भारत के इन धरोहरों को भी वापस लाने का हो रहा प्रयास, स्वतंत्रता पूर्व ले जाया गया था इन्हें

पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम-1972 के अनुसार, जो पुरावशेष कम-से-कम 100 वर्षों से अस्तित्व में है, उसको वस्तु या कला के रूप में परिभाषित करता है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 30, 2023 9:27 AM
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स्वतंत्रता से पहले भारत से बाहर ले जाये गये पुरावशेषों की पुनर्प्राप्ति हेतु अनुरोध द्विपक्षीय रूप से या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किये जाने की जरूरत होती है. वहीं, दूसरी व तीसरी श्रेणियों में पुरावशेषों को स्वामित्व के प्रमाण के साथ आसानी से पुनर्प्राप्त किया जा सकता है.

कैसे मिलता है पुरावशेष का दर्जा

पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम-1972 के अनुसार, जो पुरावशेष कम-से-कम 100 वर्षों से अस्तित्व में है, उसको वस्तु या कला के रूप में परिभाषित करता है. इसमें सिक्के, मूर्तियां, पेंटिंग, पुरालेख, पृथक लेख आदि वस्तुएं शामिल हैं. वहीं ऐतिहासिक महत्व वाले पांडुलिपि, रिकॉर्ड या दस्तावेज, जिनकी अवधि 75 वर्ष से कम नहीं है, उसे पुरावशेष के रूप शामिल किया जाता है.

इन्हें लाने की हो रही कोशिश

बेशकीमती कोहिनूर हीरा

यह दुनिया के सबसे खूबसूरत हीरों में से एक है. यह हीरा इस समय ब्रिटिश राजपरिवार के पास है. भारत सरकार इसे वापस लाने के कूटनीतिक प्रयास कर रही है. वर्ष 1849 में यह ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ लगा और उसके बाद ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के पास पहुंचा. ईस्ट इंडिया कंपनी के पास जाने से पहले यह महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र महाराजा दलीप सिंह के खजाने में था. यह कोहिनूर हीरा 105.6 कैरेट का है.

टीपू सुल्तान का बाघ व तलवार

टीपू सुल्तान का बाघ असल में 18वीं शताब्दी का ए‍क ऑटोमेटिक खिलौना है. इस खिलौने में एक बाघ को आदमकद यूरोपीय व्यक्ति का शिकार करते हुए दर्शाया गया है. एक हत्थे को ऊपर-नीचे करने पर बाघ के विभिन्न यंत्र काम करने लगते हैं और इसके गुर्राने की आवाज आती है. यह कलाकृति भी लंदन के म्यूजियम पॉविस कैसल में है. टीपू सुल्तान की तलवार भी लंदन में निजी संग्रह में है, जो भारत की विरासत का हिस्सा है.

पंजाब के महाराजा का सिंहासन

अंग्रेज अपने साथ सिखों के पहले महाराजा रणजीत सिंह का सिंहासन भी ले गये थे. इसका निर्माण 1820-1830 के बीच हाफिज मुहम्मद मुल्तानी ने किया था. यह लकड़ी और रेजिन से बना था, जिस पर सोने की परत चढ़ायी गयी थी. सिंहासन को लंदन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम में प्रदर्शित किया गया है. यूके में रॉयल कलेक्शन ट्रस्ट में महाराजा रणजीत सिंह का ताज भी है. मुकुट कई हीरे और कीमती रत्नों से सुशोभित है.

250 से ज्यादा कलाकृतियों की वापसी

केंद्र सरकार ने इसी वर्ष मई में जानकारी दी थी कि आजादी से अब तक भारतीय मूल की 251 कीमती वस्तुएं विभिन्न देशों से वापस स्वदेश लायी गयी हैं. खास बात है कि इनमें से 230 से ज्यादा प्राचीन कलाकृतियां पिछले 9 वर्षों में भारत वापस लायी गयी हैं. वहीं 72 अन्य ऐसी ही कलाकृतियां देश वापस लाये जाने की प्रक्रिया में हैं.

