‘गलवान झड़प के बाद से भारत-चीन संबंध सामान्य नहीं’ विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सुनाई ड्रैगन को खरी-खरी

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि गलवान घाटी की झड़प के बाद से भारत और चीन के संबंध कभी सामान्य नहीं हुए हैं. उन्हों चीन पर बार बार समझोता तोड़ने का आरोप भी लगाया है. जयशंकर ने बताया कि 1993 और 1996 में भारत ने सीमा पर स्थिरता के लिए चीन के साथ दो समझौते किए, जो विवादित हैं.

By Agency | September 27, 2023 12:36 PM
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यहां कहा कि 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से भारत और चीन के बीच संबंध सामान्य नहीं हैं और ऐसा लगता है ये मसला अपेक्षा से ज्यादा लंबा खिंच सकता है. विदेश संबंध परिषद में भारत-चीन संबंधों के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर दुनिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच इस हद तक तनाव है, तो इसका असर हर किसी पर पड़ेगा. जयशंकर ने कहा कि चीन के साथ रिश्ते की खासियत ये है कि वे आपको कभी नहीं बताते कि वे ऐसा क्यों करते हैं. इसलिए आप अक्सर इसका पता लगाने की कोशिश करते रहते हैं और हमेशा कुछ अस्पष्टता रहती है.

चीन के साथ स्थिति समान्य नहीं- एस जयशंकर

विदेश मंत्री ने कहा, ऐसे देश के साथ सामान्य होने की कोशिश करना बहुत कठिन है जिसने समझौते तोड़े हैं. इसलिए अगर आप पिछले तीन वर्षों को देखें, तो यह सामान्य स्थिति नहीं है. उन्होंने कहा, संपर्क बाधित हो गए हैं, यात्राएं नहीं हो रही हैं. हमारे बीच निश्चित रूप से उच्च स्तर का सैन्य तनाव है. इससे भारत में चीन के प्रति धारणा पर भी असर पड़ा है. जयशंकर ने कहा, इसलिए मुझे लगता है कि वहां एक तात्कालिक मुद्दा है और प्रतीत होता है कि ये मसला अपेक्षा से ज्यादा लंबा खिंच सकता है. विदेश मंत्री ने दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों पर एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को रेखांकित किया और कहा कि यह कभी आसान नहीं रहा. उन्होंने कहा, 1962 में युद्ध हुआ था. उसके बाद सैन्य घटनाएं हुईं. लेकिन 1975 के बाद सीमा पर कभी भी लड़ाई में कोई हताहत नहीं हुआ था, 1975 आखिरी बार था. उन्होंने कहा कि 1988 में भारत ने संबंधों को अधिक सामान्य किया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गये.

समझौता तोड़ता रहता है चीन- जयशंकर

जयशंकर ने बताया कि 1993 और 1996 में भारत ने सीमा पर स्थिरता के लिए चीन के साथ दो समझौते किए, जो विवादित हैं. उन्होंने कहा, उन मुद्दों पर बातचीत चल रही है. उन्होंने कहा कि इस बात पर सहमति बनी कि न तो भारत और न ही चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना एकत्र करेगा और अगर कोई भी पक्ष एक निश्चित संख्या से अधिक सैनिक लाता है, तो वह दूसरे पक्ष को सूचित करेगा. मंत्री ने कहा, तो जिस तरह से इसे प्रस्तुत किया गया था, यह बिल्कुल स्पष्ट था. जयशंकर ने कहा कि उसके बाद कई समझौते हुए और यह एक बहुत अनोखी स्थिति थी जिसमें सीमा क्षेत्रों में दोनों तरफ के सैनिक अपने निर्धारित सैन्य अड्डों से बाहर निकलते, अपनी गश्त करते और अपने ठिकानों पर लौट आते थे.

जयशंकर ने कहा कि अगर उनके बीच कहीं टकराव हुआ, तो उनके आचरण के बारे में बहुत स्पष्ट नियम थे और आग्नेयास्त्रों का उपयोग निषिद्ध था. तो 2020 तक वास्तव में ऐसा ही था. 2020 में जब भारत अपने सख्त कोविड-19 लॉकडाउन के दौर से गुजर रहा था तब हमने देखा कि बहुत बड़ी संख्या में चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर बढ़ रहे थे. उन्होंने कहा, इन सबके बीच हमें वहां अपनी उपस्थिति बढ़ानी थी और जवाबी तैनाती करनी थी, जो हमने की और फिर हमारे सामने एक ऐसी स्थिति थी जहां हम स्वाभाविक रूप से चिंतित थे क्योंकि (दोनों देशों के) सैनिक अब बहुत करीब आ गए थे.

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चीन को किया था आगाह- विदेश मंत्री

जयशंकर ने कहा कि हमने चीनियों को आगाह किया कि ऐसी स्थिति समस्याएं पैदा कर सकती है और फिर जून 2020 के मध्य में ऐसा ही हुआ. जयशंकर ने कहा कि चीनी पक्ष ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए लेकिन उनमें से कोई भी वास्तव में मान्य नहीं है. मंत्री ने कहा, हम आंशिक रूप से सफल रहे हैं. जयशंकर ने कहा, अब उन्होंने जो किया है, उसने एक तरह से रिश्ते को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया है क्योंकि ऐसे देश के साथ सामान्य होने की कोशिश करना बहुत कठिन है जिसने समझौते तोड़े हैं.

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