पर्सियड्स उल्का बौछार: एक अद्भुत खगोलीय घटना, जब आसमान करेगा आतिशबाजी

आने वाले 26 अगस्त तक धरती पर एक अद्भूत खगोलीय घटना नंगी आंखों से देखी जा सकती है. इस खगोलिय घटना को पर्सियड्स उल्का बौछार कहा जा रहा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 20, 2020 3:26 PM
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आने वाले 26 अगस्त तक धरती पर एक अद्भूत खगोलीय घटना नंगी आंखों से देखी जा सकती है. इस खगोलीय घटना को पर्सियड्स उल्का बौछार कहा जा रहा है. ऐसा इसलिये क्योंकि उल्का पिंड पर्सियड्स नक्षत्र में गिरने वाला है. आमतौर पर उल्का पिंड धरती पर गिरते हुये दिखाई पड़ते हैं लेकिन इस घटना में उल्का पिंडों का समूह धरती पर गिरता दिखाई देगा. ऐसा लगेगा मानों अंतरिक्ष आतिशबाजी कर रहा है.

जानिए कैसे होती है उल्का-पिंडों की रचना

जब अंतरिक्ष में धूमकेतु, क्षुद्र ग्रह, ग्रह या उपग्रह के टूटने से उत्पन्न चट्टान धूलकण के साथ धरती के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो घर्षण की वजह से उनमें आग लग जाती है. कई बार उस चट्टान के टुकड़े के साथ धुलकण भी मौजूद होता है जिसकी वजह से पूंछ जैसी आकृति दिखाई पड़ती है. तब इसे पुच्छल तारा भी कहा जाता है.

इन्हीं चट्टान के टुकड़ों को जब वे धरती के वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद जलते हुये नीचे गिरते हैं. उल्का पिंड कहा जाता है. इस खगोलिय घटना को कई बार हमने और आपने अपनी आंखों से देखा होगा. फिल्मों में भी कई बार दिखाया गया है कि इस टूटते हुये तारे को देखकर कुछ मांगो तो मिल जाता है.

लेकिन इस बार केवल उल्का पिंड नहीं दिखने वाला, बल्कि उल्का पिंड का समूह दिखने वाला है. इसमें आकाश में एक साथ कई दिनों तक बहुत सारे उल्का पिंड दिखाई देने वाले हैं. यूं कह लीजिये कि उल्का पिंड की बारिश या बौछार सी होने वाली है.

उल्का पिंडों की बौछार का मतलब क्या है

अब आपको ये समझाते हैं कि उल्का बौछार कैसे होता है. आप ये जानते हैं कि पृथ्वी और दूसरे ग्रहों की तरह धूमकेतु भी सूरज की परिक्रमा करते हैं. लेकिन, ग्रहों के विपरित धूमकेतु अलग दिशा में परिक्रमा करते हैं. आमतौर पर धूमकेतू की सतह बर्फीली होती है. जब ये सूरज के नजदीक आते हैं तो बर्फीली सतह गर्म होकर धूल और चट्टानों के बहुत सारे कणों को मुक्त करती जाती है.

यही मलबा धूमकेतु के मार्ग के साथ बिखर जाता है. जिसका अधिकांश हिस्सा बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह के आसपास होता है. इन्हीं में से कुछ पृथ्वी के वायुमंडल के संपर्क में आ जाते हैं. जब वायुमंडल के संपर्क में आते हैं तो उनमें एक साथ आग लग जाती है औऱ समूह में धरातल की तरफ गिरते हैं. जिससे ऐसा लगता है कि उल्का पिंडों की बौछार हो रही हो.

उल्का पिंडों की ये बौछार प्रत्येक साल अगस्त महीने में देखी जा सकती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक उल्का बौछार पहली बार आज से 2 हजार साल पहले देखी गयी थी.

Posted By- Suraj Kumar Thakur

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