भड़काऊ भाषण पर रोक के लिए क्या सरकार कानून लाएगी ? सुप्रीम कोर्ट ने अखबार का जिक्र करते हुए पूछा
न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों से निपटने के लिए संस्थागत प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है. मौखिक टिप्पणी की, ‘‘सरकार मूक दर्शक क्यों बनी बैठी है?''
हेट स्पीच जहर की तरह होता है. ये हमारे देश के लिए हानिकारक है. जो भी इसके लिए जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाना चाहिए. ये बातें सुप्रीम कोर्ट की ओर से कही गयी है. विभिन्न टेलीविजन चैनल पर नफरत फैलाने वाले भाषणों को लेकर नाराजगी कोर्ट की ओर से जतायी गयी और शर्ष कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या सरकार ‘मूक दर्शक’ है और क्या केंद्र का इरादा विधि आयोग की सिफारिशों के अनुसार कानून बनाने का है या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि विजुअल मीडिया का ‘विनाशकारी’ प्रभाव हुआ है और किसी को भी इस बात की परवाह नहीं है कि अखबारों में क्या लिखा है, क्योंकि लोगों के पास (अखबार) पढ़ने का वक्त ही नहीं है. टीवी बहस के दौरान प्रस्तोता की भूमिका का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह प्रस्तोता की जिम्मेदारी है कि वह किसी मुद्दे पर चर्चा के दौरान नफरती भाषण पर रोक लगाए.
संस्थागत प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता
न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों से निपटने के लिए संस्थागत प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है. कोर्ट ने इस मामले में सरकार की ओर से उठाये गये कदमों पर असंतोष जताया और मौखिक टिप्पणी की, ‘‘सरकार मूक दर्शक क्यों बनी बैठी है?” सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करने को भी कहा कि क्या वह नफरत फैलाने वाले भाषण पर प्रतिबंध के लिए विधि आयोग की सिफारिशों के अनुरूप कानून बनाने का इरादा रखती है?
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अभद्र भाषा और अफवाह फैलाने वाली याचिका
इस बीच, पीठ ने भारतीय प्रेस परिषद और नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्रॉडकास्टर्स (एनबीए) को अभद्र भाषा और अफवाह फैलाने वाली याचिकाओं में पक्षकार के रूप में शामिल करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि हमने टीवी समाचार चैनल का संदर्भ दिया है, क्योंकि अभद्र भाषा का इस्तेमाल दृश्य माध्यम के जरिये होता है. अगर कोई अखबारों में कुछ लिखता है, तो कोई भी उसे आजकल नहीं पढ़ता है. किसी के पास अखबार पढ़ने का समय नहीं है.
याचिकाकर्ता ने क्या कहा
एक याचिकाकर्ता वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने मामले में भारतीय प्रेस परिषद और नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्रॉडकास्टर्स को पक्षकार बनाने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने अभद्र भाषा पर अंकुश लगाने के लिए एक नियामक तंत्र की आवश्यकता पर जोर दिया. इसने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े को न्याय मित्र नियुक्त किया और उन्हें याचिकाओं पर राज्य सरकारों की प्रतिक्रियाओं के आकलन को कहा है. कोर्ट ने मामलों की सुनवाई के लिए 23 नवंबर की तारीख तय की है.
भाषा इनपुट के साथ