राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता के लिए बहुत संघर्ष किया. आजाद भारत के सपने संजोये उन्होंने देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी मार्च, अंग्रेज भारत छोड़ो जैसे बड़े आंदोलनों की अगुवाई. महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा पुजारी थे. अहिंसा के बल पर ही उन्होंने अग्रेजी हुकुमत को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया. पर जब वो खास दिन आया जिसका इंतजार पूरे देशवासियों को था. जी हां आजादी का दिन, मुख्य समारोह का आयोजन किया गया था. पर महात्मा गांधी उस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थे.
बताया जाता है कि जब यह तय हो गया कि 15 अगस्त को भारत को आजादी मिल जायेगा. दुनिया में भारत की पहचान एक आजाद मुल्क के तौर पर होगी. उस वक्त जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को पत्र लिखा था. पत्र में लिखा गया था कि 15 अगस्त हमारा पहला स्वतंत्रता दिवस होगा, इसमें आप शामिल होकर अपना आशीर्वाद दें. महात्मा गांधी ने इस खत के जवाब में कहा था कि जब यहां हिंदु-मुस्लिम एक दुसरे की जान ले रहे हैं तो ऐसे में मैं कैसे जश्न मनाने के लिए आ सकता हूं. मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा.
दरअसल जब देश को आजादी मिली और पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया तब महात्मा गांधी दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल के नोआखली में थे. जहां वे हिंदुओं और मुसलमानों की बीच भड़की साम्प्रादायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन पर बैठे थे. जब जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त की रात को ऐतिहासिक भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टिनी दिया था उस वक्त पूरी दुनिया ने उनका भाषण सुना था, लेकिन महात्मा गांधी उस रात नौ बजे ही सोने चले गये थे. नेहरू ने यह भाषण वायसराय लॉज से दिया था, उस वक्त वो प्रधानमंत्री नहीं बने थे.
15 अगस्त के दिन भारत आजाद हुआ था पर इस दिन भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण नहीं हुआ था. रेडक्लिफलाइन की घोषणा 17 अगस्त को हुई थी. जिस वक्त भारत आजाद हुआ था उस समय देश का कोई राष्ट्रीय गान नहीं था. जन गन मन को 1950 में राष्ट्रीय गान के तौर पर अपनाया गया. जबकि रविंद्र नाथ टैगौर ने इसकी रचना 1911 में की थी.
Posted By : Pawan Singh