नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह दलील खारिज कर दी कि नौकरी के लिए अयोग्यता का आधार ज्यादा योग्यता नहीं हो सकती. साथ ही अदालत ने पंजाब नेशनल बैंक के एक चपरासी की सेवाएं समाप्त करने का आदेश बरकरार रखा, क्योंकि उसने स्नातक होने का तथ्य छिपाया था. शीर्ष अदालत ने उड़ीसा हाईकोर्ट के दो आदेशों को निरस्त कर दिया. इन आदेशों में न्यायालय ने बैंक से कहा था कि चपरासी को अपनी सेवाएं करते रहने दिया जाये.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने या गलत जानकारी देनेवाला अभ्यर्थी सेवा में बने रहने का दावा नहीं कर सकता.” न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह ने बैंक की अपील पर यह फैसला सुनाया और इसमें इस तथ्य को भी इंगित किया कि इसके लिए विज्ञापन में स्पष्ट था कि अभ्यर्थी स्नातक नहीं होना चाहिए. न्यायालय ने कहा कि अमित कुमार दास ने योग्यता को चुनौती देने की बजाय अपनी योग्यता छिपाते हुए नौकरी के लिए आवेदन किया था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि अमित कुमार दास ने जान-बूझ कर अपने स्नातक होने की जानकारी छिपायी और इसलिए प्रतिवादी को उसे चपरासी के पद पर अपना काम करते रहने का निर्देश देकर हाईकोर्ट ने गलती की. शीर्ष अदालत ने अपने एक पहले के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि महत्पूर्ण जानकारी छिपाना और गलत बयानी करना कर्मचारी के चरित्र और उसके परिचय पर असर डालता है.
पीठ ने सुनवाई के दौरान इस तथ्य का भी जिक्र किया कि बैंक ने समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर चपरासी के पद के लिए आवेदन मंगाये थे, जिसमे स्पष्ट किया गया था कि एक जनवरी, 2016 की तिथि के अनुसार आवेदक 12वीं या इसके समकक्ष उत्तीर्ण होना चाहिए. लेकिन, वह स्नातक नहीं होना चाहिए.
न्यायालय ने कहा कि विज्ञापन में उल्लिखित पात्रता के अनुसार स्नातक व्यक्ति इस पद के लिए आवेदन के योग्य नहीं था. न्यायालय ने कहा कि अमित कुमार दास ने चपरासी के पद के लिए आवेदन किया, लेकिन इसमें यह जानकारी नहीं दी कि उसके पास 2014 से ही स्नातक की डिग्री है और उसने सिर्फ 12वीं पास होने का ही जिक्र किया था.