देहरादून : भाजपा का दामन छोड़कर शक्रवार को कांग्रेस में वापसी करने वाले डॉ हरक सिंह रावत उत्तराखंड की राजनीति में पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान की तरह ‘मौसम विज्ञानी’ माने जाते हैं. वे हवा का रुख भांपकर पाला बदल लेते हैं और ऐसा माना जाता है कि चुनाव से पहले जिस दल में वे जाते हैं, सरकार उसी की बनती है. यही कारण है कि ‘दबंग और विवादित’ छवि होने के बावजूद उनके चुनाव जीतने की क्षमता और पार्टी के सत्ता में आने की संभावना के चलते विभिन्न राजनीतिक दल उन्हें अपने साथ जोड़कर रखना चाहते हैं.
तकरीबन अपने 31 साल के राजनीतिक सफर में डॉ हरक सिंह रावत बसपा से लेकर भाजपा और कांग्रेस तक सभी पार्टियों में रह चुके हैं. रावत ने अपना राजनीतिक कैरियर उत्तराखंड बनने से पहले अविभाजित उत्तर प्रदेश से शुरू किया. वर्ष 1991 में पौडी सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने.
अविभाजित उत्तर प्रदेश में पर्यटन राज्यमंत्री बने डॉ हरक सिंह रावत तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री थे. वर्ष 1993 का चुनाव भी वह पौडी से ही जीते. वर्ष 1996 में वह भाजपा छोड़कर बसपा में शामिल हो गए. उस दौरान वह उत्तर प्रदेश बसपा में महामंत्री रहे. हालांकि, 1998 में बसपा के टिकट पर वह पौडी सीट से नहीं जीत पाए. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया.
उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में उन्होंने लैंसडौन से जीत दर्ज की और नारायण दत्त तिवारी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. अगले चुनाव में भी उन्हें लैंसडौन से जीत मिली, लेकिन कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बावजूद वह पांच साल नेता प्रतिपक्ष रहे. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने रूद्रप्रयाग सीट से चुनावी ताल ठोकी और वहां भी जीत दर्ज की. पहले विजय बहुगुणा और फिर हरीश रावत के नेतृत्व में बनी सरकार में वह कैबिनेट मंत्री रहे.
डॉ हरक सिंह रावत मार्च 2016 में कांग्रेस के नौ विधायकों के साथ तत्कालीन हरीश रावत सरकार के खिलाफ उन्होंने बगावत कर दी और बाद में भाजपा में शामिल हो गए. पिछला 2017 का चुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर कोटद्वार से लड़ा और वहां से भी विजयी होकर पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और फिर पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहे और 16 जनवरी यानी रविवार को मुख्यमंत्री धामी ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया.
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हालांकि, डॉ हरक सिंह रावत के साथ यह तथ्य भी जुड़ा है कि वह कभी भी मंत्री पद पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. हरक सिंह को अपने कैरियर में कई बार विवादों का भी सामना करना पड़ा. नारायण दत्त तिवारी सरकार में राजस्व मंत्री रहने के दौरान असम की एक युवती ने उन पर ‘दुष्कर्म और उनके बच्चे का पिता होने’ का गंभीर आरोप लगा, जिसके चलते उन्हें मंत्रिपद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि, बाद में मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो से हुई जांच में उन्हें क्लीन चिट मिल गई.