Chandrayaan-3: चांद पर भारत की जय हो ! चंद्रयान ने भरी उड़ान, 23 अगस्त को सॉफ्ट लैंडिंग की योजना
चंद्रयान-2 तब सॉफ्ट लैंडिंग में विफल हो गया था जब इसका लैंडर विक्रम 7 सितंबर, 2019 को सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करते समय ब्रेकिंग प्रणाली में विसंगतियों के कारण चंद्रमा की सतह पर गिर पड़ा था. चंद्रयान-1 मिशन को 2008 में भेजा गया था.
Chandrayaan-3 Launched: भारत ने आज LVM3-M4 रॉकेट के जरिए अपने तीसरे चंद्र मिशन- चंद्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण किया. इस अभियान के तहत यान 41 दिन की अपनी यात्रा में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर एक बार फिर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंच पाया है. चंद्र सतह पर अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन सॉफ्ट लैंडिंग कर चुके हैं लेकिन उनकी सॉफ्ट लैंडिंग चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर नहीं हुई थी. अगर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का 600 करोड़ रुपये का चंद्रयान-3 मिशन चार साल में अंतरिक्ष एजेंसी के दूसरे प्रयास में लैंडर को उतारने में सफल हो जाता है, तो अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद भारत चंद्र सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ की तकनीक में महारत हासिल करने वाला चौथा देश बन जाएगा.
पंद्रह साल में इसरो का यह तीसरा चंद्र मिशन
भविष्य में मानव अन्वेषण के लिए एक संभावित स्थल के रूप में उभर रहे चंद्र क्षेत्र में मानव रहित मिशन के प्रक्षेपण के तुरंत बाद एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि एजेंसी ने 23 अगस्त को भारतीय समयानुसार शाम 5.47 बजे चंद्रमा की सतह पर तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण सॉफ्ट-लैंडिंग की योजना बनाई है. चंद्रयान-2 तब सॉफ्ट लैंडिंग में विफल हो गया था जब इसका लैंडर विक्रम 7 सितंबर, 2019 को सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करते समय ब्रेकिंग प्रणाली में विसंगतियों के कारण चंद्रमा की सतह पर गिर पड़ा था. चंद्रयान-1 मिशन को 2008 में भेजा गया था. पंद्रह साल में इसरो का यह तीसरा चंद्र मिशन है.
प्रक्षेपण के बाद हजारों दर्शक खुशी से झूम उठे
कल शुरू हुई 25.30 घंटे की उलटी गिनती के अंत में LVM3-M4 रॉकेट (जिसे पूर्व में जीएसएलवीएमके3 कहा जाता था) यहां स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से अपराह्न 2.35 बजे निर्धारित समय पर धुएं का घना गुबार छोड़ते हुए शानदार ढंग से आकाश की ओर रवाना हुआ. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मिशन के प्रक्षेपण को देश की अंतरिक्ष यात्रा में एक “नया अध्याय” बताया जिसने हर भारतीय के सपनों और महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाया है. राजनीतिक नेताओं ने भी पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इसरो की उपलब्धि की सराहना की. मिशन नियंत्रण केंद्र (एमसीसी) के अंदर वैज्ञानिक जहां सांस रोककर चंद्रयान-3 को प्रक्षेपण के लगभग 16 मिनट बाद रॉकेट से अलग होते देखने का इंतजार कर रहे थे, वहीं प्रक्षेपण यान के प्रक्षेपण के बाद हजारों दर्शक खुशी से झूम उठे.
बधाई हो, भारत! चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा शुरू कर दी
चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण के बाद इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने मिशन नियंत्रण कक्ष (एमसीसी) से कहा कि रॉकेट ने चंद्रयान-3 को कक्षा में सटीकता के साथ स्थापित कर दिया. उन्होंने कहा, बधाई हो, भारत! चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा शुरू कर दी है. हमारे प्रिय LVM-3 ने पहले ही चंद्रयान-3 को पृथ्वी के चारों ओर सटीक कक्षा में स्थापित कर दिया है… और आइए हम चंद्रयान-3 को आगे की कक्षा में बढ़ाने की प्रक्रिया तथा आने वाले दिनों में चंद्रमा की ओर इसकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं व्यक्त करें.
