ICPS: व्यापक विचार-विमर्श और देश की जरूरतों के हित में बना है तीन नया आपराधिक कानून
इंस्टीट्यूट ऑफ कांस्टीट्यूशनल एंड पार्लियामेंट्री स्टडीज (आईसीपीएस) द्वारा देश में औपनिवेशिक दौर के बने आपराधिक कानून की जगह सरकार द्वारा लाये गये तीन नये कानून पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें 83 देशों के दूतावास के 135 राजनयिक शामिल हुए.
ICPS: संसद भवन में इंस्टीट्यूट ऑफ कांस्टीट्यूशनल एंड पार्लियामेंट्री स्टडीज (आईसीपीएस) द्वारा देश में औपनिवेशिक दौर के बने आपराधिक कानून की जगह सरकार द्वारा लाये गये तीन नये कानून पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें 83 देशों के दूतावास के 135 राजनयिक शामिल हुए. आज के वैश्विक माहौल में एक दूसरे के देशों के कानूनी ढांचे और मूल्यों को समझना बहुत जरूरी है. इससे राजनयिक दक्षता और राष्ट्रों के बीच आपसी समझ बढ़ती है.
भारत में काम कर रहे विभिन्न देशों के राजनयिक भी भारत के लीगल स्ट्रक्चर, संसद की कार्यवाही और डेमोक्रेटिक सिस्टम को समझें इसलिये कार्यक्रम का आयोजन किया गया. यह कानून सदन और स्थायी समिति में विस्तृत विचार-विमर्श और जनभागीदारी के बाद पारित किया गया. समय के साथ अपराध के तरीके बदल रहे हैं. टेक्नोलॉजी के कारण अपराध का दायरा विस्तृत होता जा रहा है, इसलिये इस तरह के कानून की जरूरत महसूस की गयी और संसद ने इस नये कानून को पारित किया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि तीनों नए आपराधिक कानून समकालीन समाज की चुनौतियों और आशाओं के अनुरूप हैं.
भारत का कानून अंतिम व्यक्ति को न्याय का अधिकार देता है और आम जनता न्यायाधीश को भगवान के तौर पर देखती है. न्याय पर जनता का अति विश्वास है, जो 75 वर्षों की यात्रा में और अधिक मजबूत हुआ है. टेक्नोलॉजी और अपराधों के स्वरूप में आए बदलावों के अनुरूप इन कानूनों का निर्माण किया गया है.
अंतर्राष्ट्रीय कानून का पैरोकार रहा है भारत
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि पिछले 75 साल से देश की विधायी प्रक्रिया में जनता का विश्वास लगातार बढ़ा है. यह हमारी लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती और शासन की बढ़ती जवाबदेही को दर्शाता है. विधायी कार्यों में पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता के प्रति प्रतिबद्धता से यह विकास हो रहा है. विधि निर्माताओं ने समाज की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार काम किया है. अधिकारों की रक्षा करने वाले, न्याय को बढ़ावा देने वाले और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने वाले कानून बनाए हैं.
कानूनों में समाहित लैंगिक समानता देश की व्यवस्था का आधार और संविधान की मूल अवधारणा है और दुनिया को मार्गदर्शन देती है. उन्होंने कहा कि भारतीय कानून हमेशा देश की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को प्रतिबिंबित करते हैं. भारत अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करता रहा है और मानवाधिकारों का प्रबल पक्षधर रहा हैं. कानून प्रत्येक नागरिक की गरिमा, स्वतंत्रता और समानता को बनाए रखने के लिए बनाए जाते हैं. लैंगिक समानता, पर्यावरण संरक्षण से लेकर सामाजिक कल्याण और भेदभाव विरोधी प्रगतिशील नीतियों तक, भारतीय कानून सशक्तिकरण के साधन के रूप में काम करते हैं.