Hate Speech: मीडिया में हेट स्पीच के अनियंत्रित होने पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गहरी चिंता व्यक्त की है. शीर्ष अदालत ने हेट स्पीच के खिलाफ एक मजबूत नियामक तंत्र की आवश्यकता पर जोर देते हुए केंद्र सरकार से सवाल भी पूछा है. कोर्ट ने कहा कि जब यह सब हो रहा है, तो सरकार एक मूक गवाह के रूप में क्यों खड़ी है.
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि टीवी चैनल की बहस में एंकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. यह सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है कि शो में आमंत्रित अतिथि अभद्र भाषा में लिप्त न हों. पीठ ने यह भी कहा कि टीवी चैनल जो अक्सर अभद्र भाषा को जगह देते हैं, बिना किसी प्रतिबंध के बच निकलते हैं. शीर्ष अदालत अभद्र भाषा की घटनाओं के खिलाफ कदम उठाने के निर्देश की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
जस्टिस जोसेफ ने भारत सरकार से भी इसकी प्रतिक्रिया के बारे में पूछा और पूछा कि वह मूक गवाह क्यों बनी हुई है. उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को एक ऐसी संस्था बनाने के लिए आगे आना चाहिए जिसका पालन सभी करेंगे. कोर्ट ने भारत सरकार को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि क्या वह घृणा अपराधों से निपटने के लिए संशोधनों के संबंध में भारत के विधि आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखती है.
मामले में एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी पीठ से सहमति जताई और कहा, चैनल और राजनेता इस तरह के भाषण पर फीड करते हैं. चैनलों को पैसा मिलता है. वे दस लोगों को बहस में रखते हैं. पीठ ने कहा, आपको यह बताना चाहिए कि दूसरे क्या कह रहे हैं, न कि आप जो कहना चाहते हैं. लोकतंत्र के स्तंभों को स्वतंत्र होना चाहिए और किसी से आदेश नहीं लेना चाहिए. पीठ ने कहा, किसी भी एंकर के अपने विचार होंगे, लेकिन गलत क्या है जब आपके पास अलग-अलग विचारों के लोग हैं और आप उन्हें उन विचारों को व्यक्त करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं. ऐसा करने में आप नफरत ला रहे है और आपकी टीआरपी बढ़ रही है.
पीठ ने आगे कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें पता होना चाहिए कि कहां रेखा खींचनी है. एक उदाहरण का हवाला देते हुए, जस्टिस जोसेफ ने कहा कि यूनाइटेड किंगडम में एक समाचार चैनल पर भारी जुर्माना लगाया गया था. हमारे यहां ऐसा नहीं है. न्यूज चैनल्स से सख्ती से निपटा नहीं जा रहा है. अगर ऐसी मजबूरी आती है तो उन्हें ऑफ एयर किया जा सकता है, जुर्माना लगाया जा सकता है.
शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि आजकल समय की कमी के कारण कोई भी नहीं पढ़ता है, लेकिन विजुअल मीडिया में एक शक्ति है, जिसे इस अदालत ने सेंसरशिप मामलों में मान्यता दी है. सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि अभद्र भाषा के मुद्दे पर केंद्र सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है. समस्या क्या है? भारत सरकार स्टैंड क्यों नहीं ले रही है? सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है? जस्टिस जोसेफ ने कहा कि सरकार को इस पर विरोध का रुख नहीं अपनाना चाहिए, बल्कि कोर्ट की मदद करनी चाहिए.
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे नटराज ने पीठ को बताया कि 14 राज्यों ने अपना जवाब दाखिल किया है. शीर्ष अदालत ने केंद्र से राज्य सरकार के इनपुट का मिलान करते हुए जवाब दाखिल करने को भी कहा. इस साल जुलाई में, शीर्ष अदालत ने केंद्र को एक विस्तृत चार्ट तैयार करने का निर्देश दिया था जिसमें राज्यों द्वारा अभद्र भाषा पर अंकुश लगाने से संबंधित निर्णयों में जारी सामान्य निर्देशों के अनुपालन की रूपरेखा तैयार की गई थी.