World Indigenous Day : पुरखों की संस्कृति बचाने में जुटे युवा, चला रहे परिवर्तन की बयार
आज जबकि पूरा विश्व आदिवासियों की संस्कृति उनके सहजीवन, कला, गीत-संगीत और जीवनशैली पर नजरें गड़ाए हुए है और इस बार विश्व आदिवासी दिवस का थीम युवाओं पर केंद्रित है, हमने कुछ ऐसे आदिवासी युवाओं से बातचीत की, जिन्होंने अपने बूते समाज में अपनी जगह बनायी है
नौ अगस्त को पूरा विश्व आदिवासी दिवस मनाता है. यह दिवस समर्पित है उन लोगों को जो हमारे पुरखे हैं. आज जबकि पूरा विश्व आदिवासियों की संस्कृति उनके सहजीवन, कला, गीत-संगीत और जीवनशैली पर नजरें गड़ाए हुए है और इस बार विश्व आदिवासी दिवस का थीम युवाओं पर केंद्रित है, हमने कुछ ऐसे आदिवासी युवाओं से बातचीत की, जिन्होंने अपने बूते समाज में अपनी जगह बनायी है और उनके कार्यों ने परिवर्तन की एक बयार चलायी है.
तिवा और असमी भाषा में लिखती हैं मोइत्री पातरमोइत्री पातर : मोइत्री पातर असम की रहने वाली हैं और तिवा समुदाय से आती हैं. इन्होंने तिवा भाषा को ही अपनी रचना का माध्यम बनाया है, हालांकि वे असमी भाषा में भी लिखती हैं. मोइत्री ने बताया कि तिवा जनजाति के लोग अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं इसलिए वे अपनी भाषा को बचाने में जुटी हैं. इनकी दो कविता संग्रह अबतक प्रकाशित हो चुकी है. इन्होंने बताया कि तिवा भाषा की जानकारी इन्हें नहीं थी क्योंकि घर में प्रयोग बंद हो चुका था, लेकिन इन्होंने ट्यूशन लेकर सीखा और अब उसी भाषा में लिख रही हैं
डाॅ पार्वती तिर्की : डाॅ पार्वती तिर्की मूलत: झारखंड के गुमला जिले की रहने वाली हैं. वे वर्तमान में रांची के राम लखन सिंह यादव काॅलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. उनकी स्कूली शिक्षा गुमला के जवाहर नवोदय विद्यालय से हुई है. मात्र 29 साल की उम्र में पार्वती तिर्की को वर्ष 2023 का प्रलेक नवलेखन सम्मान मिला. हाल ही में पार्वती तिर्की ने साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित आदिवासी कवि सम्मेलन में हिस्सा लिया था. जहां उनकी कविताओं को खूब वाह-वाही मिली. पार्वती तिर्की के लिए यह पहला मौका था जब वे इस तरह के कवि सम्मेलन में शामिल हुईं.
कोकबोरक भाषा के कवि हैं लिंकन मुरासिंहलिंकन मुरासिंह : लिंकन मुरासिंह कोकबोरक भाषा के कवि हैं. कोकबोरक नाॅर्थ-ईस्ट की प्राचीन भाषाओं में से एक है. ये त्रिपुरा अगरतला में रहते हैं. इनका एक कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है. साथ ही इनकी रचनाएं साहित्य अकादमी द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित करके भी प्रकाशित करवायी गयी है. लिंकन मुरासिंह स्टेट बैंक आॅफ इंडिया में कार्यरत हैं, लेकिन लेखन इन्हें विरासत में मिला है. इनके पिता लेखक थे और साहित्य अकादमी से जुड़े हुए भी थे. लिंकन को इस वर्ष राज्य में उभरती प्रतिभा के रूप में भी सम्मान मिला है.
हलम भाषा के कवि हैं एसएम मोलसमएसएम मोलसम : मोलसम त्रिपुरा के रहने वाले हैं और हलम भाषा के कवि हैं. हलम त्रिपुरा की एक जनजाति है. मोलसम की कविताओं में प्रेरणा होती है, प्रकृति से प्रेम होता है और अपनी बातें होती हैं. मोलसम पेशे से शिक्षक हैं और मात्र 32 वर्ष के हैं. इनकी कविताओं का एक संग्रह जल्दी ही प्रकाशित होने वाला है, जिसे अंग्रेजी में अनुवाद करके प्रकाशित किया जायेगा.
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