गांवों में कोरोना फैला तो क्या होगा भारत में? पीएम मोदी भी हैं चिंतित

पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत के गांवों में महामारी फैलने के खिलाफ चेतावनी दी है, और यह भी चिंता जाहिर की है की गांवों में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है. इसके अलावा उन्होंने अन्य चिंताओ का भी जिक्र किया है.

By Pritish Sahay | May 12, 2020 10:19 PM

पूरे देश में बीते पचास दिनों से लॉकडाउन है. इस कारण कई लाख श्रमिक काम के अभाव में देश भर के अलग अलग हिस्सों से अपने गांव लौट रहे हैं. ऐसे में जो सबसे बड़ा खतरा नजर आ रहा है वो हैं इनका कोरोना संक्रमित होना. जो प्रवासी घर लौट रहे हैं उनमें कई लोग कोरोना पॉज़िटिव पाये गए हैं. जो काफी चिंता का विषय है. क्योंकि शहरों की अपेक्षा गांवों में इस महामारी से निपटने के साधन बहुत कम हैं. मुख्यमंत्रियों के साथ अपने पांचवें वीडियो सम्मेलन में, पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत के गांवों में महामारी फैलने के खिलाफ चेतावनी दी है, और यह भी चिंता जाहिर की है की गांवों में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है. इसके अलावा उन्होंने अन्य चिंताओ का भी जिक्र किया है.

कई लाख प्रवासी श्रमिकों ने लॉकडाउन के कारण शहरों को छोड़ अपना रुख गांव की ओर वापस मोड दिया है. ऐसे में उन सभी प्रवासियों का परीक्षण किया जाना चाहिए जो वापस आ रहे हैं. गौरतलब है कि बिहार में बीते रविवार को कोरोना के 85 ताजे पॉज़िटिव मामले और इससे छठी मौत ने मामले को और गंभीर बना दिया है. सभी नए मामले लगभग ऐसे हैं जो पिछले सप्ताह दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से विशेष ट्रेनों द्वारा राज्य वापस आए थे. भारत के 6 सबसे बड़े महानगरों- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु में 48 फीसदी आबादी में प्रवासी शामिल है, एक बड़े पैमाने पर पलायन जिस तरह से लॉकडाउन के दौरान देखा जा रहा है उससे भारत के बुजुर्गों को ज्यादा जोखिम हो गया है.

महामारी के कारण हुई मौतों में 75.3 फीसदी 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के थे. हृदय रोगियों की संख्या शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण की अपेक्षा काफी ज्यादा है – लगभग दोगुनी से भी ज्यादा. लेकिन निरपेक्ष संख्या के मामले में, ग्रामीण भारत शहरी क्षेत्रों को पछाड़ता है. 2018 में लांसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक भारतीय कोरोनरी हृदय रोग और अन्य हृदय रोगों से मर रहे हैं ऐसे में अगर कोरोना का प्रकोप गाँवों में बरपता है तो इसका सासे ज्यादा खामियाजा बुजुर्ग रोगियों को उठाना पड़ेगा.

भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 22 फीसदी है और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 30 फीसदी है. जो की काफी कम है. सबसे अधिक कमी पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों में है – जो पूरे भारत में प्रवासी श्रमिकों के लिए प्रमुख आपूर्तिकर्ता राज्य भी हैं. टकसाल रिपोर्ट के अनुसार, केवल 11 फीसदी उप-केंद्र, 13 फीसदी पीएचसी और 16 फीसदी सीएचसी भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों को पूरा करते हैं. पीएचसी के 60 फीसदी इलाकों में सिर्फ एक डॉक्टर है, जबकि 5 फीसदी इलाकों में एक भी नही. ऐसे में अगर ग्रामीण इलाकों में कोरोना का संकट गहराता है तो इसपर काबू पाना बेहद मुसकिल हो जाएगा.

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