उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से प्रवासी श्रमिकों के यात्रा खर्च पर निर्णय लेने को कहा
बम्बई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिये कि वह इस बात का निर्णय लें कि क्या वह कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए लगाये गये लॉकडाउन के बीच अपने गृह राज्य वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों के यात्रा खर्च को वहन करेगी . अदालत ने सुझाव दिया कि सरकार को अपने फैसले के बारे में बताना चाहिए ताकि प्रवासी श्रमिक इस बारे में जान सकें.
मुंबई : कोरोना संक्रमण के दौरान दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने की कवायद शुरू है. अपने गृह राज्य लौट रह प्रवासी मजदूरों को ट्रेन से उनके राज्य भेजा जा रहा है. इस यात्रा का किराया कहां से आयेगा कैसे भरा जायेगा इस पर आज बम्बई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिये कि वह इस बात का निर्णय लें कि क्या वह कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए लगाये गये लॉकडाउन के बीच अपने गृह राज्य वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों के यात्रा खर्च को वहन करेगी . अदालत ने सुझाव दिया कि सरकार को अपने फैसले के बारे में बताना चाहिए ताकि प्रवासी श्रमिक इस बारे में जान सकें.
न्यायमूर्ति एस सी गुप्ते गैर-सरकारी संगठनों द्वारा दायर तीन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे जिनमें आग्रह किया गया है कि राज्य को प्रवासी श्रमिकों की चिकित्सा जांच की लागत और यात्रा खर्च को वहन करना चाहिए. वकीलों गायत्री सिंह, क्रांति एलसी और रोनिता बेक्टर के जरिये दाखिल इन जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि लॉकडाउन के मद्देनजर राज्य को प्रवासी श्रमिकों, झुग्गीवासियों और बेघर लोगों को आवश्यक राहत उपलब्ध करानी चाहिए.
अदालत को बताया गया था कि राज्य सरकार ने अपने गृह राज्यों में लौटने की इच्छा रखने वाले प्रवासी मजदूरों की चिकित्सा जांच का खर्च वहन करने का निर्णय लिया था. इसके बाद अदालत का यह सुझाव आया है. न्यायमूर्ति गुप्ते ने पांच मई को सरकार को यात्रा खर्च और चिकित्सा जांच की लागत पर अपना रूख स्पष्ट करते हुए जवाब दाखिल करने के निर्देश दिये थे.
सरकार के वकील बी पी सामंत ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय को बताया कि सात मई को महाराष्ट्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत अपने पूर्व के आदेशों को संशोधित किया था और निशुल्क चिकित्सा जांच उपलब्ध कराई थी. यात्रा खर्च के मुद्दे पर न्यायमूर्ति गुप्ते ने उच्चतम न्यायालय के पांच मई के उस आदेश का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि रेलवे किराये का 85 प्रतिशत हिस्सा वहन करेगा और राज्य शेष लागत पर फैसला ले सकते है. उच्च न्यायालय ने मामले का निस्तारण करते हुए कहा कि महाराष्ट्र सरकार उसके अनुसार निर्णय ले सकती है.