Independence Day 2020: क्या हर भारतीय के लिए 15 अगस्त को झंडारोहण और राष्ट्रगान अनिवार्य है? क्या कहता है संविधान
15 August, Independence Day 2020, Flag hoisting: देश में गहराए कोरोना संकट के बीच हर तरफ स्वतंत्रता दिवस की धूम है. इस बार 15 अगस्त को देश 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. हर बार की तरह इस बार भी दिल्ली में प्रधानमंत्री लाल किले पर ध्वजारोहण करेंगे. इस दिन देशवासी राष्ट्रीय ध्वज यानी तिरंगे झंडे को सलाम करते हैं और जगह-जगह तिरंगा फहराया जाता है.
15 August, Independence Day 2020, Flag hoisting: देश में गहराए कोरोना संकट के बीच हर तरफ स्वतंत्रता दिवस की धूम है. इस बार 15 अगस्त को देश 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. हर बार की तरह इस बार भी दिल्ली में प्रधानमंत्री लाल किले पर ध्वजारोहण करेंगे. इस दिन देशवासी राष्ट्रीय ध्वज यानी तिरंगे झंडे को सलाम करते हैं और जगह-जगह तिरंगा फहराया जाता है.
तिरंगा हमारे देश के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है. लेकिन क्या हर भारतीय के लिए 15 अगस्त को झंडारोहण और राष्ट्रगान अनिवार्य है? तो इसका जवाब है नहीं. हां ये जरूर है कि झंडारोहण और राष्ट्रगान के लिए संविधान में नियम और कायदे बनाए गए हैं. आज हम आपको हमारे तिरंगे से जुड़े कई सारे नियमों के बारे में बताएंगे. साल 2002 से पहले हम सिर्फ और सिर्फ 26 जनवरी ( गणतंत्र दिवस ) 15 अगस्त ( स्वतंत्रता दिवस ) के मौके पर ही फहराए जाते थे. लेकिन साल 2002 को इंडियन फ्लैग कोड में संशोधन किया गया. तबसे देश का कोई भी नागरिक झंडा फहरा सकता है. आपको बता दें कि तिरंगा फहराने और राष्ट्रगान के भी कुछ नियम हैं. जानिए क्या हैं ये…
ध्वजारोहण और इतिहास
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तिरंगे झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींचकर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोलकर फहराया जाता है, जिसे ध्वजारोहण कहा जाता है, क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है, उस समय प्रधानमंत्री ने ऐसा किया था. संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी. ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 1968’ (भारतीय ध्वज संहिता) नाम के एक कानून में तिरंगे को फहराने के नियम निर्धारित किए गए हैं. इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल भी हो सकती है. तिरंगे को आंध्रप्रदेश के पिंगली वैंकैया ने बनाया था.
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झंडा हाथ से काते और बुने गए ऊनी, सूती, सिल्क या खादी से बना होना चाहिए. झंडे का आकार आयताकार होना चाहिए. इसकी लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 का होना चाहिए. केसरिया रंग को नीचे की तरफ करके झंडा लगाया या फहराया नहीं जा सकता.
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सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही तिरंगा फहराया जा सकता है. झंडे को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जा सकता. झंडे को आधा झुकाकर नहीं फहराया जाएगा सिवाय उन मौकों के जब सरकारी इमारतों पर झंडे को आधा झुकाकर फहराने के आदेश जारी किए गए हों.
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झंडे को कभी पानी में नहीं डुबोया जा सकता. किसी भी तरह फिजिकल डैमेज नहीं पहुंचा सकते. झंडे के किसी भाग को जलाने, नुकसान पहुंचाने के अलावा मौखिक या शाब्दिक तौर पर इसका अपमान करने पर तीन साल तक की जेल या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं.
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झंडे का व्यवसायिक इस्तेमाल नहीं कर सकते. किसी को सलामी देने के लिए झंडे को झुकाया नहीं जाएगा. अगर कोई शख्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसका वस्त्र बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे का अपमान माना जाएगा.
