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‘फ्री राजनीतिक कल्चर’ पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कही ये बात

चुनावों में मुफ्त की घोषणा वाले वादों के खिलाफ अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें याचिकाकर्ता के वकील मुफ्त में देने की राजनीति के कारण कैसे राज्य और देश की जनता पर बोझ बढ़ता है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर चुनाव आयोग और सरकार ध्यान दें.

नयी दिल्ली: राजनीतिक दलों द्वारा लोगों के बीच मुफ्त में दी जाने वाली चीजों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है. इसपर राजनीतिक दलों को गंभीरता से विचार करना चाहिए. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर चुनाव आयोग और सरकार ध्यान दें. और इस बात पर विचार करें कि इस कल्चर को कैसे खत्म किया जा सकता है.

‘मुफ्त की राजनीति’ पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: गौरतलब है कि चुनावों में मुफ्त की घोषणा वाले वादों के खिलाफ अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें याचिकाकर्ता के वकील मुफ्त में देने की राजनीति के कारण कैसे राज्य और देश की जनता पर बोझ बढ़ता है इसपर चर्चा की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नीति आयोग, वित्त आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक, विधि आयोग और चुनाव आयोग से इस बारे में राय पेश करने को कहा है. गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुफ्त में देने के वादों वाली राजनीति पर सवाल उठाये थे.

तुषार मेहता ने कही ये बात: इधर, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुफ्त में बांटने वाली राजनीति देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत घातक है. तुषार मेहता ने कहा कि मुफ्त की आस में लोगों का मानसिकता में बदलाव आता है. इससे देश आर्थिक नुकसान की ओर बढ़ने लगता है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब इस जनहित याचिका पर 11 अगस्त को सुनवाई होगी.

चुनाव आयोग और केंद्र सरकार मुद्दे पर दें ध्यान- सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन्ना ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से कहा है कि वो इस मुद्दे पर ध्यान दें. कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर मुद्दा है. इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. बहरहाल सुप्रीम कोर्ट में इस जनहित याचिका पर अब 11 अगस्त को सुनवाई होगी. जाहिर है कि जो चीज मुफ्त में दी जाती है उसे कहीं न कहीं से खरीदा जाता है जिसमें पैसा लगता है ऐसे में घाटा भी बढ़ता जाता है.

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