भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी (Indian Institute Of Technology–Guwahati) के शोधकर्ताओं ने एक किफायती कृत्रिम पैर (Prosthetic Leg) विकसित करने का दावा किया है, जिसे विशेष रूप से भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया है. कम वजन वाला कृत्रिम पैर विभिन्न आयु समूहों और कृत्रिम अंग के उपयोग के कई चरणों के लिए समायोज्य है. टीम द्वारा विकसित मॉडल के नमूनों का अभी परीक्षण चल रहा है.
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टीम के अनुसार, भारत में कृत्रिम अंग के विकास में कई चुनौतियों सामने आती हैं और दिव्यांगों के लिए अत्यधिक कार्यात्मक गतिशीलता के लिए उन्नत सुविधाओं वाले उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिसमें बहुत पैसा खर्च होता है. आईआईटी गुवाहाटी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग (Mechanical Engineering) विभाग के प्रोफेसर एस कनगराज (Professor S Kanagaraj) ने कहा, पश्चिमी तकनीक के साथ विकसित बाजार उत्पाद भारतीय जरूरतों को नजरअंदाज करते हैं, जैसे कि चौकड़ी लगाकर बैठना, शौच के लिए बैठना और योग की मुद्राएं आदि.
उन्होंने कहा कि दुर्गम इलाके कृत्रिम अंगों में पारंपरिक जोड़ के कामकाज में काफी बाधा डालते हैं और गतिशील संतुलन की कमी के कारण उपयोगकर्ता कुछ शारीरिक गतिविधियों के दौरान गिर सकता है. उन्होंने कहा, हमारी टीम द्वारा विकसित घुटने के जोड़ में एक स्प्रिंग आधारित तंत्र है जो भारतीय शौचालय प्रणाली के अधिक आराम से उपयोग में मदद करता है, चौकड़ी लगाकर बैठने में मदद करता है, लॉकिंग तंत्र अपरिचित इलाके में चलने के दौरान व्यक्तियों के गिरने के भय को कम करता है.
कनगराज ने कहा कि उनकी टीम द्वारा बनाए गए कृत्रिम अंग का अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार परीक्षण किया गया है और यह शरीर के 100 किलो वजन तक को सह सकता है. उन्होंने कहा कि कृत्रिम पैर की कीमत 25,000 रुपये होगी.
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