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कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर किसी को घबराने की नहीं है जरूरत : डॉ एनके अरोड़ा

Corona Vaccine Side Effects : भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के ऑपरेशनल ग्रुप हेड और कोरोना वैक्सीन के विशेषज्ञ डॉ एनके अरोड़ा ने यह साफ कर दिया है कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर किसी को घबराने की जरूरत नहीं है.

Corona Vaccine Side Effects : कोरोना वायरस महामारी पर पहला वार करने के लिए सरकार ने पूरी तैयारी कर रखी है. दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीनेशन प्रोग्राम को शुरू करने के लिए तीन चरणों के ड्राई रन को पूरा कर लिया गया है और उम्मीद यह भी जाहिर की जा रही है कि राज्यों के सेंटरों पर 14 जनवरी तक वैक्सीन की पहली खेप पहुंच जाएगा. सरकार देश में आगामी 16 जनवरी से वैक्सीनेशन प्रोग्राम की शरुआत करने जा रही है. इस बीच, कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर चारों ओर काफी चर्चाएं की जा रही हैं.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के ऑपरेशनल ग्रुप हेड और कोरोना वैक्सीन के विशेषज्ञ डॉ एनके अरोड़ा ने यह साफ कर दिया है कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर किसी को घबराने की जरूरत नहीं है. आइए, हम उन्हीं से समझते हैं कि आखिर वैक्सीन के साइड इफेक्ट से डरने की जरूरत क्यों नहीं है…?

जल्दबाजी में वैक्सीन बनने से पैदा हो रही हैं आशंकाएं

आईसीएमआर के ऑपरेशनल हेड डॉ अरोड़ा ने यह साफ कर दिया है कि नई शुरुआत होने पर लोगों के मन में आशंकाएं पैदा होती ही हैं. कोरोना वैक्सीन के मामले में भी यही हो रहा है. उन्होंने यह भी कहते हैं कि किसी भी वैक्सीन को तैयार होने में बरसों लग जाते हैं, कोरोना वैक्सीन के लिए कोई शॉर्टकट तरीका अख्तियार नहीं किया गया. वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में चौबीसों घंटे काम किया है. यहां तक कि विनियामक अनुमोदन भी युद्धस्तर पर काम करते रहे.

क्लिनिकल ट्रायल का आकार नहीं हुआ कम

डॉ अरोड़ा आगे कहते हैं कि हमने क्लिनिकल ट्रायल के किसी भी चरण में नमूना आकार को कम नहीं किया है, बल्कि यह आमतौर पर एक टीके के परीक्षण की तुलना में बड़ा था. जब किसी टीके का परीक्षण किया जाता है, तो पहले चार से छह सप्ताह में अधिकांश प्रतिकूल घटनाएं या अवांछित प्रभाव (यदि कोई हो) तो उस पर ध्यान रखते हैं. हम पहले दो- तीन महीनों के लिए जिन लोगों को यह दिया गया है, उन पर कड़ी नजर रखते हैं. यह डेटा हमें यह तय करने में मदद करता है कि कोई टीका कितना सुरक्षित है.

प्रक्रिया को किया गया तेज

उन्होंने बताया कि इससे पहले, वैक्सीन के विकास में कई चरणों की शृंखला शामिल थी, लेकिन कोरोना वायरस वैक्सीन के मामले में वैज्ञानिकों और नियमित लोगों ने मिलकर काम किया. किसी भी प्रोटोकॉल पर समझौता किए बिना पूरी प्रक्रिया को तेज किया. इसलिए हम सकते हैं कि यह वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित है. तभी भारत सरकार इसका लाइसेंस दे रही है.

साइड इफेक्ट के लिए रहना चाहिए तैयार?

डॉ अरोड़ा ने कहा कि बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाने की वजह से हमारे पिछले अनुभव से बताते हैं कि हर वैक्सीन का कुछ न कुछ साइड इफेक्ट होता है. कई ऐसे वैक्सीन आज भी हैं, जो बीते कई दशक से उपयोग में हैं, लेकिन कुछ लोगों पर आज भी उसका साइड इफेक्ट होता है. इसलिए हमें घबराना नहीं चाहिए.

किस रूप में होगा साइड इफेक्ट?

