अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये शोध और नवाचार में निवेश बढ़ाएं : राष्ट्रपति कोविंद

दूसरे देशों की तुलना में शोध और नवाचार में कम निवेश को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को कहा कि केंद्र व राज्य सरकारों को शोध तथा नवाचार में निवेश का प्रतिशत बढ़ाना होगा ताकि भारत जैसी बड़ी और जीवंत अर्थ-व्यवस्था को गति प्रदान की जा सके .

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2020 7:05 PM
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नयी दिल्ली : दूसरे देशों की तुलना में शोध और नवाचार में कम निवेश को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को कहा कि केंद्र व राज्य सरकारों को शोध तथा नवाचार में निवेश का प्रतिशत बढ़ाना होगा ताकि भारत जैसी बड़ी और जीवंत अर्थ-व्यवस्था को गति प्रदान की जा सके .

नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर राज्यपालों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह देखा गया है कि रिसर्च और इनोवेशन में निवेश का स्तर अमेरिका में जीडीपी का 2.8 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया में 4.2 प्रतिशत और इज़राइल में 4.3 प्रतिशत है जबकि भारत में यह केवल 0.7 प्रतिशत है.

कोविंद ने कहा, ‘‘ भारत जैसी बड़ी और जीवंत अर्थ-व्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए ‘ज्ञान सृजन’ तथा शोध को प्रोत्साहित करना जरूरी है . केंद्र व राज्य सरकारों को शोध तथा नवाचार में निवेश का प्रतिशत बढ़ाना होगा.” राष्ट्रपति ने कहा कि 1968 की शिक्षा नीति से लेकर इस शिक्षा नीति तक, एक स्वर से निरंतर यह स्पष्ट किया गया है कि केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर सार्वजनिक शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी के 6 प्रतिशत निवेश का लक्ष्य रखना चाहिए.

उन्होंने कहा कि 2020 की इस शिक्षा नीति में इस लक्ष्य तक शीघ्रता से पहुंचने की अनुशंसा की गयी है उन्होंने कहा कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के आकलन के अनुसार, भारत के कार्यबल में 5 प्रतिशत से भी कम लोगों ने औपचारिक व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त की थी. यह संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका में 52 प्रतिशत, जर्मनी में 75 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 96 प्रतिशत थी.

कोविंद ने कहा, ‘‘ भारत में व्यावसायिक शिक्षा के प्रसार में तेजी लाने की आवश्यकता को देखते हुए यह तय किया गया है कि स्कूल तथा उच्च शिक्षा प्रणाली में वर्ष 2025 तक कम से कम 50 प्रतिशत विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाएगी.” उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति केवल एक नीतिगत दस्तावेज नहीं है, बल्कि भारत के शिक्षार्थियों एवं नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है और यह 21वीं सदी की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप देश के लोगों, विशेषकर युवाओं को आगे ले जाने में सक्षम होगी.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ शिक्षा के माध्यम से हमें ऐसे विद्यार्थियों को गढ़ना है जो राष्ट्र-गौरव के साथ-साथ विश्व-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत हों और सही अर्थों में वैश्विक नागरिक बन सकें.” उन्होंने कहा, ‘‘ नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं, कला और संस्‍कृति को प्राथमिकता दी गई है. इससे विद्यार्थियों में सृजनात्‍मक क्षमता विकसित होगी और भारतीय भाषाओं की ताकत और बढ़ेगी. विविध भाषाओं वाले हमारे देश की एकता को अक्षुण्ण बनाए रखने में इससे मदद मिलेगी.” कोविंद ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली ही जीवंत लोकतान्त्रिक समाज का आधार होती है.

अतः सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों को मजबूत बनाना अत्यंत आवश्यक है. राष्ट्रपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि हम सबको भारतीय जीवन-मूल्यों पर आधारित आधुनिक शिक्षा प्रणाली विकसित करनी है. साथ ही यह भी प्रयास करना है कि सभी को उच्च गुणवत्ता से युक्त शिक्षा प्राप्त हो तथा एक जीवंत व समता-मूलक ज्ञान आधारित समाज का निर्माण हो. उन्होंने कहा कि उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में, इस शिक्षा नीति की अनुशंसाओं का समयबद्ध पालन सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालयों के कुलपतियों तथा शिक्षकों के रिक्त पदों पर अतिशीघ्र सुयोग्य व्यक्तियों को नियुक्त करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा, ‘‘ राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सफलता केंद्र तथा राज्य दोनों के प्रभावी योगदान पर निर्भर करेगी. भारतीय संविधान के अंतर्गत शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है. अतः इसमें केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त और समन्वयपूर्ण कार्रवाई की आवश्यकता है.” कोविंद ने कहा कि आकांक्षी जिलों तथा विशेष शैक्षणिक जोन में गुणवत्ता-पूर्ण उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जानी है. यह सामाजिक तथा आर्थिक रूप से वंचित समूहों के हित में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.

Posted By – Pankaj Kumar Pathak

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