Morbi Bridge Collapse: मोरबी हादसे में बड़ा खुलासा, फिटनेस प्रमाणपत्र के बिना कर दिया गया चालू, केस दर्ज
Morbi Bridge Collapse: मोरबी नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीपसिंह जाला ने कहा, पुल को 15 साल के लिए संचालन और रखरखाव के लिए ओरेवा कंपनी को दिया गया था. इस साल मार्च में, इसे मरम्मत के लिए जनता के लिए बंद कर दिया गया था.
गुजरात के मोरबी में माच्छू नदी पर बने केबल पुल के टूटने से अबतक 134 लोगों की मौत हो गयी. कई लोगों की स्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है. हादसे में अबतक 177 लोगों को बचाया गया है.
7 महीने से बंद था पुल, 5 दिन में ही हो गया धराशायी
एक निजी कंपनी द्वारा सात महीने तक पुल का मरम्मत कार्य करने के बाद इसे 5 दिन पहले ही जनता के लिए फिर से खोला गया था. बड़ी बाद है कि पुल को नगरपालिका का फिटनेस प्रमाणपत्र अभी नहीं मिला था और इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया.
#MorbiBridgeCollapse | Indian Army teams deployed in Morbi, Gujarat carried out search and rescue operations for survivors of the mishap. All three defence services have deployed their teams for search operations: Defence officials pic.twitter.com/tfEjCW3MhE
— ANI (@ANI) October 31, 2022
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एक सदी से भी ज्यादा पुराना था पुल
मोरबी शहर में बना हैंगिंग ब्रिज करीब एक सदी से भी ज्यादा पुराना था. हादसे से पहले पुल में करीब 400 से अधिक लोग एक साथ चढ़ गये थे. मोरबी नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीपसिंह जाला ने कहा, पुल को 15 साल के लिए संचालन और रखरखाव के लिए ओरेवा कंपनी को दिया गया था. इस साल मार्च में, इसे मरम्मत के लिए जनता के लिए बंद कर दिया गया था. 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर मरम्मत के बाद इसे फिर से खोल दिया गया था. उन्होंने कहा, मरम्मत कार्य पूरा होने के बाद इसे जनता के लिए खोल दिया गया था. हालांकि स्थानीय नगरपालिका ने अभी तक कोई फिटनेस प्रमाण पत्र जारी नहीं किया था. हादसे के बाद गुजरात सरकार ने कंपनी के खिलाफ केस दर्ज किया है. कंपनी के खिलाफ धारा 304, 308, और 114 के तहत केस दर्ज किया गया है.
इंजीनियरिंग का चमत्कार था मोरबी पुल
जिला कलेक्ट्रेट की वेबसाइट पर पुल के विवरण के अनुसार, यह एक इंजीनियरिंग चमत्कार था और यह केबल पुल मोरबी के शासकों की प्रगतिशील और वैज्ञानिक प्रकृति को दर्शाने के लिए बनाया गया था. सर वाघजी ठाकोर ने 1922 तक मोरबी पर शासन किया. वह औपनिवेशिक प्रभाव से प्रेरित थे और उन्होंने पुल का निर्माण करने का फैसला किया जो उस समय का कलात्मक और तकनीकी चमत्कार था. इसके अनुसार पुल निर्माण का उद्देश्य दरबारगढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ना था. कलेक्ट्रेट वेबसाइट के अनुसार, पुल 1.25 मीटर चौड़ा था और इसकी लंबाई 233 मीटर थी. इसके अनुसार इस पुल का उद्देश्य यूरोप में उन दिनों उपलब्ध नवीनतम तकनीक का उपयोग करके मोरबी को एक विशिष्ट पहचान देना था.