अंधेरे वाले क्षेत्रों में पानी की मौजूदगी की संभावना
यह पूछे जाने पर कि मिशन में वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए दक्षिणी ध्रुव को क्यों चुना गया है, उन्होंने कहा, हम चंद्रमा की सतह पर सभी भूभौतिकीय, रासायनिक विशेषताओं के लक्ष्य को लेकर काम कर रहे हैं. दूसरा, दक्षिणी ध्रुव का अध्ययन अभी तक नहीं किया गया है. सोमनाथ ने कहा कि इसके अलावा, किसी ने भी चंद्रमा की सतह पर तापीय विशेषताओं का परीक्षण नहीं किया है जो इसरो इस मिशन में करेगा. चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण और इससे उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों के कारण बहुत अलग भूभाग हैं और इसलिए अज्ञात बने हुए हैं. चंद्रमा पर पहुंचने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान भूमध्यरेखीय क्षेत्र में, चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश पर उतरे थे. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आसपास स्थायी रूप से अंधेरे वाले क्षेत्रों में पानी की मौजूदगी की संभावना हो सकती है.
अज्ञात क्षितिजों का पता लगाने के लिए आकाश की सीमा से निकल गया आगे
मिशन निदेशक एस मोहन कुमार ने कहा कि एलवीएम3 रॉकेट एक बार फिर इसरो का सबसे विश्वसनीय भारी प्रक्षेपण वाहन साबित हुआ है. उन्होंने कहा, हम राष्ट्रीय आवश्यकताओं के साथ-साथ उपग्रह संबंधी मांग को ध्यान में रखते हुए इस वाहन की प्रक्षेपण आवृत्ति बढ़ाने की प्रक्रिया में हैं. परियोजना निदेशक पी वीरमुथुवेल ने कहा कि प्रणोदन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल में बिजली उत्पादन सहित अंतरिक्ष यान के सभी मानक सामान्य हैं. प्रक्षेपण के समय इसरो के कई पूर्व प्रमुखों के साथ उपस्थित रहे केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने आज के प्रक्षेपण को भारत के लिए गौरव का क्षण करार दिया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा था कि सफलता की कोई सीमा नहीं है और मुझे लगता है कि चंद्रयान ब्रह्मांड के अज्ञात क्षितिजों का पता लगाने के लिए आकाश की सीमा से आगे निकल गया है.
LVM3-M4 रॉकेट अपनी श्रेणी में सबसे बड़ा और भारी
इसरो के अधिकारियों के अनुसार, उड़ान भरने के लगभग 16 मिनट बाद प्रणोदन मॉड्यूल रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गया और यह चंद्र कक्षा की ओर बढ़ते हुए पृथ्वी से 170 किमी निकटतम और 36,500 किमी सुदूरतम बिंदु पर एक दीर्घवृत्ताकार चक्र में लगभग पांच-छह बार पृथ्वी की परिक्रमा करेगा. LVM3-M4 रॉकेट अपनी श्रेणी में सबसे बड़ा और भारी है जिसे वैज्ञानिक ‘फैट बॉय’ या बाहुबली कहते हैं. लैंडर के साथ प्रणोदन मॉड्यूल, गति प्राप्त करने के बाद चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचने के लिए एक महीने से अधिक लंबी यात्रा पर तब तक आगे बढ़ेगा जब तक कि यह चंद्र सतह से 100 किमी ऊपर नहीं पहुंच जाता.
LVM3M4 रॉकेट सफलतापूर्वक छह जटिल अभियानों को अंजाम दे चुका
इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि वांछित ऊंचाई पर पहुंचने के बाद लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए उतरना शुरू कर देगा. अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, LVM3M4 रॉकेट सफलतापूर्वक छह जटिल अभियानों को अंजाम दे चुका है. यह भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ग्राहक उपग्रहों को ले जाने वाला सबसे बड़ा एवं भारी प्रक्षेपण यान भी है. चंद्रयान-2 मिशन (22 जुलाई, 2019) के समान जुलाई महीने के दौरान चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण का कारण यह है कि वर्ष में इस अवधि के दौरान पृथ्वी और चंद्रमा एक-दूसरे के करीब होंगे.
