चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम सिस्टम के सपोर्ट में अपने विचार रखते हुए कहा कि यह एक जटिल और पारदर्शी प्रॉसेस है. जजों की नियुक्ति के लिए हम सबसे पहले दावेदारों की मेरिट देखते हैं. इसके बाद उनके लिए गए फैसलों को स्टडी करते हैं. उनकी वरिष्ठता का भी ध्यान दिया जाता है. कॉलेजियम यह भी देखता है कि जो दावेदार है, उसमें जेंडर, कम्युनिटी, अल्पसंख्यक के स्तर पर कितना खुलापन है. उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट से अगर कोई सिफारिश आती है तो उसकी फाइल सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार, राज्य सरकार के पास भेजी जाती है. .
उन्होंने बताया कि हम जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को और भी पारदर्शी करने जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि हम दावेदारों से जुड़ी सूचनाओं को अपलोड करने जा रहे हैं. वहीं उन्होंने कानून मंत्री किरेन रिजिजू के कॉलेजियम सिस्टम और CEC नियुक्ति पर दिए गए बयानों पर कहा कि, ‘मैं इस मुद्दे पर कानून मंत्री के साथ उलझना नहीं चाहता, हमारी अलग-अलग धारणाएं हो सकती हैं.’
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कोर्ट पर बाहरी दबाव के सवाल पर कहा, ‘ जज के तौर पर मुझे काम करते हुए 23 साल हो गए हैं लेकिन आज तक किसी ने मुझे यह नहीं बताया कि किसी केस का फैसला कैसे किया जाए.’ उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से न्यायपालिका पर कोई दबाव नहीं है. मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति मामले में आया SC का फैसला इस बात का सबूत है कि न्यायपालिका पर कोई दबाव नहीं है. ऐसे बहुत से मामले हैं, जिसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारें शामिल होती हैं लेकिन कोर्ट अपने विवेक के आधार पर फैसला देती हैं.
कोर्ट में अधिक छुट्टियों के बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि, अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट एक महीने में 8-9 दिन और साल में केवल 80 दिन ही काम करती है, जबकि वहां कोर्ट तीन महीने नहीं चलती. इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में हाई कोर्ट एक महीने में दो हफ्ते सुनवाई करती है. साल में 100 से कम दिन ही बेंच बैठती है. वहां कोर्ट की दो महीने की छुट्टी रहती है. सिंगापुर में कोर्ट साल में 145 दिन काम करती है लेकिन ब्रिटेन और भारत में कोर्ट 200 दिन काम करते हैं.