‘एक राष्ट्र, एक बाजार, एक कर’ की नीति से केंद्र सरकार ने 1 जुलाई 2017 को पूरे देश में जीएसटी (GST) लागू किया था. आज इसे पांच साल पूरे हो गए हैं. जीएसटी व्यवस्था लागू होने से उपभोक्ता को कई सारे फायदे हुए, जहां पहले उन्हें वैट, उत्पाद शुल्क, सीएसटी को मिलाकर औसतन 31 फीसदी टैक्स देना होता था. अब उत्पाद शुल्क, सर्विस टैक्स एवं वैट जैसे 17 स्थानीय कर और 13 उपकर को जीएसटी में समाहित कर दिया गया. हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहना है कि प्रधानमंत्री का “गब्बर सिंह टैक्स” अब “गृहस्थी सर्वनाश टैक्स” का रूप ले रहा है.
राहुल गांधी ने साल 2017 में गुजरात में आयोजित एक महासम्मेलन के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताया था. उन्होंने सरकारी नीतियों की निंदा करते हुए जीएसटी को आम आदमी पर बोझ बताया था. उन्होंने यह कहा था कि आम आदमी परेशान है, बेरोजगारी है महंगाई है, उसपर जीएसटी के रूप में गब्बर सिंह टैक्स आ गया है.
वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) ने देश की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को पूरी तरह से नया रूप दिया और कर प्रशासन और अनुपालन में भारी बदलाव किया. 1 जुलाई 2017 में 63.9 लाख से अधिक करदाता जीएसटी में चले गए. जून 2022 तक यह संख्या दोगुनी से अधिक 1.38 करोड़ से अधिक हो गई है. 41.53 लाख से अधिक करदाता और 67,000 ट्रांसपोर्टर ई-वे पोर्टल पर नामांकित हैं, जो औसतन 7.81 उत्पन्न करते हैं. इस प्रणाली के शुरू होने के बाद से, कुल 292 करोड़ ई-वे बिल उत्पन्न हुए हैं, जिनमें से 42 प्रतिशत माल के अंतर-राज्यीय परिवहन के लिए हैं. इस साल 31 मई को एक दिन में सबसे ज्यादा 31,56,013 ई-वे बिल मिले.
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भारत का सबसे व्यापक कर सुधार माना जाने वाला जीएसटी ‘एक राष्ट्र, एक बाजार, एक कर’ के सिद्धांत पर आधारित है. इसमें उत्पाद शुल्क, सेवा कर और वैट और 13 उपकर जैसे 17 स्थानीय शुल्क शामिल हैं. लेकिन मौजूदा जीएसटी व्यवस्था के तहत, चार-दर संरचनाएं हैं, जिसमें आवश्यक वस्तुओं पर 5 प्रतिशत की कम दर और कारों पर 28 प्रतिशत की शीर्ष दर लगाई जाती है. टैक्स के अन्य स्लैब 12 और 18 फीसदी हैं. इसके अलावा, सोने, गहनों और कीमती पत्थरों के लिए 3 प्रतिशत और कटे और पॉलिश किए गए हीरों पर 1.5 प्रतिशत की विशेष दर है. जीएसटी के पांच साल पूरे होने पर केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने ट्वीट किया, ”जीएसटी में कई कर और उपकर शामिल हो गए. अनुपालन का बोझ कम हुआ, क्षेत्रीय असंतुलन दूर हुआ और अंतर-राज्य अवरोध भी खत्म हुए. इससे पारदर्शिता और कुल राजस्व संग्रह भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है.”