Minimum Support Price News: नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने बुधवार को कहा कि कृषि फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक कि बाजार प्रतिस्पर्धी और कुशल न हो जाये, लेकिन इसे खरीद के अलावा अन्य किसी माध्यम से दिया जाना चाहिए. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और इक्रियर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘कृषि बाजारों को दुरुस्त करना’ विषय पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए चंद ने ये बातें कहीं.
उन्होंने कहा, ‘किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) देने का एक उपाय मूल्य अंतर का भुगतान पेमेंट (डीपीपी) है. लेकिन, उन्होंने आगाह किया कि एक बार क्रियान्वयन में आने के बाद डीपीपी को बंद नहीं किया जा सकता.’ डीपीपी में चुनिंदा फसलों पर किसानों को एमएसपी और संबंधित फसल के बाजार मूल्य के अंतर का भुगतान किया जाता है. उन्होंने कहा कि डीपीपी को मध्यप्रदेश जैसे कुछ राज्यों में लागू किया गया है.
Also Read: एमएसपी से होगा किसानों को नुकसान, नीति आयोग की एक्सपर्ट समिति ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट
एमएसपी न्यूनतम मूल्य है, जिस पर सरकार खरीद करती है. एमएसपी का निर्धारण 22-23 फसलों के लिए किया जाता है. चावल और गेहूं बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली फसलें हैं. उन्होंने कहा, ‘कुछ मामलों में कीमतों में उतार-चढ़ाव और बाजार में इसकी बहुतायत होने की स्थिति में एमएसपी उचित होता है. मुझे लगता है कि महत्वपूर्ण यह है कि हम किसानों को एमएसपी कैसे देते हैं.’
रमेश चंद ने कहा, ‘एमएसपी तब तक होना चाहिए, जब तक बाजार प्रतिस्पर्धी और कुशल नहीं हैं. लेकिन एमएसपी खरीद के अलावा अन्य माध्यमों से दिया जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि एमएसपी को डीपीपी पद्धति के माध्यम से दिया जा सकता है, लेकिन इसे लागू करने के बाद इसे रोका नहीं जा सकता है. चंद ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस पर विस्तृत प्रस्तुति दी है.
उन्होंने यह भी अनुमान लगाया है कि खुले बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच का अंतर लगभग 12-15 प्रतिशत का होता है. नीति आयोग के सदस्य ने यह भी कहा कि कृषि के संबद्ध क्षेत्र मत्स्य, डेयरी और पशुपालन में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम है. ये क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि पिछले 8 वर्षों में मत्स्य पालन में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी गयी है. इसी तरह डेयरी और पशुधन क्षेत्र ने बेहतर प्रदर्शन किया है. कृषि फसलों में गैर-एमएसपी फसलें और बागवानी फसलें दूसरों की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ी हैं.
उन्होंने कहा, ‘इसे देखते हुए भविष्य में जो संभावना बनती दिख रही है, वह सरकारी फसलें (एमएसपी-निर्धारित फसलें) बनाम बाजारी (वाणिज्यिक) फसलों’ की होगी. उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट बाजारी फसलों में नवाचार व खोजों में रुचि दिखा रहे हैं.
एमएसपी देने की डीपीपी पद्धति पर रमेश चंद के विचार का विरोध करते हुए पूर्व कृषि सचिव आशीष बहुगुणा ने कहा, ‘मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि खुले बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच 15-20 प्रतिशत का अंतर है. आपने खेत पर कीमतों को ध्यान में नहीं रखा है. एमएसपी समाधान नहीं हो सकता. मैं किसानों की आय के दृष्टिकोण का समर्थन करता हूं और हमें बाजार में बाधाओं को दूर करने की जरूरत है.’ बहुगुणा वर्तमान में एनसीडीईएक्स के चेयरमैन और जनहित निदेशक हैं.
आईटीसी समूह के कृषि और आईटी कारोबार के प्रमुख एस शिवकुमार ने कहा, ‘हम एक मांग-आधारित उत्पादन प्रणाली में बदलाव की प्रक्रिया में हैं. आज हम जिस परेशानी का सामना कर रहे हैं, वह इसलिए कि हम अभी भी बदलाव के दौर में हैं. हम पुराने माध्यमों, संस्थाओं और कानूनों के जरिये आज और कल की जरूरतों का प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि कृषि कानून इस दिशा में एक कदम था, जो इस बदलाव में मदद करता, लेकिन इन कानूनों को वापस ले लिया गया.
भाषा इनपुट के साथ