चंद्र कक्षा से नीले ग्रह की तस्वीरें लेने में इसरो की करेंगे मदद
लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के बाद इसके भीतर से रोवर बाहर निकलेगा और चंद्र सतह पर घूमते हुए अपने उपकरण-एपीएक्सएस-एल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर की मदद से अन्वेषण कार्य को अंजाम देगा. यह चंद्र सतह की रासायनिक संरचना और खनिज संरचना के बारे में समझ बढ़ाने संबंधी कार्य करेगा. रोवर की अभियान अवधि एक चंद्र दिवस (धरती के 14 दिन) के बराबर होगी. चंद्रयान-3 अपने साथ विभिन्न उपकरण ले गया है जो चंद्रमा की मिट्टी से संबंधित समझ बढ़ाने और चंद्र कक्षा से नीले ग्रह की तस्वीरें लेने में इसरो की मदद करेंगे.
उपकरणों में रंभा और इल्सा भी शामिल
उपकरणों में ‘रंभा’ और ‘इल्सा’ भी शामिल हैं, जो 14-दिवसीय मिशन के दौरान सिलसिलेवार ढंग से ‘पथ-प्रदर्शक’ प्रयोगों को अंजाम देंगे. ये चंद्रमा के वायुमंडल का अध्ययन करेंगे और इसकी खनिज संरचना को समझने के लिए सतह की खुदाई करेंगे. लैंडर ‘विक्रम’ तब रोवर ‘प्रज्ञान’ की तस्वीरें लेगा जब यह कुछ उपकरणों को गिराकर चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन करेगा। लेजर बीम का उपयोग करके, यह प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित गैस का अध्ययन करने के लिए चंद्र सतह के एक टुकड़े ‘रेजोलिथ’ को पिघलाने की कोशिश करेगा. सोमनाथ ने कहा, “हम जानते हैं कि चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है. लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है क्योंकि इससे गैस निकलती हैं. वे आयनित हो जाती हैं और सतह के बहुत करीब रहती हैं. यह दिन और रात के साथ बदलता रहता है.
रेजोलिथ में विद्युत या तापीय विशेषताएं हैं या नहीं?
लैंडर के साथ लगा उपकरण ‘रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फियर एंड एटमॉस्फियर (रंभा) चंद्र सतह के नजदीक प्लाज्मा घनत्व और समय के साथ इसके बदलाव को मापेगा. सोमनाथ ने कहा कि रोवर अध्ययन करेगा कि यह छोटा वातावरण, परमाणु वातावरण और आवेशित कण किस तरह भिन्न होते हैं. उन्होंने कहा, यह बहुत दिलचस्प है. हम यह भी पता लगाना चाहते हैं कि रेजोलिथ में विद्युत या तापीय विशेषताएं हैं या नहीं.
इसरो प्रमुख ने कहा, हम एक उपकरण गिराएंगे और कंपन को मापेंगे
इसरो प्रमुख ने कहा, हम एक उपकरण गिराएंगे और कंपन को मापेंगे – जिसे आप मूनक्वेक (चंद्र भूकंप) व्यवहार या आंतरिक प्रक्रियाएं कहते हैं. लेजर-इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप’ (लिब्स) लैंडिंग स्थल के आसपास चंद्र मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना का पता लगाएगा, जबकि अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) चंद्र सतह की रासायनिक संरचना और खनिज संरचना संबंधी अध्ययन करेगा. स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (शेप) नामक उपकरण निकट-अवरक्त तरंगदैर्ध्य रेंज में अध्ययन करेगा, जिसका उपयोग सौर मंडल से परे जीवन की खोज में किया जा सकता है.
चंद्र सतह पर उतरने का समय काफी मायने रखता है क्योंकि..
लैंडर का चंद्र सतह पर उतरने का समय काफी मायने रखता है क्योंकि इससे उपकरणों के अध्ययन करने की अवधि का निर्णय होता है. चंद्रयान-3 अपने लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर उतारेगा. चंद्रमा पर रात का तापमान शून्य से 232 डिग्री सेल्सियस नीचे तक गिर जाता है. सोमनाथ ने कहा, तापमान में भारी गिरावट आती है और प्रणाली के रात के उन 15 दिनों तक बरकरार रहने की संभावना को देखना होगा. यदि यह उन 15 दिनों तक बरकरार रहती है और नए दिन की सुबह होने पर बैटरी चार्ज हो जाती है, तो यह संभवतः अंतरिक्ष यान के जीवन को बढ़ा सकता है.