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लाॅकडाउन के दो महीनों में बढ़ा घर के खाने का स्वाद, ऑनलाइन हुई डेटिंग, ऐसे बदला व्यवहार

दो महीने पहले की दुनिया और लाॅडाउन के दो महीनों के बाद की दुनिया में काफी फर्क है, जो स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. लाॅकडाउन ने ना सिर्फ इंसान के व्यवहार, उसकी आदतों, फूड हैबिट और जरूरतों में बदलाव किया है, बल्कि इसने इंसान की सोच को भी प्रभावित कर दिया है. तो आइए जानते हैं प्री कोरोना पीरियड और प्रो कोरोना पीरियड में क्या आया बदलाव-

कल यानी 24 मई को हमारे देश में लाॅकडाउन के पूरे दो महीने हो जायेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को यह घोषणा की थी कि आज रात 12 बजे से पूरे देश में संपूर्ण लाॅकडाउन लागू हो जायेगा. पीएम मोदी की घोषणा के बाद पूरा देश थम सा गया, जो जहां थे वहीं रह गये. मानों चलते हुए वीडियो में किसी ने पाॅज बटन प्रेस कर दिया हो. हालांकि लाॅकडाउन-3 और 4 में सरकार ने कई तरह की छूट दी और यहां-वहां फंसे लोगों को श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिये वापस उनके घरों तक भेजा जा रहा है. लेकिन इन दो महीना पहले की दुनिया और लाॅडाउन के दो महीनों के बाद की दुनिया में काफी फर्क है, जो स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. लाॅकडाउन ने ना सिर्फ इंसान के व्यवहार, उसकी आदतों, फूड हैबिट और जरूरतों में बदलाव किया है, बल्कि इसने इंसान की सोच को भी प्रभावित कर दिया है. तो आइए जानते हैं प्री कोरोना पीरियड और पोस्ट कोरोना पीरियड में क्या आया बदलाव-

कैसा बदला फूड हैबिट : कोरोना वायरस उन्हीं लोगों पर ज्यादा अटैक करता है, जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है. ऐसे में फास्ट फूड के प्रसार को कोरोना वायरस ने ब्रेक लगा दी है. अब लोग ढूंढ़-ढूंढ़ कर वैसा भोजन कर रहे हैं, जो पौष्टिक हो. आयुर्वेद की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है. दादी-नानी के नुस्खे खूब चल रहे हैं. साथ ही काढ़ा, अंकुरित अनाज, दूध, च्यवनप्राश, गरम मसालों का प्रयोग खूब बढ़ा है. रेस्टोरेंट फूड से लोगों का मोह भंग हुआ है और इन दो महीनों में लोग ‘घर का बना खाना’ को तरजीह दे रहे हैं. साथ ही सबसे बड़ा बदलाव लोगों के फूड हैबिट में यह हुआ कि मांसाहारी लोग शाकाहार की तरफ मुड़े. पहले तो बिक्री बंद हुई और फिर ऐसी खबरें भी आयीं कि शाकाहार इंसान के लिए बेहतर भोजन है, जिसके कारण यह बदलाव दिखा.

व्यवहार में आया बदलाव : कोरोना ने मनुष्य को सीमाओं में बांध दिया, यही कारण है कि मनुष्य सामाजिक प्राणी होते हुए भी समाज से भागने लगा. सामाजिक कार्यक्रम बंद हो गये है और लोगों का एक -दूसरे से मिलना-जुलना प्रभावित हो गया. खुशियों को साथ मनाने की परंपरा टूटी और मौत पर शोक व्यक्त महज खाना-पूर्ति बनकर रह गया. आपसी मेलजोल, चौक-चौराहों पर गप्प भी बंद हो गये. कोरोना ने प्रेम पर भी पाबंदी लगा दी, परिणाम यह हुआ कि प्रेमी जोड़े अब वीडियो काॅल के जरिये ही एक दूसरे से मिल पा रहे हैं, क्योंकि एक तो कोरोना का डर है, दूसरे लाॅकडाउन में घर से निकलने की इजाजत भी नहीं. ऐसे में जूम एप जैसे आॅनलाइन मीडियम ने लोगों को खूब जोड़ा. दोस्त, परिवार, प्रेमी जोड़े को पास लाने के साथ-साथ जूम एप आफिस मीटिंग को बखूबी आयोजित करने का प्लेटफाॅर्म साबित हुआ.

कौन सी आदत बदली : प्री और पोस्ट कोरोना पीरियड की तुलना करूं तो हम पायेंगे कि इंसान की आदतें काफी बदल गयीं हैं और दिनचर्या में साफ-सफाई का महत्व बहुत बढ़ गया है. जब कोई बाहर से आता है, तो घरों में उनके प्रवेश का तरीका भी बिलकुल बदल गया है. हाथ-पैर धोये बिना घर में प्रवेश वर्जित हो गया है. यह आदतें हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति की याद दिलाती हैं. मास्क पहनने की आदत अब लोगों में आम हो गयी है. कई लोग गलव्स भी पहन रहे हैं. साथ ही हैलो हाय भुलकर हाथ जोड़कर एकदूसरे को नमस्ते कर रहे हैं. गले मिलने की परंपरा भी टूटी है. समाज में परिवार का महत्व बढ़ गया है और सब एक दूसरे का ध्यान रख रहे हैं. लाॅकडाउन के दौरान पुरुष सदस्य भी पूरे दिन घर पर रहे, ऐसे में उन्होंने पत्नी और मां का किचन में भी खूब साथ दिया. देखा गया कि बच्चे भी घरेलू कामकाज में मदद कर रहे हैं. एक पाॅजिटिव असर यह भी देखने को मिला कि लाॅकडाउन में शराब की तमाम दुकानें बंद थीं, तंबाकू, सिगरेट भी उपलब्ध नहीं था. एक तो स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी यह गुजारिश की कि नशा ना करें, वहीं बिक्री बंद होने से भी लोग नशे की आदत से दूर रहे. कई लोग तो घर से बाहर नहीं जाने के कारण भी नशे की आदत से दूर रहे. सही भी है जान है तो जहान है.

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ल्टीप्लैक्स कल्चर से बनी दूरी : दोस्तों के साथ माॅल में घूमना, ब्रांडेंड कपड़े खरीदना, पिज्जा-बर्गर खाना और मल्टीप्लैक्स में मूवी का आनंद लेना इस कल्चर से लोगों ने एक तरह से दूरी बना ली है, क्योंकि भीड़भाड़ वाली जगह में कोरोना के संक्रमण का खतरा ज्यादा है. वैसे भी सरकार ने अभी तक पूरे देश में माॅल और मल्टीप्लैक्स को खोलने की इजाजत नहीं दी है. वैसे भी जब ये खुलेंगे तो इंसान कबतक यहां पहले की तरह जाना शुरू करेगा, उसपर भ्रम की स्थिति है.

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