उन्होंने यह भी कहा कि साइड इफेक्ट नाम से किसी को डराने की जरूरत नहीं है. कई वैक्सीन में यह बेहद जरूरी होता है. वैक्सीन सही काम कर रहा है या नहीं, इसका लक्षण भी हमें साइड इफेक्ट से ही मिलते हैं. जैसे, बीसीजी का टीका बच्चों को दिया जाता है, तो उन्हें हल्का बुखार होता है. कुछ टीके में दर्द कुछ घंटों तक रहता है.

साइड इफेक्ट से वैक्सीन के असर का चलता है पता

डॉ अरोड़ा ने यह भी स्पष्ट किया है कि असल में, ऐसे लक्षणों से हमें पता चलता है कि आपका शरीर वैक्सीन को स्वीकार कर रहा है. हमें लोगों को शिक्षित करने और उन्हें टीकों के बारे में सही जानकारी देने की जरूरत है. उदाहरण के लिए, कुछ लोगों को हल्के लक्षण जैसे दर्द या सूजन, हल्का बुखार आदि हो सकता है. यह एक सामान्य प्रतिक्रिया है. जहां तक बात कोरोना वैक्सीन की है, तो इसके लक्षण भारत में कैसे होंगे, इसके लिए हमें इंतजार करना होगा. सामान्य और हल्के लक्षण से घबराने की जरूरत नहीं है. इसके लिए सरकार ने वैक्सीन लगने के बाद आधे घंटे तक स्वास्थ्यकर्मी की निगरानी में रहने को कहा है. हां, यदि किसी को कुछ अधिक होता है, तो उसके लिए चिकित्सक मौजूद होंगे, जो किसी भी परिस्थिति से निपटने में सक्षम होंगे.

वैक्सीन को बाजार में इतनी जल्दी उतारना जरूरी है ?

इस मसले पर उन्होंने कहा कि लोगों की जरूरत और बीमारी की भयावहता को देखते हुए पूरी व्यवस्था ने इसके लिए काम किया. केवल भारत ही नहीं, विश्व के कई विकसित देशों ने इसके लिए दिन-रात काम किया है. वैज्ञानिकों ने चौबीसों घंटे काम किया. एक साथ कई मोर्चों पर लगातार काम चलता रहा.

उन्होंने कहा कि प्री-क्लिनिकल से लेकर क्लिनिकल स्टडीज तक की क्लीयरेंस जो लगभग छह महीने से एक साल तक की होती हैं, उन्हें हफ्तों में नहीं, बल्कि दिनों में दिया जाता है. दुनिया भर में दवा नियामक अधिकारियों ने पीड़ितों को जल्द से जल्द राहत देने के लिए एक साथ बेहतर और जल्दी काम किया. सबका एक ही उद्देश्य रहा कि कोरोना से राहत मिले. हमें अपने वैज्ञानिकों, डॉक्टर्स और इससे जुड़े तमाम लोगों का सम्मान करना चाहिए कि अब वैक्सीन हमारे पास है.

कितना प्रभावी है टीका?

डॉ अरोड़ा ने कहा कि हमें यह बताने के लिए समय चाहिए कि टीका कितना प्रभावी है. अधिकांश टीकों ने 70-90 फीसदी की प्रभावकारिता दिखाई है, जिस तरह से हम उम्मीद कर रहे थे, उससे कहीं अधिक है. इसके अलावा, जब किसी वैक्सीन को एक आपातकालीन उपयोग करने का लाइसेंस दिया जाता है, तो इसका वास्तविक प्रभाव समझने में मदद मिलेगा. किसी को भी घबराने की जरूरत नहीं है.

एईएफआई निगरानी में है वैक्सीन

उन्होंने कहा कि भारत में मौजूदा वैक्सीन का सुरक्षा निगरानी तंत्र है, जिसे एईएफआई (टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटना) निगरानी कहा जाता है. इसमें सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) के तहत एक राष्ट्रीय सचिवालय शामिल है, जिसमें डॉक्टर, डेटा विशेषज्ञ और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल हैं. यह निगरानी नेटवर्क हर जिले तक फैला हुआ है, जहां डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों का एक पैनल टीकाकरण, जांच राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर रिपोर्ट के बाद एईएफआई की निगरानी करता है.

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Posted By : Vishwat Sen

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