पाकिस्तान में पिछले दो महीने में तीन महत्वपूर्ण जगहों पर जो नियुक्तियां हुई हैं उसमें सेना का दबदबा है, इसके बाद ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान की लोकप्रियता में कमी आ रही है या उनकी पकड़ सरकार पर कमजोर हो रही है. देखा जाए तो राज्य के स्वामित्व वाले हवाई वाहक, बिजली नियामक और देश में कोरोना वायरस के लिए लड़ रहा सबसे प्रमुख राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान में इनके बढ़ते हस्तक्षेप को देखा जा सकता है.
ये तीनों नियुक्तियां पिछले दो महीनों में ही हुईं हैं. वैसे सेना पाकिस्तान की सबसे शक्तिशाली संस्था है और उसने अपने सात दशक के इतिहास के बड़े हिस्से के लिए सीधे देश पर शासन किया है. फिर भी साल 2018 में कार्यभार ग्रहण करने के बाद इमरान खान ने जिस “न्यू पाकिस्तान” का वादा किया था, उससे यह बहुत दूर है.
क्या है नया पाकिस्तान
जानकारों का कहना है कि इसमें न तो कुछ नया है और न तो चौंकने वाली बात है. पाकिस्तान के 70 साल के इतिहास में सरकार में सेना की भूमिका स्पष्ट रही है. कभी सेना ने सीधे सत्ता पर कब्जा किया या तो अपने इशारे पर सरकार बनवाई. 2018 में पाकिस्तान की सत्ता पर जब इमरान खान काबिज हुए तो उन्होंने भी एक नारा दिया नया पाकिस्तान का. लेकिन वो फिलहाल नारों तक ही सीमित रह गया है.
एक धीमी अर्थव्यवस्था, उच्च उपभोक्ता कीमतों और अपने करीबी सहयोगियों के भ्रष्टाचार की जांच के कारण प्रधानमंत्री इमरान खान का प्रभाव और लोकप्रियता कम हो रही है और सेना की उच्च अधिकारी देश पर नियंत्रण स्थापित करते जा रहे हैं.
कैबिनेट में कम से कम 12 सेना के वफादारों ने तानाशाह-राष्ट्रपति-राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के प्रशासन का हिस्सा बनें थे, जो 2008 में समाप्त हो गया. इसमें आंतरिक मंत्री एजाज शाह और खान के वित्त सलाहकार अब्दुल हफीज शेख शामिल हैं.
इन दिनों कोरोना महामारी की वजह से पाकिस्तान में आर्थिक संकट फिर से बढ़ा रहा है। भारत के बाद एशिया में पाकिस्तान सबसे अधिक संक्रमित देश है, जिसमें कोरोना के एक लाख आठ हजार से ज्यादा मामले हैं और लगभग 2,200 लोगों की मौत हो चुकी है. केंद्रीय बैंक ने कहा कि अर्थव्यवस्था 68 वर्षों में पहली बार जून के अंत में 1.5 फीसदी कम होने की उम्मीद की है.