कैसे राजीव गांधी ने एक प्राचीन देश पर आधुनिकता की छाप छोड़ी? आज जयंती पर कांग्रेस के कई कार्यक्रम
राजीव गांधी ने आंदोलन और हिंसा को समाप्त करने के लिए कड़ी मेहनत की. विडंबना यह है कि वह उसी हिंसा के शिकार हो गये जिससे उन्होंने जीवन भर लड़ाई लड़ी.
नयी दिल्ली : आज 20 अगस्त को राजीव गांधी की जयंती है. अगर वे आज जीवित होते तो 77 साल के हो गये होते. उनकी जयंती पर कांग्रेस के आज कई कार्यक्रम हैं. एक आकस्मिक, अनिच्छुक और युवा प्रधान मंत्री के रूप में, उन्होंने 1980 के दशक के दौरान भारत का संचालन किया और नयी विश्व व्यवस्था को आकार देने में मदद की. उन्होंने अनुकरणीय समानता और गरिमा दिखाई और राष्ट्र को नया आत्मविश्वास दिया. मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने उनके साथ करीब से देखा और काम किया.
ये शब्द हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हैं. उनका एक लेख इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ है. इसके मुताबिक राजीव गांधी के पास व्यक्तित्व और आकर्षण, साहस, धैर्य, गरिमा और शालीनता थी. वह अतीत से एक विराम के रूप में माने जाने के इच्छुक थे और सहमति और सुलह, भागीदारी और अनुनय के माध्यम से सार्वजनिक जीवन में राजनीति, अर्थव्यवस्था और नैतिकता में बदलाव का प्रतीक थे. वह एक दृढ़ शांतिदूत थे और उन्होंने पंजाब, असम, मिजोरम, नागालैंड और कश्मीर में आंदोलन और हिंसा को समाप्त करने के लिए कड़ी मेहनत की. विडंबना यह है कि वह उसी हिंसा के शिकार हो गये जिससे उन्होंने जीवन भर लड़ाई लड़ी.
उन्होंने कहा था कि भारत एक पुराना देश है लेकिन एक युवा राष्ट्र है. हर जगह की युवाओं की तरह, हम अधीर हैं. मैं युवा हूं और मेरा भी एक सपना है. मैं एक ऐसे भारत का सपना देखता हूं जो मजबूत, स्वतंत्र और आत्मनिर्भर और मानव जाति की सेवा में दुनिया के राष्ट्रों में सबसे आगे हो. उन्होंने राष्ट्र का आह्वान किया कि हमारा कार्य आज भारत को 21वीं सदी की दहलीज पर लाना है, जो गरीबी के बोझ से मुक्त हो, जो हमारे औपनिवेशिक अतीत की विरासत है और हमारे लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हो. इसके लिए हमारी ओर से निरंतर प्रयास की आवश्यकता होगी.
उनका दृढ़ विश्वास था कि भारत लोकतंत्र के बिना एक साथ नहीं रहेगा और लोकतांत्रिक प्रणालियों, प्रतीकों और मूल्यों को बचाने, मजबूत करने और फैलाने के लिए सब कुछ किया. 1990 की शुरुआत में, महम उपचुनाव (महम की तबाही के रूप में जाना जाता है) के दौरान, जिसमें धांधली, हिंसा और धमकी देखी गयी, गांधी, युवा राहुल के साथ, स्वतंत्र उम्मीदवार आनंद सिंह डांगी के घर गये. वहां पुलिस फायरिंग में तीन लोगों की मौत हो गई थी.
हुड्डा ने कहा कि मैं पूरी यात्रा में उनके साथ था. वह संघर्षरत लोगों के साथ खड़े रहे और तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की ताकत को चुनौती दी, जो अपने पद को बनाये रखने के लिए विधानसभा के लिए चुनाव की मांग कर रहे थे. इस यात्रा के बाद चौटाला को 22 मई 1990 को इस्तीफा देना पड़ा था. हुड्डा ने आगे लिखा कि मैं अपने आप को सौभाग्यशाली महसूस करता हूं कि 10वीं लोकसभा चुनाव के लिए गांधी ने मुझे रोहतक से उम्मीदवार के रूप में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री देवीलाल का विरोध करने के लिए चुना था, जिन्हें एक बार नहीं बल्कि लगातार तीन चुनावों में पराजय का सामना करना पड़ा था.
Posted By: Amlesh Nandan.