उत्तरी कश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए कर्नल आशुतोष शर्मा का मंगलवार को पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. मंगलवार तड़के शहीद का पार्थिव शरीर जयपुर पहुंचा, जहां उन्हें तिरंगे में लपेट कर आखिरी विदाई और सलामी दी गयी. समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, शहीद हुए कर्नल आशुतोष को जयपुर में अंतिम विदाई देने का काम किया गया. इस मौके पर उनकी पत्नी, बेटी और अन्य परिजन मौजूद थे जिनकी आंखों से आंसू के धार कम नहीं हो रहे थे. जानकारी के अनुसार कर्नल शर्मा की पत्नी पल्लवी व उनके भाई ने चिता को मुखाग्नि दी.
#WATCH Wife, daughter and other family members of Colonel Ashutosh Sharma who lost his life in #Handwara (J&K) encounter, salute him pic.twitter.com/t2yD7fIftO
— ANI (@ANI) May 5, 2020
एजेंसी पीटीआई के अनुसार पुरानी चुंगी श्मशान घाट में इस अवसर पर शहीद के परिजनों के साथ साथ सैन्य अधिकारी मौजूद थे. शहीद की पत्नी पल्लवी ने हौसला बनाए रखा और पूरे समय वहां मौजूद रहकर सभी रस्म क्रियाओं में भाग लिया. इससे पहले शहीद कर्नल शर्मा के पार्थिव शरीर को यहां जयपुर मिल्ट्री स्टेशन के 61वें केवलरी ग्राउंड में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया. जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व दक्षिण पश्चिमी कमान के कमांडर आलोक कलेर, अन्य अधिकारियों व परिवार के सदस्यों ने शहीद को पुष्पांजलि अर्पित की.
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सूबे के मुख्यमंत्री गहलोत व कलेर ने वहां मौजूद कर्नल शर्मा की पत्नी पल्लवी व अन्य परिवारजनों को ढांढस भी बंधाया. राज्य के सैनिक कल्याण मंत्री प्रताप सिंह, सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़, जयपुर के जिला कलेक्टर जोगाराम व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी पुष्पांजलि अर्पित की. कर्नल शर्मा उत्तरी कश्मीर में हंदवाड़ा क्षेत्र के एक गांव में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए पांच सुरक्षा कर्मियों में से एक थे.
21 राष्ट्रीय राइफल्स यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर रह चुके कर्नल आशुतोष अपने आतंक रोधी अभियानों में साहस और वीरता का परिचय दे चुके थे. इसके लिए उन्हें दो बार वीरता पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. यही नहीं, शहीद आशुतोष कर्नल रैंक के ऐसे पहले कमांडिंग अफसर थे, जिन्होंने पिछले पांच साल में आतंकियों के साथ मुठभेड़ के दौरान जान गंवा दी हो.
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सेना के अधिकारियों की मानें तो, कर्नल आशुतोष शर्मा काफी लंबे समय से गार्ड रेजिमेंट में थे और घाटी में तैनात थे. वे आतंकवादियों के खिलाफ बहादुरी के लिए दो बार सेना मेडल से सम्मानित किये जा चुके थे. आतंकियों के दांत खट्टे करना उन्हें बखूबी आता था.