Gujarat Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने कमर कस ली है. इस बार मैदान पर कांग्रेस और भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी (आप,AAP) भी है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गुजरात में मतदान इस साल नवंबर के अंत से शुरू हो जाएंगे और दिसंबर के अंत तक नयी सरकार प्रदेश में बन जाएगी. इस दिनों चुनाव आयोग गुजरात के दौरे पर है. यहां चर्चा कर दें कि गुजरात में कुल 182 सीटें हैं, इनमें से 27 सीटें ऐसी हैं जो आदिवासी और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, प्रदेश का साबरकांठा जिला आदिवासी बाहुल्य है, जहां की जनता कांग्रेस पर भरोसा करती आयी है.
हालांकि भाजपा की पकड़ धीरे-धीरे इन इलाकों में बढ़ रही है. गुजरात की प्रांतिज विधानसभा की बात करें तो यह सीट भी आदिवासी बहुल है, लेकिन अन्य सीटों के मुकाबले ये बिल्कुल अलग नजर आती है. इस सीट पर 1990 से लेकर अब तक भाजपा ने छह बार जीत का परचम लहराया है. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के गजेंद्र सिंह ने यहां से जीत दर्ज की है. पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के महेंद्र सिंह बरैया को पराजित किया था. वर्तमान समय में महेंद्र सिंह भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं और भाजपा का दामन थाम चुके हैं. अब कांग्रेस के पास इस सीट पर कोई मजबूत चेहरा नहीं दिख रहा है.
गुजरात की प्रांतिज विधानसभा सीट पर नजर डालें तो ये साबरकांठा जिले की एक सामान्य सीट है. इस सीट पर 2017 में भाजपा के गजेंद्र सिंह परमार ने कांग्रेस उम्मीदवार महेंद्र सिंह बरैया को 2551 मतों से हराया था. इस सीट पर अब तक 11 विधानसभा चुनाव कराये गये हैं जिसमें 6 बार भाजपा और 4 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. वहीं एक बार अन्य दल को इस सीट पर जीत मिली है. यहां आपको बताते चलें कि 2012 को छोड़कर 1990 से लेकर अब तक भाजपा यहां छह बार चुनाव जीत चुकी है. गुजरात में होने वाले अगले चुनाव में भाजपा की जीत तय मानी जा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि महेंद्र सिंह बरैया भी अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं.
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साबरकांठा जनपद की प्रांतिज विधानसभा सीट एक सामान्य सीट है जिसपर सबकी नजर बनी हुई है. इस सीट पर सवर्ण मतदाताओं के अलावा सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति के वोटर हैं जो मतदाता के भविष्य का फैसला करते हैं. इनकी संख्या करीब 8 फीसदी है, इसके अलावा 3 फीसदी आदिवासी मतदाता भी इस क्षेत्र में हैं. इस सीट पर मुस्लिम मतदाता भी हैं जिनकी संख्या करीब एक प्रतिशत है. 87 फीसदी मतदाता ग्रामीण क्षेत्र से संबंध रखते हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रांतिज विधानसभा पर जाति समीकरण की बड़ी भूमिका रही है. यहां पर जाति समीकरण साधे बिना कोई भी पार्टी जीत दर्ज नहीं कर पाती है.