…तो क्या महानगरों के बाद अब छोटे शहरों में कराह निकालेगा कोरोना वायरस? पढ़िए, क्या कहती है रिपोर्ट
बीबीसी ने राजस्थान के कोटा के हालात पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस शहर में और इसके आसपास के इलाकों समेत पूरे जिले में पिछले सप्ताह 6000 से अधिक मामले दर्ज किए गए. इस दौरान करीब 264 लोगों की मौत भी हो गई, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि महामारी से सबसे अधिक मौत अप्रैल महीने में ही हुई है.
Corona second wave : भारत में दूसरी लहर के दौरान कोरोना वायरस बेहद घातक हो गया. इस लहर में दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और पुणे जैसे बड़े शहर तबाही के कगार पर खड़े हैं. अस्पतालों और श्मशानों में जगह की इतनी कमी है कि अस्पतालों में न तो मरीजों के इलाज के लिए ऑक्सीजन वाले बेड मिल रहे हैं और न ही श्मशानों में मृतकों का सही तरीके से अंतिम संस्कार किया जा रहा है. हालत इतनी खराब हो चुकी है कि लोगों को कार पार्कों में अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि दूसरी लहर के दौरान महामारी देश के छोटे कस्बों, शहरों और गांवों में भी पैर पसार लिया है, जो पहली लहर के दौरान इससे अछूते थे.
बीबीसी की एक खबर के अनुसार, भारत की राजधानी दिल्ली से दिल दहलाने वाली खबरों का आना तो आम बात हो गई है, लेकिन अब देश के छोटे शहरों और कस्बों से भी इस तरह की खबरें आने लगी हैं. अगर हम देश के उन कोरोना प्रभावित राज्यों की बात करें, तो उनके बड़े शहरों से अब छोटे शहरों और कस्बों में भी महामारी ने पैर पसारना शुरू कर दिया है.
राजस्थान के कोटा जिले की हालत बेहद खराब
बीबीसी ने राजस्थान के कोटा के हालात पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस शहर में और इसके आसपास के इलाकों समेत पूरे जिले में पिछले सप्ताह 6000 से अधिक मामले दर्ज किए गए. इस दौरान करीब 264 लोगों की मौत भी हो गई, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि महामारी से सबसे अधिक मौत अप्रैल महीने में ही हुई है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस जिले में बीते 7 अप्रैल तक नए मामलों की संख्या दोगुनी होने में करीब 72 दिन लग रहे थे, लेकिन अब 27 दिनों में ही यह दोगुना हो जा रही है.
इतना ही नहीं, शहर के सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन वाला बेड भी अब खाली नहीं रहा. बीते 27 अप्रैल को जिले की 329 आईसीयू यूनिट्स में से केवल दो ही खाली थीं. बीबीसी को एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि अस्पताल में बेड अब खाली नहीं हैं. इससे पता चलता है कि जिले में कोरोना संक्रमितों की संख्या वास्तव में बहुत अधिक है.
यूपी के इलाहाबाद में तेजी से बढ़ रहे मामले
बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रयागराज के नाम से प्रचलित उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 20 अप्रैल तक कोरोना के कुल 54,339 मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन उसके बाद नए मामलों में 21 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. इस जिले में पिछले सप्ताह 11,318 नए मामले दर्ज किए गए थे. इलाहाबाद में 614 लोगों की कोरोना से मौत हो गई, जबकि अकेले अप्रैल महीने में करीब 32 फीसदी मौत के मामले दर्ज किए गए. चौंकाने वाली बात यह है कि शहर में आम लोगों को मुहैया कराए जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. लोग-बाग अपने प्रियजनों को अस्पतालों में इलाज के लिए बेड तक दिलाने में सक्षम नहीं हैं.
शहर की यह हालत तब है, जब हाल ही में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि यहां पर दवाओं, अस्पताल में बिस्तरों और ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही दास्तां बयां कर रही है. सोशल मीडिया पर राज्य के लोगों द्वारा अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन और रेमडेसिविर जैसी आवश्यक दवाओं की कमी पर सवाल उठाए जा रहे हैं. यह बात दीगर है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऑक्सीजन की कमी की झूठी रिपोर्ट करने वाले अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी है.
बिहार के भागलपुर और औरंगाबाद की हालत खस्ता
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के भागलपुर और औरंगाबाद जिले की हालत भी कुछ अच्छी नहीं हैं. खासकर भागलपुर जिला महामारी से बुरी तरह से प्रभावित है. इस जिले में 20 अप्रैल तक नए मामलों में करीब 26 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई, जबकि इसी दौरान करीब 33 फीसदी लोगों की मौत हो गई. जहां तक आईसीयू बेड की बात है, तो यहां के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की सभी यूनिट्स 28 अप्रैल तक मरीजों से भर गई थी. इसके साथ ही, अस्पताल के 350 ऑक्सीजन वाले बेड में से 270 से अधिक बिस्तरों पर मरीजों को भर्ती किया जा चुका था. हालत यह कि पिछले 10 दिनों के दौरान यहां के 220 डॉक्टरों में से 40 पॉजिटिव पाए गए और इनमें से करीब 4 की मौत हो गई.
इसके साथ ही, बिहार के पश्चिम क्षेत्र के औरंगाबाद जिले की भी हालत बहुत खराब है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बीते 5 अप्रैल तक इस जिले में 5000 से अधिक मामले दर्ज किए गए. इस दौरान छह लोगों की मौत हो गई, लेकिन जिले के स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि जमीनी हकीकत सरकारी आंकड़ों से इतर है. इसका कारण यह है कि छोटे शहरों और कस्बों में टेस्ट कराना ही सबसे बड़ी समस्या है. उनका कहना है कि कई पॉजिटिव लोगों की रिपोर्ट के बिना ही मौत हो जा रही है, जो सरकारी आंकड़ों में दर्ज नहीं किए जाते.
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Posted by : Vishwat Sen