. प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक, सरकार सर्वोच्च अदालत के फैसलों को दरकिनार करने के लिए अध्यादेश जारी करती रही है.

सबसे पहले 1951 में लाया गया था अध्यादेश

इस संबंध में पहला उदाहरण 1951 में चंपकम दोरैराजन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए एक संशोधन विधेयक पारित किया गया था. यह मामला 1950 में मद्रास में कॉलेज में दाखिला में आरक्षण प्रणाली से संबंधित था जो मद्रास प्रेसीडेंसी द्वारा 1927 में जारी सांप्रदायिक सरकारी आदेश (सीजीओ) पर आधारित था. इसके तहत सरकारी कॉलेजों में दाखिला और नौकरियों के लिए किसी व्यक्ति की जाति पर विचार किया जाता था. सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि सीजीओ के आधार पर प्रवेश नहीं दिया जा सकता है. इस फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए, नेहरू सरकार ने संविधान में पहला संशोधन किया और 18 जून, 1951 के प्रभाव नौवीं अनुसूची में अनुच्छेद 31ए और 31बी को शामिल किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कुछ कानून वैध माने जाएं, भले ही उनसे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता हो.

इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण मामले में संविधान संशोधन किया गया था

एक अन्य घटनाक्रम में, इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण मामले में आए फैसले को रद्द करने के लिए भी संविधान संशोधन किया गया था, जिसमें इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी.

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