Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली नगर निगम की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है. हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के अधिकारी से इस मामले पर रिपोर्ट मांगी है. बता दें कि दिल्ली नगर निगम ने निगमों की एक समिति के गठन मामले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है और एमसीडी ने सूचना देने के निर्देश देने वाले आदेशों को रद्द करने के लिए भी निर्देश मांगा है. दिल्ली सरकार को अपना जवाब देने के लिए 11 अक्टूबर का समय दिया गया है.
क्या है एमसीडी के याचिका में?
दायर याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार अपने विधानसभा के माध्यम से अपने नियमों के अनुसार विभिन्न समितियों का गठन करती है. संशोधन के बाद उपराज्यपाल द्वारा न तो सदन का कोई नियम बनाया गया है और न ही स्वीकृत किया गया है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम में संशोधन किया गया है, जिससे उपराज्यपाल दिल्ली के एनसीटी के प्रशासक हैं और जीएनसीटीडी के पास कोई नियम बनाने और मुद्दों पर सवाल उठाने और जांच करने के लिए विधानसभा समितियां बनाने की कोई शक्ति नहीं है.
एमसीडी ने जवाब देकर सूचना को कर दिया था अस्वीकार
समिति द्वारा जारी दो आदेशों को रद्द करने की मांग करने वाली में कहा गया है कि इस समिति ने 26 जुलाई, 2022 को एक पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि समिति की बैठक 22 जुलाई, 2022 को हुई थी. बैठक के आधार पर समिति ने भवनों, पशु चिकित्सा विभाग, नीतियों, निर्माण के दिशा-निर्देशों जैसे विषयों के संबंध में, राष्ट्रीय ध्वज आदि के लिए एनओसी जारी करने जैसे विभिन्न मांगों को लेकर सूचना मांगी. याचिका में कहा गया है कि एमसीडी ने 4 अगस्त को जवाब देकर सूचना को अस्वीकार कर दिया था और दिल्ली सरकार को बताया गया कि जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 33 के अनुसार वर्जित और निषिद्ध है इसलिए सूचना प्रदान नहीं की जा सकती है.
‘एलजी की मंजूरी के बिना सदन समिति को नामित करता है’
इसके बाद दिल्ली सरकार ने 24 अगस्त, 2022 को एक जवाब के माध्यम से फिर से मांगों को दोहराया और कहा गया कि मांगी गई जानकारी जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 33 द्वारा प्रतिबंधित नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि सदन के अध्यक्ष ने उन्हें जानकारी लेने के लिए अधिकृत किया है. याचिका में यह सवाल उठाया गया कि क्या जीएनसीटीडी या इसके विधानसभा में संशोधन के बाद जीएनसीटीडी अधिनियम सदन के नियम बनाता है और एलजी के मंजूरी के बिना सदन समिति को नामित करता है जैसा कि अधिनियम में अनिवार्य है.