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झंडे पर किसी तरह के अक्षर नहीं लिखे जाएंगे. खास मौकों और राष्ट्रीय दिवसों जैसे गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर झंडा फहराए जाने से पहले उसमें फूलों की पंखुड़ियां रखने में कोई आपत्ति नहीं है.
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किसी कार्यक्रम में वक्ता की मेज को ढकने या मंच को सजाने में झंडे का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. गाड़ी, रेलगाड़ी या वायुयान की छत, बगल या पीछे के हिस्से को ढकने में यूज नहीं कर सकते. झंडे का इस्तेमाल किसी इमारत में पर्दा लगाने के लिए नहीं किया जा सकता.
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फहराए गए झंडे की स्थिति सम्मानजनक बरकरार होनी चाहिए. फटा या मैला-कुचैला झंडा नहीं फहराया जाना चाहिए. झंडा फट जाए, मैला हो जाए तो उसे एकांत में मर्यादित तरीके से पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए.
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यदि झंडे को किसी मंच पर फहराया जाता है, तो उसे इस प्रकार लगाया जाना चाहिए कि जब वक्ता का मुंह श्रोताओं की ओर हो तो झंडा उसके दाहिनी ओर रहे. एक तरीका यह भी है कि झंडे को वक्ता के पीछे दीवार के साथ और उससे ऊपर लेटी हुई स्थिति में प्रदर्शित किया जाए.
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किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या उससे ऊपर या उसके बराबर नहीं लगाया जा सकता. इसके अलावा, फूल, माला, प्रतीक या अन्य कोई वस्तु झंडे के पोल के ऊपर रखी जाए.
राष्ट्रगान के बारे में हर वह बात जो आपको जानना जरूरी है
भारत के राष्ट्रगान से जुड़े कई ऐसे नियम हैं, जिससे शायद देश की ज्यादातर जनता वाकिफ नहीं है. संविधान सभा ने 24 जनवरी, 1950 को रविंद्र नाथ डैगोर द्वारा रचित “जन-गण-मन” को भारत के राष्ट्रगान के रूप में अधिगृहित किया. संविधान सभा ने घोषणा की थी कि जन-गण-मन भारत का राष्ट्रगान होगा और इसे पूरे सम्मान और नियम से गाया जाएगा. आपको बता दें महर्षि अरविंद ने राष्ट्रगान का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है.
भारतीय संविधान के भाग-4 में नागरिकों की मूल कर्तव्यों के तहत राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के सम्मान का ज़िक्र है संविधान के भाग-4 के अनुच्छेद 51 ए में लिखा है कि ये भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वो संविधान का पालन करे. संविधान के आदर्शों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करे.
प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट, 1971 की धारा तीन में राष्ट्रगान को लेकर स्पष्ट निर्देश हैं, जिसके मुताबिक जन गण मन को गाने से जानबूझकर रोकने या फिर किसी सभा में जन गण मन गाए जाने के दौरान रुकावट डालने पर तीन वर्ष की सज़ा और ज़ुर्माने का प्रावधान है. हालांकि इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी को राष्ट्रगान गाने के लिए बाध्य किया जाए.
बेशक इस दौरान भारतीयों से उम्मीद की जाती है कि वो राष्ट्रगान के समय सावधान की मुद्रा में खड़े रहें, लेकिन ये कहना गलत होगा कि जन-गण-मन न गाना इसका अपमान है. आपको बता दें कि राष्ट्रगान को लेकर ऐसा कोई नियम नहीं है, कि इस दौरान आपको खड़े रहना है. जन-गण-मन के दौरान इसे सम्मान देना जरूरी होता है, न कि खड़े रहना. यानी राष्ट्रगान को गाते या बजाते समय बैठे रहना अपराध नहीं है, बल्कि इस दौरान किसी भी अनुचित गतिविधि में संलग्न नहीं होना चाहिए.
Posted By: Utpal kant