Gujarat Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है. इस चुनाव में कई समीकरण बदले है. 27 साल से सत्ता में रहने के बाद जहां एक ओर विरोधी लहर का बीजेपी को सामना करना पड़ सकता है वहीं दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी इस बार आक्रामक नजर आ रही है. कांग्रेस बीते 27 साल से गुजरात में सत्ता से दूर है, ऐसे में पार्टी की कोशिश होगी कि कैसे दुबारा जनता के बीच उम्मीद जगा सके.
2017 के चुनावों में बीजेपी 99 सीटें जीतने में सफल रही. जानकारी हो कि गत 1990 के बाद से बीजेपी का विधानसभा चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन रहा है. इस चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटें जीतीं थी. 1985 के बाद से यह कांग्रेस पार्टी का सबसे अच्छा प्रदर्शन है, जब उसने 182 सीटों वाली विधानसभा में रिकॉर्ड 149 सीटें जीती थीं. हालांकि, इस दौरान कांग्रेस को कई हार का सामना करना पड़ा और बाद में बीजेपी के विधायकों की संख्या बढ़कर 111 हो गई और कांग्रेस 62 पर सिमट गई है.
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इस बार के गुजरात चुनाव में तीन राजनीतिक दल बड़े रूप में नजर आ रहे है. पिछली बार गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबला 1990 में हुआ था, जब जनता दल (जद) ने 70 सीटें जीती थीं, भाजपा ने 67 और कांग्रेस ने 33. अब ऐसे में इस बार के चुनाव में कुछ ऐसे कारण है जो चुनाव में अच्छा खासा प्रभाव डाल सकती है. यहां उन कारकों पर एक नजर डालते है जो आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
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सत्ता विरोधी लहर: 1995 के बाद से बीजेपी के 27 साल के बहुमत के शासन ने समाज के कुछ वर्गों में असंतोष को बढ़ा दिया है. लोगों का मानना है कि बीजेपी के इतने वर्षों के शासन के बाद भी महंगाई, बेरोजगारी और जीवन से जुड़े बुनियादी मुद्दे अनसुलझे हैं.
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मोरबी पुल ढहना: मोरबी में 135 लोगों की जान लेने वाले एक सस्पेंशन ब्रिज के गिरने से प्रशासन और अमीर व्यापारियों के बीच सांठगांठ सामने आई है. मतदान के लिए जाते समय यह मुद्दा लोगों के दिमाग में हावी होने की संभावना है.
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सरकारी नौकरी: बार-बार पेपर लीक होने और सरकारी भर्ती परीक्षाओं के स्थगित होने से सरकारी नौकरी पाने के लिए मेहनत कर रहे युवाओं की उम्मीदें धराशायी हो गई हैं, जिससे काफी नाराजगी है.
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बिलकिस बानो मामले के दोषियों की जल्द रिहाई: गुजरात को संघ परिवार की हिंदुत्व प्रयोगशाला माना जाता है. बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में दोषियों की सजा में छूट का असर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के लिए अलग-अलग होगा. मुसलमान समुदाय बिलकिस बानो के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं जबकि हिंदुओं का एक वर्ग इस मुद्दे की अनदेखी करना चाहेगा.
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अल्पसंख्यक वोट बैंक: मुस्लिम, जो गुजरात की आबादी का लगभग 9% हिस्सा हैं, इस बार कांग्रेस से आगे निकल सकते हैं. जहां असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM उन्हें ऊर्जावान तरीके से लुभा रही है, वहीं आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने ‘लव जिहाद’ और बिलकिस बानो मामले के दोषियों की रिहाई जैसे सांप्रदायिक मुद्दों पर चुप्पी साध रखी है.
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उच्च बिजली दरें: गुजरात देश में सबसे अधिक बिजली दरों में से एक है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की ओर से हर महीने 300 यूनिट मुफ्त देने के ऑफर का लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. दक्षिणी गुजरात चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने हाल ही में वाणिज्यिक बिजली दरों में कमी की मांग करते हुए कहा कि उन्हें प्रति यूनिट 7.50 रुपये का भुगतान करना होगा, जबकि महाराष्ट्र और तेलंगाना में उनके उद्योग समकक्षों को 4 रुपये प्रति यूनिट का भुगतान करना होगा.
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भूमि अधिग्रहण : विभिन्न सरकारी परियोजनाओं के लिए जिन किसानों व भूस्वामियों की भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है उनमें असंतोष है. उदाहरण के लिए, किसानों ने अहमदाबाद और मुंबई के बीच हाई-स्पीड बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध किया. उन्होंने वडोदरा और मुंबई के बीच एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का भी विरोध किया.
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किसान मुद्दे : पिछले दो साल से अधिक बारिश से फसल को हुए नुकसान का मुआवजा नहीं मिलने को लेकर किसान राज्य के कई हिस्सों में आंदोलन कर रहे हैं.
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ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव : यदि दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल कक्षाओं का निर्माण किया जाता है, तो शिक्षकों की कमी होती है. और यदि शिक्षकों की भर्ती की जाती है, तो शिक्षा को प्रभावित करने वाले कक्षाओं की कमी है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और डॉक्टरों की कमी भी ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.
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खराब सड़कें: गुजरात पहले अपनी अच्छी सड़कों के लिए जाना जाता था. हालांकि, पिछले पांच से छह वर्षों में, राज्य सरकार और नगर निगम अच्छी सड़कों का निर्माण या पुरानी सड़कों का रखरखाव नहीं कर पाए हैं. गड्ढों वाली सड़कों की शिकायतें पूरे राज्य में आम हैं.