अन्य रोचक तथ्य

वापस लायी गयी इन कलाकृतियों में नालंदा के संग्रहालय से करीब छह दशक पहले गायब बुद्ध की 12वीं सदी की कांस्य प्रतिमा भी शामिल है.

अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, नीदरलैंड, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर सहित कई देशों ने पुनर्प्राप्ति के प्रयासों में भारत को अपना समर्थन दिया है.

लगभग एक सदी पहले वाराणसी से चुरायी गयी 18वीं सदी की मां अन्नपूर्णा की मूर्ति का पता लगाया गया और 2021 में इसे कनाडा से वापस लाया गया.

वर्ष 2021 में 10वीं शताब्दी की नटराज प्रतिमा भी लंदन से वापस लायी गयी.

खजुराहो की 900 वर्ष पुरानी ‘पैरट लेडी’ मूर्ति को कनाडा से वापस लाया गया.

सितंबर, 2021 में पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी सरकार ने उन्हें 11वीं-14वीं सदी की 157 ऐतिहासिक और पुरातात्विक कलाकृतियां भेंट कीं. मार्च, 2022 में ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान पीएम मोदी को चोल राजवंश की श्री देवी व मौर्य काल की एक टेराकोटा महिला की मूर्तियां वापस कर दी गयीं.

सरस्वती प्रतिमा

ज्ञान की देवी मानी जाने वाली माता सरस्वती की नक्काशीदार संगमरमर की मूर्ति ब्रिटिश संग्रहालय में प्रदर्शित है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 1034 ईस्वी में उत्कीर्ण यह मूर्ति मध्य प्रदेश के भोजशाला मंदिर का हिस्सा थी. मूर्तिकला पर शिलालेख में राजा भोज और वाग्देवी (जो कि सरस्वती का दूसरा नाम है) का उल्लेख है. इसे भी वापस पाने का प्रयास किया जा रहा है.

महात्मा बुद्ध की प्रतिमा

खड़ी मुद्रा में महात्मा बुद्ध की मूर्ति करीब दो मीटर लंबी है और इसका वजन 500 किलोग्राम है. यह बुद्ध की विशाल मूर्तियों में से एक है. वर्ष 1862 में भागलपुर जिले के सुल्तानगंज में ईस्ट इंडियन रेलवे के ट्रैक निर्माण के दौरान हुई खुदाई में एक ब्रिटिश इंजीनियर इबी हैरिस (एक ब्रिटिश रेलवे इंजीनियर) को यह तांबा की मूर्ति मिली थी. यह मूर्ति इस समय बर्मिंघम संग्रहालय में है.

अमरावती स्तूप पैनल

लंदन में ब्रिटिश संग्रहालय में अमरावती स्तूप प्राचीन पत्थर के पैनलों का संग्रह है, जो भारत के सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों में से एक है. ये पैनल बुद्ध के जीवन के दृश्यों को दर्शाते हैं. इसके अलावा ब्रिटिश संग्रहालय में अमरावती स्तूप से नक्काशीदार संगमरमर की रेलिंग का संग्रह भी है, ये रेलिंग दूसरी ईसा पूर्व दूसरी सदी की हैं और इनमें बुद्ध के जीवन के दृश्यों का चित्रण है.

चोल कांस्य प्रतिमाएं

ब्रिटिश संग्रहालय में भारत के चोल वंश की कांस्य प्रतिमाओं का संग्रह है, ये उत्कृष्ट मूर्तियां 9वीं से 13वीं शताब्दी की हैं.

इनके अलावा, भारत की कई और कीमती चीजें ब्रिटेन के कब्जे में हैं. ये सभी मुख्य रूप से चार प्रकार की कस्टडी में हैं : संग्रहालय, यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी, निजी मिल्कियत व ब्रिटिश क्राउन ज्वेल.

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